अहमदाबाद: लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात में कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छी खबर है. गुजरात में हुए पटेल आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे हार्दिक पटेल आधिकारिक तौर पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए हैं. हार्दिक पटेल ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में सदस्यता ग्रहण की. हार्दिक पटेल ने कुछ दिन पहले ही एलान कर दिया था कि वह 12 मार्च को कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं. हालांकि हार्दिक पटेल लोकसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं इस पर कोई जानकारी सामने नहीं आई है.


बात अगर हार्दिक पटेल की करें तो वो गुजरात के युवा नेता और पाटीदार आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे हैं. हार्दिक पटेल आर्थिक और राजनीतिक तौर पर मजबूत कडवा पटेल समुदाय से आते हैं. अहमदाबाद के वीरमगाम तालुका में स्थित चंदननगरी गांव हार्दिक का जन्म 20 जुलाई 1993 को हुआ था.


हार्दिक शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ओबीसी में पाटीदार जाति को शामिल करने के लिए आंदोलन से सुर्खियों में आए. 2011 में हार्दिक पटेल उत्तर गुजरात में चल रहे सरदार पटेल ग्रूप (SPG) में शामिल हुए. 6 जुलाई 2015 को मेहसाणा में अपने समुदाय के साथ भव्य रैली का आयोजन किया. 17 अगस्त को सूरत और 25 अगस्त को अहमदाबाद में 20 लाख लोगों की भीड़ जुटाई.


हार्दिक पटेल का नाता विवादों से भी खूब रहा है, 17 अक्टूबर 2015 को सूरत में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए. 9 महीने जेल में रहना पड़ा, 13 जुलाई 2016 को 6 महीने गुजरात से बाहर रहने पर सशर्त जमानत मिली. राजस्थान के उदयपुर में रहने के बाद 17 जनवरी 2017 को गुजरात वापस आए. 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन दिया.


गुजरात में पटेल वोट की क्या अहमियत?
गुजरात की आबादी में 15 प्रतिशत हिस्सा पटेलों की आबादी का है, 182 विधानसभा सीटों में से 80 सीटों ऐसी मानी जाती हैं जहां पाटीदार वोट किसी की भी किस्मत बदल सकता है. उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र के इलाके में पटेलों का प्रभाव माना जाता है. पटेलों में भी श्रेणियां हैं, लेवआ पटेव और कडवा पटेल. सौराष्ट्र और मध्य गुजरात में जहां लेउवा पटेल का प्रभाव है तो नहीं उत्तरी गुजरात में कडवा पटेलों का प्रभाव माना जाता है.


1980 से पटेल वोट कांग्रेस के खाते में जाता रहा है. लेकिन माधव सिंह सोलंकी के KHAM (क्षत्रीय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) फॉर्मूले और हिंदुत्व की वजह से पटेलों का झुकाव बीजेपी की ओर चला गया. 1980 में पटेलों ने ओबीसी आरक्षण के लिए बक्शी कमीशन की सिफारिश का विरोध किया था.