प्रधानमंत्री सीरीज 14: आडवाणी के विरोध के बावजूद मोदी बने PM कैंडिडेट, BJP को दिलाई ऐतिहासिक जीत
Narendra Modi: नरेंद्र मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी से प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचने की राह इतनी भी आसान नहीं थी. वो गुजरात से दिल्ली तो पहुंच गए लेकिन पीएम पद की उनकी दावेदारी के बाद पार्टी के अंदर और बाहर हर तरफ से विरोध में कई आवाजें उठीं. आज प्रधानमंत्री सीरिज में जानते हैं मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कहानी.
Pradhanmantri Series, Narendra Modi: 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व का ही नतीजा था कि बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की. ये राजनीति का वो दौर था जब एक चेहरा पार्टी से बड़ा बनकर उभरा. बीजेपी ने इस चुनावों में पार्टी को नहीं बल्कि ‘मोदी’ को आगे किया. महंगाई से लेकर भ्रष्टाचार तक कांग्रेस के खिलाफ देशभर में ऐसा माहौल था कि पार्टी को लगा कि अब नहीं तो कभी नहीं. नतीजा था कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 30 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया. लेकिन नरेंद्र मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्री आवास से प्रधानमंत्री निवास तक पहुंचने की राह इतनी भी आसान नहीं थी. वो गुजरात से दिल्ली तो पहुंच गए लेकिन पीएम पद की उनकी दावेदारी के बाद पार्टी के अंदर और बाहर हर तरफ से विरोध में कई आवाजें उठीं. आज प्रधानमंत्री सीरिज में जानते हैं मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कहानी.
2007 से ही थी पीएम पद के लिए मोदी की चर्चा
पीएम पद के लिए मोदी के नाम का ऐलान तो 2013 में हुआ लेकिन 2007 के विधानभा चुनाव नतीजों के बाद से ही उनके बढ़ते कद को देखकर उनके इर्दगिर्द पीएम पद की चर्चा चल पड़ी. 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले खुद बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा था कि मोदी पीएम पद के दावेदारों की लिस्ट में हैं. इसके बाद जब गुजरात ने नरेंद्र मोदी को चौथी बार गुजरात का सीएम चुना तो कई तरफ से उन्हें पीएम बनाने को लेकर मांग होनी लगी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में भी हलचल बढ़ गई.
2012 से ही नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के साथ-साथ अपनी ब्रैंडिंग शुरू कर दी थी. उन्होंने गुजरात के विकास मॉडल को खूब भुनाया और साथ ही कांग्रेस के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया. उन्होंने खुद को एकमात्र विकल्प के रूप में पेश किया.
पीएम बनने को लेकर बीजेपी में महाभारत
इधर, 2013 में बीजेपी के अंदर ही प्रधानमंत्री पद को लेकर घमासान चल रहा था. प्रधानमंत्री पद के दावदारों में लाल कृष्ण आडवाणी सबसे आगे थे. दरअसल, बीजेपी को नींव से इमारत तक खड़ी करने का श्रेय उन्हें ही जाता है, ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक सक्रियता समाप्त हो जाने के बाद इस पद के लिए उनके नाम का आना स्वभाविक था. उनके अलावा सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह भी दौड़ में थे. तत्कालीन मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान का नाम भी उछाला गया. पार्टी के अंदर और बाहर हर तरफ चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री कैंडिडेट की घोषणा का सवाल गर्म था.
13 सितंबर 2013 वो दिन था जब बीजेपी अपने पीएम पद के उम्मीदवार का ऐलान करने वाली थी. गुजरात से लेकर दिल्ली तक हर तरफ हलचल थी. जहां आडवाणी पहले ही इस पद के दावेदारों में से थे. उनका कद इतना बड़ा था कि वो 1996 और 1998 में भी प्रधानमंत्री पद के असल दावेदार माने जाते थे, लेकिन हवाला कांड और अन्य राजनीतिक परिस्थितियां उनके पक्ष में नहीं गईं. लेकिन इस बार आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने में रुकावट कोई और नहीं बल्कि उनकी ही पार्टी थी. पार्टी नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाना चाहती थी लेकिन आडवाणी तैयार नहीं थी. वजह थी नरेंद्र मोदी का 2002 के गुजरात दंगों में दागदार होना. आडवाणी का मानना था कि अगर मोदी को पीएम कैंडिडेट घोषित किया गया तो यूपीए के मंहगाई और भ्रष्टाचार पर चर्चा नहीं होगी. ऐसी खबरें थीं कि मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज की भी यही राय थी. दिलचस्प बात ये थी कि आडवाणी जिस मोदी का विरोध कर रहे थे कभी उनके सीएम की कुर्सी खुद उन्होंने ही बचाई थी.
