मोदी Vs ममता: पश्चिम बंगाल में डबल डिजिट में पहुंचने की लड़ाई लड़ रही BJP कितना सफल होगी?
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. इन सीटों पर चार दलों टीएमसी, बीजेपी, लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस के बीच मुकाबला है. 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनावों में टीएमसी का दबदबा रहा है.
नई दिल्ली: दुनिया को अध्यातम और शांति का पाठ पढ़ाने वाले स्वामी विवेकानंद, वक्त से पहले समाज को नई दिशा देने वाले समाज सुधारक राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, विश्व साहित्य में अपनी लेखनी से नई दुनिया गढ़ने वाले ठाकुर रबीन्द्रनाथ टैगोर और भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेताजी सुभाष चंद्रबोस जैसे नेता की धरती पश्चिम बंगाल इन दिनों राजनीतिक तौर पर अशांत है. और वजह चुनाव है.
सूबे में हजारों की संख्या में राज्य पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनाती के बावजूद हिंसा देखने को मिल रही है. यही कारण है कि चुनाव आयोग ने इतिहास में पहली बार संविधान की अनुच्छेद 324 का प्रयोग किया और पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार की समय सीमा घटा दी. बंगाल में 17 मई की शाम को प्रचार खत्म होने वाला था लेकिन चुनाव आयोग के आदेश के मुताबिक प्रचार आज रात 10 बजे थम जाएगा. आयोग के इस कदम की विपक्षी पार्टियों ने कड़ी आलोचना की है. वहीं बीजेपी ने इसका स्वागत किया है.
आयोग ने यह कदम समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तोड़े जाने और अमित शाह की रैली में हिंसा के मद्देनजर उठाया है. इस दोनों घटना के लिए टीएमसी और बीजेपी एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रही है. दरअसल, पश्चिम बंगाल में चार प्रमुख (टीएमसी, बीजेपी, वामदल और कांग्रेस) पार्टियां हैं. लेकिन साल 2011 से ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का एकक्षत्र राज है. ममता बनर्जी ने करीब 34 साल तक सत्ता में रही वामदलों को शिकस्त देकर 2011 में पहली बार मुख्यमंत्री बनी. इसके बाद वामदलों का जनाधार लगातार घटता गया. कांग्रेस हाशिये पर थी ही. इस बीच बीजेपी ने बंगाल में सियासी जमीन को बढ़ाना शुरू कर दिया.
2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को आक्रामक ढ़ंग से चुनौती दी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके गठबंधन को मात्र दो सीटों आसनसोल और दार्जिलिंग में जीत मिली. वहीं ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने 34 सीटों पर जीत दर्ज की. कम्यूनिस्ट पार्टी को दो और कांग्रेस को चार सीटें मिली. इससे पहले 2009 के चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में बीजेपी को एक सीट मिली थी. तब वामदलों के गठबंधन ने 15, कांग्रेस-टीएमसी ने 26 और बीजेपी गठबंधन ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी.
2009 के चुनाव में वामदलों के गठबंधन को करीब 43 प्रतिशत वोट मिले. कांग्रेस-टीएसमसी गठबंधन ने 44 प्रतिशत वोट हासिल किये. वहीं बीजेपी गठबंधन ने छह प्रतिशत मत हासिल किए. 2014 में समीकरण पूरी तरह बदल गया. टीएमसी को अकेले 39 प्रतिशत, वाम गठबंधन को करीब 29 प्रतिशत, बीजेपी को करीब 17 प्रतिशत और कांग्रेस को करीब 10 प्रतिशत मत मिले.
2011 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो टीएमसी ने 295 सीटों में से 184 और कांग्रेस ने 42 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं बीजेपी गठबंधन ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी को इस चुनाव में एक भी सीट नहीं मली. वामदलों के गठबंधन को 62 सीटें मिली.
वहीं 2016 के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो इस चुनाव में पश्चिम बंगाल की 295 सीटों में टीएमसी को 211, सीपीआईएम को 26, कांग्रेस को 44, बीजेपी को 3, सीपीआई को एक, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को तीन सीटें मिली.
वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो टीएमसी को करीब 45 प्रतिशत, सीपीआईएम को 20 प्रतिशत, कांग्रेस को 12 प्रतिशत, बीजेपी को 10 प्रतिशत (2011 के मुकाबले 5.56 प्रतिशत का फायदा), गोरखा जनमुक्ति मोर्च को 0.5 प्रतिशत और सीपीआई को 0.7 प्रतिशत वोट मिले. बीजेपी के वोट प्रतिशत को देखें तो पार्टी को चुनावों में जबरदस्त फायदा मिला.
2014 के लोकसभा चुनाव में 2009 के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक वोट मिलने के बाद बंगाल में बीजेपी नई रणनीति के साथ उतरी. बढ़ते वोट प्रतिशत ने कार्यकर्ताओं में नई जान डाल दी. मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय को सूबे का प्रभारी नियुक्त किया गया. राहुल सिन्हा की जगह दीलीप घोष को राज्य बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आरएसएस पूरी तरह से सक्रिय हो गई. ध्यान रहे कि आरएसएस के फाउंडर केबी हेडगवार ने कोलकाता में रहकर ही मेडिसिन की पढ़ाई की थी. यही नहीं भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म भी कोलकाता में हुआ.
विकास के एजेंडे के साथ बीजेपी ने यहां, चिटफंड घोटाला, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का राग छेड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समय-समय पर बंगाल का दौरा करने लगे. इस दौरान उनके निशाने पर ममता बनर्जी रहीं. ज्यादातर रैलियों में बांग्लादेश से कथित तौर पर बंगाल में आए घुसपैठियों के खिलाफ आवाज उठाई गई और 'जय श्री राम' का नारा बुलंद किया गया.
एनआरसी का मुद्दा छाया
यही नहीं 2019 का चुनाव नजदीक आते-आते असम में लागू किये गए एनआरसी का मुद्दा बंगाल में भी गूंजने लगा. बीजेपी नेताओं ने साफ-साफ शब्दों में कई बार कहा कि असम की तरह बंगाल में भी एनआरसी लागू किया जाएगा. ममता बनर्जी ने इसके खिलाफ खुली चुनौती दी. कई नेताओं को बीजेपी शासित राज्य असम भेजा. संसद से लेकर सड़क तक टीएमसी ने एनआरसी के विरोध में आवाज उठाई. बीजेपी ने आरोप लगाया कि सिर्फ वोट बैंक के लिए ममता बनर्जी घुसपैठिये को शरण दे रही हैं. पार्टी ने आरोप लगाया कि यहां मुहर्रम की इजाजत तो होती है लेकिन दुर्गा पूजा और रामनवमी नहीं मनाने दिया जाता.
इसके जवाब में ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संस्कृत में धार्मिक श्लोक पढ़ने के चुनौती दी. तनातनी बढ़ती गई. चुनाव से पहले चिटफंड मामले में सीबीआई कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए कोलकाता पहुंची. पुलिस ने सीबीआई की टीम को ही हिरासत में ले लिया. ममता बनर्जी इसके खिलाफ धरने पर बैठ गई.
ममता बनर्जी ने कहा कि चिटफंड मामले में मोदी सरकार बीजेपी के नेता मुकुल रॉय (टीएमसी के पूर्व नेता और चिटफंड घोटाला मामले में आरोपी) के खिलाफ भी कार्रवाई करे. पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. पूरी घटना से ठीक पहले ममता बनर्जी ने कोलकाता में विपक्षी नेताओं की रैली आयोजित की थी. इस रैली में 20 के करीब विपक्षी पार्टियों के दिग्गज नेता पहुंचे और एकजुटता दिखाया.
इस बीच चुनाव का एलान हो गया. चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ममता बनर्जी को 'स्पीड ब्रेकर दीदी' बताते हैं तो ममता बनर्जी पीएम मोदी को 'एक्सपायरी बाबू' बताती हैं. अब इस तनातनी और जुबानी जंग के बीच देखना दिलचस्प होगा कि आज से ठीक एक सप्ताह बाद आने वाले चुनाव परिणाम में दोनों दलों को क्या मिलता है.