प्रशांत किशोर की 'जन सुराज' में कौन होगा बैक-बोन? बिहार चुनाव से पहले पार करने होंगे ये 3 बड़े रोड़े
Prashant Kishor Jan Suraj: पॉलीटिकल एनालिस्ट से नेता बने प्रशांत किशोर आज अपनी पार्टी जन सुराज लॉन्च करने जा रहे हैं. ऐसे में उनकी पार्टी में बड़े चेहरे कौन होंगे, उनके एजेंडे क्या होंगे समझते हैं.
Prashant Kishor Jan Suraj launch: पॉलीटिकल एनालिस्ट से नेता बने प्रशांत किशोर ने आज अपनी पार्टी जन सुराज लॉन्च कर दी है. अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए पीके अपनी जन सुरज पदयात्रा को जारी रखेंगे. इस बीच यह जानना होगा कि पार्टी की बैकबोन यानी प्रमुख चेहरे कौन होंगे. समझना होगा कि कैसे पार्टी अन्य दलों से अलग हटकर अपनी जगह बना पाएगी और क्या उसके लिए चुनौतियां होंगी?
प्रशांत किशोर कह चुके हैं कि उनकी पार्टी जन सुराज में हर वर्ग से नेता और कार्यकर्ता जुड़ेंगे. पार्टी में शिक्षित लोगों को भी जोड़ना है. इसके तहत अब तक 100 से भी ज्यादा पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारी जन सुराज से जुड़ चुके हैं. अगर पार्टी के बड़े नेताओं की बात करें तो केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके डीपी यादव, भाजपा के पूर्व सांसद छेदी पासवान और पूर्व सांसद पूर्णमासी राम जुड़ चुके हैं. वही मधुबनी के रहने वाले मनोज भारती पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष बने हैं. इन्होंने नेतरहाट से अपनी पढ़ाई पूरी की इसके बाद आईआईटी कानपुर और आईआईटी दिल्ली से एम टेक किया.
बात करें जन सुराज पार्टी के एजेंडे की तो पार्टी गरीब, रोजगार और पलायन का मुद्दा लेकर जनता के बीच जा रही है.
पलायन को रोकने के लिए रोजगार की गारंटी
प्रशांत किशोर लोगों के पलायन को रोकने के लिए रोजगार की भी बात कर रहे हैं. उनका कहना है कि लोगों को 10-12 हजार तक के रोजगार बिहार में ही मिल जाएंगे. इसके लिए उन्हें बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. केवल रोजगार बल्कि गरीबों के लिए पेंशन की राशि भी बढ़ाई जाएगी.
पंचायत पर फोकस
प्रशांत किशोर अपना फोकस गांव की पंचायत पर कर रहे हैं. दरअसल, बिहार की आधे से ज्यादा आबादी गांव में बसती है और गांव में विकास उतना हो नहीं पाया है इसलिए प्रशांत किशोर का फोकस गांव की पंचायत पर है. उनका कहना है कि वह अपनी पदयात्रा के जरिए बिहार की सभी 8500 पंचायत तक पहुंचेंगे और अपने विकास के प्लान को बताएंगे.
फैक्ट्री के रिवाइवल
पीके ने बिहार में बंद पड़ी फैक्ट्री के रिवाइवल की भी बात की है .उनका कहना है कि बिहार के विकास के लिए उनकी पार्टी का रोड मैप अगले साल फरवरी तक आ जाएगा और इसके लिए 10 अर्थशास्त्री लगे हुए हैं. नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार के पास समुद्र नहीं है इसलिए उन्हें आलू और बालू से ही काम चलाना होगा. नीतीश कुमार किस बात पर तंज कसते हुए पीके ने कहा था कि बिहार में गन्ने के खेत तो हैं फिर चीनी मीलें क्यों बंद है.
शिक्षा को शराबबंदी से जोड़ा
प्रशांत किशोर शराबबंदी को लेकर काफी मुखर है. उनका कहना है कि जैसे ही उनकी सरकार बनेगी 15 मिनट के भीतर शराबबंदी खत्म कर दी जाएगी. उनका कहना है कि शराब से होने वाली राजस्व आय को एजुकेशन पर खर्च किया जाएगा. पीके का यह भी कहना है कि भले ही उनकी शराबबंदी वाली बात महिलाओं को पसंद ना आए और वह उन्हें वोट न दें, लेकिन वह गलत नहीं बोलेंगे.
क्यों होंगे चैलेंज?
पीके की जन सुराज ऐसे समय में अस्तित्व में आई है, जब यहां पहले से ही कई राजनीतिक दल जमीनी तौर पर अपनी पकड़ मजबूत किए हुए हैं, जैसे लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल, नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड), कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियां भी यहां पर हैं. ऐसे में पीके के लिए अपनी पकड़ मजबूत बनाना बड़ा चैलेंज होगा.
जातीय राजनीति
बिहार की राजनीति जातियों से होकर गुजरती है. हर जाति की एक-एक पार्टी है. जैसे लालू यादव की पार्टी यादव और मुसलमानों की है, नीतीश कुमार की पार्टी कुर्मी और कुशवाहा की है, मुकेश सहनी की पार्टी निषाद समाज के लिए है. ऐसे में प्रशांत किशोर के लिए इन सभी पार्टियों के कोर वोटरों को अपने पक्ष में लाना भी एक बड़ी चुनौती होगी.
महिला वोटरों को साधना
महिला वोटरों को अपनी ओर लेकर आना भी प्रशांत किशोर के लिए बड़ी चुनौती होगी. जैसा की पीके कहते हैं कि वह शराबबंदी को खत्म कर देंगे ऐसे में महिला वोटर उनसे दूर हो सकती है. बिहार में नीतीश कुमार को महिला वोट बैंक का समर्थन इसलिए है क्योंकि वह शराबबंदी की बात करते हैं.
बाकियों से अलग कैसे है पार्टी?
प्रशांत किशोर शुरुआत से यह कहते आ रहे हैं कि उनकी पार्टी बाकी राजनीतिक दलों से अलग होगी, जिसका फोकस हर वर्ग के लोगों पर और हर फील्ड के लोगों पर होगा. पार्टी अपने साथ साधारण लोगों से लेकर बड़े-बड़े पूर्व अवसर और समाज सेवकों को जोड़ रही है. इतना ही नहीं दूसरे दलों के तमाम नेता और कार्यकर्ता भी पार्टी से जुड़ रहे हैं.
जनता के बीच क्रेडिबिलिटी
बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू यादव की राजद बहुत पुरानी पार्टियां है और उनकी क्रेडिबिलिटी भी काफी ज्यादा है. लोग उनकी पार्टियों पर भरोसा करते हैं, लेकिन प्रशांत कुमार के पार्टी अभी मैदान में नहीं खिलाड़ी है ऐसे में अपनी जगह बनाना और लोगों का भरोसा जीतना भी एक बड़ी चुनौती होगी.