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी को बर्खास्त कर देना चाहते थे. तब आडवाणी ने ही धमकी देकर ऐसा करने से रोक लिया था. हाल ही में बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिन्हा ने इस बात का दावा किया. उन्होंने इस वाकये का जिक्र करते हुए कहा, ''तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात में सांप्रदायिक दंगों के बाद यह तय कर दिया था कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस्तीफा देना चाहिए. गोवा में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक हुई थी, जिसमें अटल जी मन बना कर गए थे कि मोदीजी इस्तीफा नहीं देंगे तो उनको वो बर्खास्त करेंगे. पार्टी में इस पर मंत्रणा हुई और आडवाणी जी ने इसका विरोध किया था और अटलजी को यहां तक बात कही कि यदि मोदी को आप बर्खास्त करेंगे तो मैं (आडवाणी) भी सरकार में पद (गृह मंत्री) से त्याग पत्र दे दूंगा. इसलिए वह बात वहीं रुक गई और मोदी अपने पद पर बने रहे.''
13 सितंबर 2013- दिनभर का घटनाक्रम
प्रधानमंत्री पद के आडवाणी प्रबल दावेदार थे वहीं मोदी दिग्गज नेता बनकर उभरे. 13 सितंबर, 2013 को दिल्ली में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का ऐलान हुआ लेकिन उससे पहले करीब 5 घंटे तक खूब ड्रामा हुआ. आपको बताते हैं उस दिन का पूरा हाल-
दोपहर 1 बजे- गुजरात में मोदी को एक किताब का विमोचन करना था लेकिन अचानक खबर आई कि वो अपने सभी कार्यक्रम रद्द करके दिल्ली आएँगे.
दोपहर 2.30 बजे- दिल्ली से लेकर मुंबई तक जश्न शुरु हो गया. मोदी के मुखौटे हर तरफ नज़र आने लगे.
दोपहर 3 बजे- मोदी गुजरात में अपने मुख्यमंत्री आवास से दिल्ली के लिए निकले. इस वक्त तक ये जगजाहिर हो चुका था कि लाल कृष्ण आडवाणी नाराज हैं. करीब 3 बजे बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह खुद आडवाणी को मनाने उनके घर पहुंचे.
4.30 बजे- बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक शाम पांच बजे होने वाली थी. उससे पहले मोदी के बड़े-बड़े पोस्टर हेड क्वार्टर पहुंचने लगे. इस वक्त ये भी साफ हो गया था कि पार्टी अब किसी की नाराजगी को तवज्जो नहीं देने वाली है.
शाम 5 बजे- नरेंद्र मोदी दिल्ली पहुंचे. बीजेपी बार-बार कहती रही कि पार्टी में कोई नाराजगी नहीं है लेकिन ये बात भी सामने आ गई कि मोदी के नाम पर आडवाणी सहमत नहीं हैं.
शाम 5.30 बजे- खबर आई कि आडवाणी का काफिला संसदीय बोर्ड की बैठक में शामिल होने के लिए तैयार था लेकिन अचानक उनका मन बदल गया. वो तो नहीं आए लेकिन सामने आई उनकी लिखी चिट्ठी जिसमें उन्होंने अपने ना आने की वजह बताई.
शाम सवा 6 बजे - आडवाणी की गैर-मौजूदगी में बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम का ऐलान किया. यहां मोदी ने कहा, ''चुनाव में बीजेपी विजयी हो उसके लिए परिश्रम करने में कोई कमी नहीं रखूंगा.''
इस दौरान मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज की मौजूदगी रही. नाम का ऐलान होते ही जब मोदी जोशी से आशीर्वाद लिया तो उन्होंने गले लगा लिया.
शाम 7 बजे- मोदी आडवाणी से मिलने उनके घर पहुंचे और उनका आशीर्वाद लिया.
पार्टी के बाहर भी विरोध
लेकिन असली युद्ध तो अब शुरु हुआ. मोदी के नाम की घोषणा के साथ ही लाल कृष्ण आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. राजनाथ सिंह को उन्होंने इस्तीफे की चिट्ठी भेजी. इस हलचल को देखकर बीजेपी के साथ आरएसएस भी सक्रीय हुआ. सर संघ चालक मोहन भागवत खुद आडवाणी को मनाने उनके घर पहुंचे. कुछ समय बाद आडवाणी ने कहा कि जो पार्टी कहेगी वो उसे मानेंगे.
अंदर का घमासान तो थम गया लेकिन बाहर मोदी का विरोध शुरु हो गया. नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने बीजेपी के साथ 17 साल के गठबंधन को तोड़ दिया और एनडीए से बाहर हो गए. 19 जून 2013 को नीतीश कुमार ने कहा था, ‘’आयो तो बार-बार संदेशा अमीर का, हमसे मगर हो न सकता सौदा जमीर का.’’ नीतीश कुमार लगातार मोदी पर सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगाते रहे.
