महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019: लंबे इंतज़ार के बाद, शिवसेना के पुरज़ोर विरोध को दरकिनार करके बीजेपी ने आख़िरकार महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को अपना ही लिया. कणकवली में नितेश राणे की प्रचार सभा में नारायण राणे ने मुख्यमंत्री की मौजूदगी में अपनी महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष पार्टी का बीजेपी में विलय किया. कार्यक्रम में मौजूद सीएम फडणवीस ने कहा कि नारायण राणे के आने से कोंकण में बीजेपी मजबूत होगी. फडणवीस ने इस दौरान शिवसेना को लेकर सीधे तौर पर कोई बयान नहीं दिया. हालांकि अपनी सरकार बनाने की कोशिश में जुटे देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना को इशारों ही इशारों में कह दिया कि कणकवली से नितेश राणे की जीत होगी और शिवसेना की हार.


देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना पर निशाना साधते हुए कहा, ''कणकवली में 60-65 फीसदी वोट नितेश को मिलेंगे और बाकियों को 30-35 फीसदी वोट.'' इस विषय पर नारायण राणे ने कहा कि ''मैं कोंकण, महाराष्ट्र के विकास के लिए बीजेपी में आया हूं.''


लेकिन असल बात तो यह है कि अपने मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा लेकर 14 साल में चार पार्टी बदल चुके नारायण राणे इस बार अपना सपना पूरा करने के लिए नहीं बल्कि अपने बेटों के लिए बीजेपी में शामिल हुए. राणे का बीजेपी के साथ जुड़ना शिवसेना को मंजूर नहीं था, इसलिए शिवसेना ने गठबंधन धर्म के ख़िलाफ जाकर कणकवली में बीजेपी के उम्मीदवार नारायण राणे के बेटे नितेश को टक्कर देने के लिए सतीश सावंत को मैदान में उतारा.


बीजेपी-शिवसेना आमने सामने


उद्धव ठाकरे बुधवार को नितेश के ख़िलाफ़ प्रचार रैली भी करेंगे. लेकिन नारायण राणे अपने बेटे की जीत को लेकर आश्वस्त हैं. उनका कहना है कि उद्धव ठाकरे के आने से उनकी पार्टी को फ़ायदा ही होगा. महाराष्ट्र की 288 सीटों में से कोंकण की कनकवली विधानसभा सीट सबसे हॉट सीट में से एक है.


एबीपी न्यूज़ से ख़ास बातचीत में नितेश राणे कहा कि गठबंधन धर्म का पालन नहीं करते शिवसेना उनका नहीं बल्कि बीजेपी का अपमान कर रही है. नितेश राणे ने कहा, ''ये सब बीजेपी के श्रेष्ठ नेतृत्व देख रहा है. जो वचन उन्होंने दिया वो उन्होंने उसका पालन नहीं किया. लोकसभा मैं शिवसेना के सांसद मोदी जी की वजह से चुन कर आए. आज भी बीजेपी के ख़िलाफ़ जो उम्मीदवार दिया है वो अपने प्रचार में मोदीजी का फ़ोटो इस्तेमाल करता है.''


उन्होंने आगे कहा, ''आप अगर बीजेपी के नेताओं से लेकर पार्टी का नाम तक शिवसेना इस्तेमाल करती है तो फिर क्यों यहां उम्मीदवार देकर वो बीजेपी के साथ धोखा कर रही है. पूरे कोंकण में पालघर से लेकर सावंतवाडी तक केवल मेरी सीट है जो बीजेपी ने ली है. इसके बावजूद शिवसेना दग़ाबाज़ी कर रही है तो ये कैसा गठबंधन हुआ. मुझे लगता है कि अमित शाह से लेकर सभी बड़े नेता शिवसेना के इस कदम पर भविष्य में विचार जरूर करेंगे.''


दरअसल जानकार मानते हैं कि राणे को पार्टी में लेने के पीछे की सबसे बड़ी वजह है कि बीजेपी की कोंकण प्रांत में विस्तार करने की मंक्षा है. कोंकण शिवसेना का गढ़ है और राणे कोंकण के बड़े नेता रहे हैं. शिवसेना हर संभव प्रयास कर राणे को यहां कमजोर कर चुकी है, लेकिन बीजेपी का साथ मिलने से राणे दोबारा खड़े हो रहे जो शिवसेना की नाराज़गी का बड़ा कारण है.


राणे ने इसलिए छोड़ी थी शिवसेना


राणे भले ही कैमरे के सामने शिवसेना को लेकर कुछ कहने से बच रहे हों लेकिन उन्होंने 2024 में कोंकण में बीजेपी के सांसद और विधायक होने के संकेत दिए हैं. इससे साफ होता है कि आने वाले वक्त में शिवसेना और बीजेपी में कोंकण को लेकर विवाद बढ़ सकता है.


एक आम शिवसेना कार्यकर्ता के तौर पर अपने करियर की शुरूवात करने वाले नारायण राणे अपमे करियर के शिखर पर उस वक्त पहुंचे जब फरवरी 1999 में तत्कालीन शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया. राणे 258 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे. इस बीच शिवसेना में उद्धव ठाकरे का वर्चस्व बढने लगा. उन्हें इस बात की भी आशंका थी कि अगर शिवसेना फिर सत्ता में आती है तो उद्धव ठाकरे के चलते उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिलेगा. इसलिये जुलाई 2005 में राणे ने शिवसेना छोड दी और कांग्रेस से जुड गये.


शिवसेना छोड़ते समय नारायण राणे ने उद्धव ठाकरे पर जमकर निशाना साधा था. वहीं शिवसेना ने नारायण राणे को निसाने पर लिया था. आज 14 साल बाद दोनों के बीच गुस्सा कम नहीं हुआ है. तभी पूरे महाराष्ट्र में ये एक ऐसी सीट है जहां बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बावजूद आमने सामने है.


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