भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से खड़ी हुई आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार बनाने जा रही है. आप ने पंजाब विधानसभा के चुनाव में 27 सीटें जीती ली हैं और 64 पर बढ़त बनाए हुए हैं. वहीं वहां अबतक सरकार चलाने वाली कांग्रेस ने अबतक 3 सीटें जीती हैं और 16 पर बढत बनाए हुए है.साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पंजाब की राजनीति में सक्रिय हुई आम आदमी पार्टी की यह दिल्ली के अलावा किसी और राज्य में पहली सरकार होगी.


पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कब इंट्री मारी?


आम आदमी पार्टी ने पंजाब नें अपने सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया था. उन्होंने कहा है कि वो राजभवन की जगह शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव खट्टरकलां में शपथ लेगी. इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि पंजाब के किसी भी सरकारी दफ्तर में मुख्यमंत्री की फोटो नहीं होगी बल्कि शहीद भगत सिंह और डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की फोटो लगाई जाएगी.


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पंजाब में बदलाव के संकेत चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में ही दिखने लगे थे.वहां आप सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. पंजाब विधानसभा चुनाव में मिली जीत को अरविंद केजरीवाल के फ्री के मॉडल की जीत बताया जा रहा है. आप ने पंजाब के चुनाव में मुफ्त बिजली, पढ़ाई और चिकित्सा के साथ-साथ महिलाओं के खाते में नगद पैसे भेजने का वादा किया है. लोगों को आप के ये वादे पसंद आए.


पंजाब में आप ने क्या वादे किए हैं?


आम आदमी पार्टी पंजाब की राजनीति में 2014 में दाखिल हुई थी.  इस तरह यह उसका पंजाब में तीसरा चुनाव था. आप ने 2017 के चुनाव में पंजाब में 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वह विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. हालांकि कहा जाता है कि पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल एक तथाकथित आतंकी के घर पर रुके थे. विपक्ष ने इसे मु्द्दा बना लिया था. इसका नुकसान आप को उठाना पड़ा. वहीं इस साल के चुनाव में कवि और आप के पूर्व नेता कुमार विश्वास ने भी उसी तरह की बात की. लेकिन लगता है कि लोगों ने उसे इस बार गंभीरता से नहीं लिया.


पंजाब में किन वजहों से हारी कांग्रेस?


वहीं कांग्रेस अपने कलह से हार गई है. विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले ही मुख्यमंत्री बदलना उसके लिए आत्मघाती साबित हुआ है. लोगों ने उसे नकार दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर कई तरह के आरोप थे. लेकिन उनकी जगह लेने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को काम करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला. इसके अलावा पंजााब कांग्रेस की खटपट भी उसकी हार का कारण है. 


साल 2017 के चुनाव के बाद बनी कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने थे. उनकी कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू से कभी नहीं बनी. पार्टी आलाकमान भी सिद्धू के साथ रहा. उनकी मांग पर कैप्टन को हटाया गया. इसके बाद कैप्टन ने कांग्रेस ही छोड़ दी. कांग्रेस की हार का एक कारण कैप्टन का जाना भी माना जा सकता है. कैप्टन की जगह लेने वाले चरणजीत सिंह चन्नी से भी नवजोत सिंह सिद्धू का रिश्ता खटास भरा ही रहा. हालात यह थी कि सिद्धू की वजह से चन्नी सरकार को अपने फैसले तक बदलने पड़े. इससे चन्नी के एक कमजोर मुख्यमंत्री की छवि निर्मित हुई.वहीं अवैध रेत खनन और नशे का कारोबार का न रुकना भी कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण बना.


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