Punjab Elections 2022: अगले साल जिन राज्यों में पार्टियों की सियासत वोटों की गिनती से तय होगी, उनमें पंजाब (Punjab Assembly Elections) का भी नाम है. 'धान का कटोरा' कहे जाने वाले पंजाब की धरती में जितनी तरह की फसलें उगती हैं, वहां की राजनीति में मुद्दे भी उतने ही तरह के हैं. दिल्ली से कार से चलेंगे तो 5 घंटे में आप पहुंच जाएंगे चंडीगढ़ यानी पंजाब की राजधानी. यही वो जगह है जहां से सूबे की सियासत चलती है, रणनीतियां बनती हैं.
राज्य में चुनाव की तारीखों के ऐलान में भले ही कुछ दिनों का वक्त बचा हो लेकिन राजनैतिक तिकड़म लगाने का दौर शुरू हो चुका है. पार्टियां लुभावने वादों की चाशनी वोटरों को परोस रही हैं. लेकिन इन सबके बीच दलित वोटरों (Dalit Votes in Punjab) को अपने पाले में लाने में कोई भी पार्टी कसर नहीं छोड़ रही है. तमाम पार्टियां ये अच्छे से जानती हैं कि 50,362 वर्ग किलोमीटर में फैले पंजाब की सत्ता पर अगर कब्जा जमाना है तो दलितों को अपने साथ लाना बेहद जरूरी है. आइए आपको बताते हैं कि पाकिस्तान से सटे इस राज्य में आखिर दलितों की अहमियत इतनी ज्यादा कैसे है.
पंजाब में क्या हैं समीकरण
क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का 20वां सबसे बड़ा राज्य है पंजाब, जहां 2011 की जनगणना के मुताबिक 27 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, जिसमें जाट सिखों की आबादी 25 प्रतिशत है. वहीं राज्य की 32 प्रतिशत आबादी (करीब 3 करोड़) दलितों की है. 1970 के अंत और 1980 की शुरुआत में इस समुदाय के लोग अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय देशों में गए और वहां से करंसी भारत भेजी. इसके साथ-साथ इनका राज्य की राजनीति में भी दबदबा बढ़ा.
दलित आबादी का लेखा-जोखा
यह दिलचस्प आंकड़ा है कि भारत के किसी भी राज्य की तुलना में पंजाब में सबसे ज्यादा दलित आबादी रहती है. पंजाब में दलित हिंदू और सिखों में बंटे हुए हैं. सटीक संख्या बदलती रहती है क्योंकि कई हिंदू दलितों ने दशकों से सिख धार्मिक प्रथाओं को अपनाया है और कुछ उपजातियां जैसे रविदासिया और अधधर्मी अलग धार्मिक पहचान की मांग कर रहे हैं. पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में करीब 50 ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां पर दलितों का वोट मायने रखता है.
साल 2018 की सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि पंजाब में दलितों की 39 उपजातियां हैं. हालांकि, पांच उप-जातियां दलित आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा रखती हैं. दलितों में मजहबी सिखों की सबसे बड़ी 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है. इसके बाद रविदासिया (24 प्रतिशत) और अधधर्मी (11 प्रतिशत) और वाल्मिकी (10 प्रतिशत) हैं.
सूबे में दलितों के डेरा
पंजाब में डेरा सचखंड बल्लन को रविदासिया अनुयायियों के सबसे बड़े डेरों में से एक माना जाता है. रविदासिया समुदाय पंजाब का सबसे बड़ा दलित समुदाय है. डेरा प्रमुखता में तब आया, जब इसके प्रमुख संत निरंजन दास और उनके उप संत राम नंद पर 2009 में वियना में सिख चरमपंथियों द्वारा हमला किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप बाद में उनकी मौत हो गई थी.
वहीं जालंधर के बल्लन गांव में स्थित, डेरा सचखंड बलान का दोआबा क्षेत्र में बहुत प्रभाव है. उसका पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से 23 सीटों पर वर्चस्व है. रविदासिया समुदाय के वोट हर निर्वाचन क्षेत्र में 20 से 50 प्रतिशत के बीच होते हैं.
किस दलित वर्ग की कितनी आबादी
लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि दलित पूरे राज्य में समान रूप से फैले हुए नहीं हैं. दोआबा में 37 फीसदी, मालवा में 31 फीसदी और माझा में 29 फीसदी दलित आबादी है. हालांकि सबसे अधिक दलित आबादी मालवा में है. सीएम चरणजीत चन्नी मालवा के रहने वाले हैं और रविदासिया उपजाति से ताल्लुक रखते हैं.
यही कारण है कि बीजेपी ने अप्रैल में ही यह ऐलान कर दिया था कि अगर वह राज्य की सत्ता में आई तो दलित को मुख्यमंत्री बनाएगी. कांग्रेस चरणजीत चन्नी को सीएम बनाकर यह कदम उठा ही चुकी है. पंजाब के नेता विपक्ष हरपाल सिंह चीमा भी एक दलित नेता हैं.
34 सीटें हैं रिजर्व
पंजाब में 34 सीट ऐसी हैं, जो अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व हैं. इनमें अमृतसर वेस्ट, जालंधर वेस्ट, भठिंडा ग्रामीण, करतारपुर और अटारी भी शामिल हैं. साल 2017 में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 21 सीटें अनुसूचित जाति की जीती थीं. इसके बाद 9 आम आदमी पार्टी ने 3 अकाली दल ने और 1 बीजेपी के हिस्से आई थीं.
पंजाब में अनुसूचित जाति की सीटें कौन कौन सी हैं:
- पठानकोट की भोआ
- गुरदारपुर की दीनानगर
- गुरदारपुर की श्री हरगोबिंदपुर
- अमृतसर की जंडियाला गुरु, अमृतसर वेस्ट, अटारी, बाबा बकाला
- कपूरथला की फगवाड़ा, जालंधर की फिल्लौर, करतारपुर, जालंधर वेस्ट, आदमपुर
- होशियारपुर की शाम चौरासी और छब्बेवाल
- शहीद भगत सिंह नगर की बंगा
- रूप नगर की चमकौर साहिब
- फतेहगढ़ साहिब की बस्सी पठान
- लुधियाना की गिल, पायल, जगरांव, रायकोट
- मोगा की निहाल सिंह वाला
- फिरोजपुर की फिरोजपुर सीट
- फजिल्का की बल्लुआना
- श्री मुख्तसर साहिब की मलौत
- भठिंडा की भुचो मंडी और भठिंडा ग्रामीण
- मनसा की बुधलाडा
- संगरूर की दिरबा
- बरनाला की भादौर और मेहल कलान
- पटियाला की नाभा, सुतराना
गौर करने वाली यह भी है कि पंजाब में दलितों ने कभी किसी एक पार्टी को तरजीह नहीं दी. अगर पिछले 11 विधानसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो शिरोमणि अकाली दल ने 6 विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा दलित वोट पाया है. 5 चुनावों में दलितों ने कांग्रेस को सबसे ज्यादा वोट दिया है.