मोदी के साथ खड़ा रहा RSS
इन विरोधों के बीच मोदी के लिए आरएसएस हमेशा डटकर खड़ा रहा और उन्हें आगे बढ़ाने में आरएसएस की ही मुख्य भूमिका रही. मोहन भागवत ने उस वक्त कहा था, ‘’मोदी अकेले ऐसे आदमी है जो आरएसएस की विचारधारा से जुड़े रहे हैं.’’ 2014 के चुनावों को आरएसएस ने कितनी अहमियत दिया इसका अंदाजा संघ प्रमुख की इस बात से लगा सकते हैं, ‘’अगर हम 2014 में जीतते हैं तो बीजेपी अगले 25 सालों तक सत्ता में रह सकती है लेकिन अगर हम हारते हैं तो हम चाहें जितनी भी कोशिश कर लें अगले 100 साल तक हमारी कोई मदद नहीं कर सकता.’’ इस तरह अपने प्रचारक को पीएम बनाने के लिए आरएसएस हमेशा सक्रीय रहा. 100 प्रतिशत वोटिंग में मुख्य भूमिका रही.
16वीं लोकभा के लिए 2014 में सात अप्रैल से 12 मई तक नौ चरणों में चुनाव हुए. इस दौरान मोदी ने सारा दारोमदार अपने कंधों पर लिया. उन्होंने 25 राज्यों में करीब 437 बड़ी रैलियों को संबोधित किया, पांच हजार से ज्यादा सभाएं की और करीब 3 लाख किलोमीटर की यात्रा की. उस वक्त देश में हर तरफ मोदी लहर थी. मोदी ने लोगों से मंहगाई खत्मकर ‘अच्छे दिन’ लाने का वादा किया, ‘सबका साथ, सबका विकास’ पर जोर दिया और विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने के मुद्दे को जोरदार तरीके से पेश किया.
बीजेपी ने मिशन 272+ का प्लान बनाया था. पार्टी और प्रत्याशियों को हटाकर मोदी को केंद्र में रखकर प्रचार किया गया. प्रचार के लिए कई ऐसे नारों के मैदान में उतरी थी जो लोगों की ज़ुबान पर कुछ ही दिनों में चढ गए, इनमें 'अबकी बार मोदी सरकार', हर-हर मोदी, घर-घर मोदी,' जैस नारे शामिल थे. उस वक्त देश में लोगों के पास दो ही विकल्प थे या तो वो मोदी को वोट दे रहे थे या नहीं दे रहे थे.
80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश हमेशी ही निर्णायक भूमिका में होता है. यही वजह थी कि नरेंद्र मोदी वडोदरा के साथ-साथ वाराणसी से भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया.
ऐतिहासिक जीत
16 मई 2014 को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में फैसले का दिन था. इस दिन जो हुआ उसका अंदाजा तो खुद बीजेपी को भी नहीं था. बीजेपी को अपने दम पर 282 सीटें मिलीं. वहीं एनडीए की बात करें तो 543 में से 336 सीटों पर इस गठबंधन ने कब्जा जमा लिया.
पीएम मोदी को दोनों ही लोकसभा सीटों पर बंपर जीत मिली. वाराणसी में मोदी को 5 लाख 81 हजार 022 वोट मिले थे. उन्होंने आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल को को करीब 3 लाख 71 हजार 784 मतों से हराया था. वड़ोदरा से भी उन्हें दमदार जीत मिली, हालांकि बाद में उन्होंने वड़ोदरा सीट छोड़ दी थी.
1984 के लोकसभा चुनावों के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब किसी पार्टी को इतनी सीटें मिलीं कि उसे सरकार बनाने के लिए किसी के समर्थन की जरूरत ना पड़े. हालांकि वोट प्रतिशत के मामले में भी नया रिकॉर्ड बना. बीजेपी का 31 फीसदी वोट प्रतिशत रहा जो कि आजादी के बाद हुए चुनाव में बहुमत पाने वाली किसी भी पार्टी का सबसे कम प्रतिशत था.
इस चुनाव में कांग्रेस की इतनी दुर्गति हुई कि वो विपक्ष में बैठने लायक सीटें भी नहीं ला पाई. विपक्ष में बैठने के लिए किसी भी पार्टी के पास लोकसभा की 10% सीटें (55) होनी चाहिए लेकिन कांग्रेस की उतनी सीटें भी नहीं मिली. यूपीए 59 सीटें और कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई.
हार के बाद 17 मई को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया. 20 मई को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नरेंद्र मोदी को सरकार बनाने का न्यौता दिया.26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने भारत के 14वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.
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