One Nation One Election Committee: लोकसभा सचिवालय की ओर से 2016 में तैयार किए गए एक नोट में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक साथ चुनाव कराने को लेकर विस्तार से चर्चा की गई थी. यह नोट लोकसभा सचिवालय के अलावा निदेशक बी फणी कुमार, संयुक्त निदेशक बेला राउथ की मौजूदगी में संयुक्त सचिव कल्पना शर्मा और निदेशक सीएन सत्‍यनाथन की देखरेख में तैयार किया गया था.


नोट में कहा गया, लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की अनिवार्यता पर कई स्तरों पर चर्चा की गई है. एक सुविचारित विचार यह है कि एक साथ चुनाव से न केवल मतदाताओं का उत्साह बना रहेगा, बल्कि सरकारी खजाने में भी भारी बचत होगी. साथ ही प्रशासनिक प्रयास की दोहराव से भी बचा जा सकेगा. इससे राजनीतिक दलों के खर्चों को नियंत्रित करने की भी उम्मीद है. एक साथ चुनाव कराने से आदर्श आचार संहिता को बार-बार लागू करने से भी बचा जा सकेगा जो सरकार के प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित करता है.


चुनाव खर्च कम हो जाएगा
भारत में एक साथ चुनावों के इतिहास पर नोट में कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में हुए थे. इसके बाद, हालांकि, इस क्रम को बनाए नहीं रखा जा सका.


एक साथ चुनाव कराने पर नोट में कहा गया है कि ऐसा महसूस किया गया कि एक साथ चुनाव कराने से हर साल अलग-अलग चुनाव कराने पर होने वाला भारी खर्च कम हो जाएगा. वर्तमान में, चुनाव आयोग ने लोकसभा और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव कराने की लागत 4,500 करोड़ रुपये आंकी गई है.


पीएम मोदी ने भी जताई थी सहमती
नोट में कहा गया है, "चुनावों के कारण चुनाव वाले राज्य/क्षेत्र में आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है और परिणामस्वरूप वहां केंद्र और राज्य सरकारों के संपूर्ण विकास कार्यक्रम और गतिविधियां रुक जाएंगी. अक्सर चुनावों के कारण लंबे समय तक आचार संहिता लागू रहती है जो सामान्य शासन को प्रभावित करता है.''


लोकसभा सचिवालय के इस नोट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की व्यवहार्यता पर विचार करने पर कई बार बात की है और इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है.


चुनाव कराने के लिए ये दो बाते जरूरी
मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) नसीम जैदी ने 2016 में कहा था कि अगर कुछ शर्तें पूरी होती हैं और अधिक संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं तो चुनाव आयोग एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव कराने के लिए तैयार है.


आयोग एक साथ चुनाव करा सकता है जिसके लिए दो बातें ध्यान देने योग्य हैं - पहला, कई संवैधानिक संशोधन करने होंगे; और दूसरा, सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति होनी चाहिए.


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