Pradhanmantri Series, P. V. Narasimha Rao: 1991 में पीवी नरसिम्हा राव राजनीति से संन्यास लेने की योजना बना रहे थे लेकिन तभी ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया. राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को ऐसा नेता चाहिए था जो पार्टी के साथ-साथ देश को भी संभाल सके. ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी ने पीवी नरसिम्हा राव को चुना और उन्होंने पीएम पद संभाला. हालांकि नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी की पहली पसंद नहीं थे. वो तत्कालीन उप-राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को पीएम बनाना चाहती थीं. आज प्रधानमंत्री सीरीज में जानते हैं पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने की कहानी.
9वीं लोकसभा 16 महीनों में ही भंग हो गई और 1991 में 10वीं लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई. चुनाव प्रचार के दौरान ही तमिलनाडु के श्रीपेंरबदूर में 21 मई, 1991 को आतंकवादियों ने मानव बम के जरिए राजीव गांधी की हत्या कर दी.
चुनाव तीन चरणों में होने थे और तब तक 20 मई को एक चरण का चुनाव संपन्न हो चुका था. राजीव गांधी की हत्या के बाद बाकी दो चरणों के चुनाव कुछ दिन के लिए टाल दिए गए, जो 12 जून और 15 जून को संपन्न हुए.
(चुनावी रैली के दौरान राजीव गांधी, 16 मई 1991 की तस्वीर)
राजीव गांधी की हत्या के बाद सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या सोनिया गांधी उनकी उत्तराधिकारी बनेंगी? आखिर अब पार्टी की कमान किसके हाथ में होगी और अगर पार्टी बहुमत में आती है तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा.
22 मई को दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई और जिसमें मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह ने सोनिया गांधी को पार्टी लीडर चुने जाने की वकालत की लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया.
(बेटी प्रियंका के साथ सोनिया गांधी, 22 मई 1991 की तस्वीर)
इसके बाद बाकी नेताओं ने अपनी दावेदारी के लिए दांव-पेंच आजमाने शुरु किए. उस समय प्रधानमंत्री पद की दौड़ में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार सबसे आगे थे. मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी के दावेदारी की भी खबरे थीं.
विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘हाफ लॉयन’ (Half - Lion: How P.V Narasimha Rao Transformed India) में लिखा है कि इंदिरा गांधी के प्रमुख सचिव रह चुके पीएन हक्सर ने सोनिया को सलाह दी कि नरसिम्हा राव को प्रधामंत्री बनाना चाहिए.
उस साल पीवी नरसिम्हा राव पब्लिक लाइफ से रिटायर होने की योजना बना रहे थे. उन्होंने अपने घर हैदराबाद शिफ्ट होने के लिए पैकिंग भी कर ली थी. राजीव गांधी की हत्या के तुरंत बाद जब बीबीसी ने नरसिम्हा राव को फोन किया और पूछा कि अगर उन्हें पार्टी की बाग़डोर संभालने के लिए कहा गया तो क्या करेंगे? इस सवाल पर उन्होंने कहा था, ''यह तो कांग्रेस कार्य समिति पर है, वो जो भी ज़िम्मेदारी दे.'' इसके बाद से ही पीवी नरसिम्हा राव की दावेदारी की भी खबरें हर तरफ छा गईं.
सोनिया के मुख्य सलाहकार रहे के. नटवर सिंह के मुताबिक राजीव गांधी के अंतिम संस्कार के एक दिन बाद सोनिया गांधी ने उन्हें बुलाया और अगले पीएम को लेकर सलाह मांगी. तब नटवर सिंह ने सोनिया को पीएन हक्सर से बात करने की सलाह दी.
पीएन हक्सर ने सोनिया से कहा कि उप-राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को पार्टी लीडर चुनना चाहिए. विनय सीतापति ने लिखा है, ''सोनिया ने नटवर सिंह और अरुणा आसफ अली को शंकर दयाल शर्मा के पास भेजा लेकिन उन्होंने ये पद स्वीकार करने से इंकार कर दिया. शंकर दयाल शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री का पद फुल टाइम जॉब है. मेरी उम्र और सेहत ऐसी नहीं है कि मैं इस काम के साथ न्याय कर पाउंगा.’’
इसके बाद जब फिर सोनिया ने पीएन हक्सर से पूछा तो उन्होंने पीवी नरसिम्हा राव का नाम सुझाया. इसके अलावा राजीव गांधी के खास दोस्त सतीश शर्मा ने भी नरसिम्हा राव को पार्टी लीडर बनाने की सलाह दी थी.
29 मई को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में नरसिम्हा राव को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. लेकिन अभी शरद पवार रेस में थे. उनकी रणनीति ये थी कि नतीजे आने के बाद वो प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करेंगे.
18 जून की नतीजे आए और कांग्रेस ने 521 में से 232 सीटें जीतीं. हालांकि बहुमत से ये सीटें कम थीं लेकिन फिर भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
विनय सीतापति लिखते हैं कि नतीजे आने के दो दिन बाद 20 जून तक शरद पवार प्रधानमंत्री पद की रेस में थे. फिर उसी दिन शरद पवार ने अपनी दावेदारी वापस ले ली.
ससंद में 20 जून को ही पीवी नरसिम्हा राव को संसदीय दल का नेता चुना गया. अर्जुन सिंह ने उनका नाम प्रपोज किया.
उस समय ये भी कहा गया कि जब तक सोनिया पार्टी की कमान अपने हाथों में लेने के बारे में नहीं सोच लेती तब तक ही राव प्रधानमंत्री हैं. सुब्रमन्यम स्वामी ने तो तब ये भी कह दिया था कि सोनिया को पता है कि राव का कुछ दिनों में निधन हो जाएगा और तब वो टेक ओवर कर लेंगी.
21 जून को पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. वो 16 मई 1996 तक इस पर पर रहे.
उनकी कैबिनेट में शरद पवार रक्षा मंत्री बने. डॉक्टर मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया गया और अर्जुन सिंह को मानव संसाधन विकास मंत्रालय मिला.
नरसिम्हा राव ने उस साल लोकसभा चुनाव भी नहीं नहीं लड़ा था. बाद में वो आंध्रप्रदेश की नांदयाल सीट से उपचुनाव लड़े और जीते.
प्रधानमंत्री बनने के बाद सोनिया गांधी और नरसिम्हा राव के रिश्ते ठीक नहीं रहे. ऐसा कहा जाता है कि सोनिया गांधी को राव से जैसी उम्मीदें थे वो उनपर खरे नहीं उतरे. विनय सीतापति ने लिखा है, ''बकौल के. नटवर सिंह माने तो नरसिम्हा राव को लगा कि बतौर प्रधानमंत्री उन्हें सोनिया गांधी को रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं है और उन्होंने ऐसा ही किया. यह बात सोनिया गांधी को पसंद नहीं आई. नाराजगी बढ़ती गई''.
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू अपनी किताब '1991: हाउ पीवी नरसिम्हा राव मेड हिस्ट्री' में लिखते हैं, ''पीवी नरसिम्हा राव पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे. उन्होंने सरकार की कमान संभाली और राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखा. कांग्रेस का नेतृत्व ग्रहण किया और ये साबित किया कि नेहरू-गांधी परिवार से परे भी उम्मीद रखी जा सकती थी.''
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