नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक तरफ बीजेपी पर देश को बांटने की राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि बीजेपी कह रही है कि राहुल विदेश में जाकर साजिश न करें. असल में देश में गुजरात चुनाव के नतीजों के बाद से बीजेपी के खिलाफ गोलबंदी हो रही है. इस गोलबंदी की तस्वीरें आज दिल्ली से आईं. जंतर मंतर पर दलित नेता चंद्रशेखर की रिहाई के लिए ‘युवा हुंकार रैली’ में गुजरात के विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी सहित कई नेता पहुंचे. ऐसे में सियासी गलियारों में ये सवाल भी उठने लगा है कि क्या देश में बीजेपी को हराने के लिए विरोधी गोलबंद हो रहे हैं?


कौन है चंद्रशेखर?


दलित नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण भीम आर्मी का प्रमुख हैं. चंद्रशेखर रासुका के तहत 8 जून से जेल में बंद हैं. सहारनपुर में मई महीने में जातीय हिंसा हुई थी, जिसमें एक शख्स की मौत हुई थी. चंद्रशेखर उर्फ रावण पिछले साल सहारनपुर में जातीय हिंसा के बाद चर्चा में आए. दिल्ली के जंतर मंतर पर रैली करके आज चंद्रेशखर को रिहा करने की मांग की गई. इस हुंकार रैली में मंच पर गुजरात के दलित विधायक जिग्नेश मेवाणी, असम के सामाजिक कार्यकर्ता अखिल गोगोई, जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, देशविरोधी नारे लगाने के आरोपी उमर खालिद और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सहित दर्जनों लोग मौजूद थे.


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पिछले हफ्ते महाराष्ट्र में दलित-सवर्ण हिंसा के बाद अब यूपी में चंद्रशेखर की रिहाई की मांग के बहाने जातीय माहौल गर्माने की कोशिश हो रही है. असल में इस जातीय राजनीति के पीछे मकसद वोट बैंक को मजबूत करना है. मंगलवार को जंतर-मंतर पर जितने भी नेता मंच पर भाषण देने पहुंचे सबने अपने भाषण में मोदी सरकार पर हमले किए. भीड़ तो उम्मीद के मुताबिक नहीं जुटी लेकिन ये लोग जो संदेश देना चाहते थे उसमें कामयाब रहे.


देश में करीब 21 फीसदी दलित आबादी है. सबसे ज्यादा यूपी में हैं जहां कुल आबादी का करीब 21 फीसदी दलित है. वहीं पंजाब की आबादी में 32 फीसदी दलित हैं. महाराष्ट्र में दलितों की आबादी करीब 12 फीसदी है.


2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों के वोट का बड़ा हिस्सा बीजेपी के खाते में गया था. यही नरेंद्र मोदी की बंपर जीत का एक बड़ा कारण रहा. 2014 में बीजेपी को 24 फीसदी दलितों के वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस को 19 और बीएसपी को 14 फीसदी दलितों ने वोट डाला. इससे पहले के चुनावों में बीजेपी को महज 12-14 फीसदी दलितों के वोट मिलते थे.


बीजेपी के पक्ष में दलितों की गोलबंदी का असर ये रहा कि दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती की पार्टी बीएसपी का खाता तक नहीं पाया. 2014 के बाद जातीय हिंसा के जितने भी बड़े कांड हुए सब बीजेपी के राज में ही हुए. बीजेपी कांग्रेस पर आरोप लगाती है और कांग्रेस बीजेपी पर. असल में मकसद 2019 लोकसभा चुनाव में वोट पाना है.