नई दिल्ली: आर्थिक सर्वेक्षण के जरिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम का आइडिया दो साल पहले मोदी सरकार ने देश के सामने रखा था, लेकिन इस आइडिया को चुनावी जामा पहनाने में कामयाबी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पा ली. छत्तीसगढ़ की चुनावी सभा में राहुल गांधी ने ऐलान कर दिया कि 2019 में उनकी सरकार बनी तो देश के हर गरीब को न्यूनतम आय की गारंटी दी जाएगी.
गरीब किसे माना जाएगा?
राहुल गांधी के इस एलान के बाद राजनीति गर्म है. बड़ा सवाल यह है कि क्या यह वादा भी चुनावी जुमला है या इसे पूरा करना मुमकिन है? राहुल गांधी ने एलान तो कर दिया, लेकिन उन्होंने यह साफ नहीं किया कि गरीब किसे माना जाएगा और न्यूनतम आय का पैमाना क्या होगा. इतना ही नहीं राहुल ने जिस दांव के आसरे भुखमरी और गरीबी खत्म करने का सपना दिखाया, वो समस्याएं कितनी आर्थिक मदद से हल होंगी, राहुल यह भी नहीं बता पाए.
ब्राज़ील ने साल 2003 में शुरू की थी ऐसी ही एक योजना
बता दें कि ब्राज़ील ने साल 2003 में ऐसी ही एक योजना शुरू की थी, जिसमें सरकार गरीब परिवारों को भत्ता देती है. गरीब परिवारों में उन्हें शामिल किया गया है,जिनकी मासिक आमदनी करीब 3400 रुपए तक है.
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देश में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे- तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट
न्यूनतम आय की गारंटी देने वाली इस योजना को आर्थिक पैमाने पर कसने की कोशिश करें तो सच यही है कि योजना का अमल में आना खासा मुश्किल है. क्योंकि सिर्फ गरीबों को न्यूनतम आय गारंटी योजना की बात करें तो तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं. इन लोगों को मनरेगा मजदूरों के बराबर यानी 9 हजार रुपया महीना भी दिया जाए तो हर साल 29 लाख करोड़ रुपए की जरुरत होगी. ये रकम जीडीपी की 16 फीसदी होगी और इतनी रकम जुगाड़ना लगभग नामुमकिन है.
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कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि सरकार गरीबों को हर साल करीब 7 हजार रुपए न्यूनतम आय की गारंटी देगी तो इस हिसाब से भी सरकार पर हर साल करीब दो लाख करोड़ का बोझ पड़ेगा. यानी राजकोषीय घाटा बढ़कर जीडीपी के 5 फीसदी तक पहुंच जाएगा. फिर सात हजार रुपए साल का मतलब है कि 600 रुपए से भी कम मासिक गारंटी. 600 रुपए का मतलब है 20 रुपए रोज और 20 रुपए में भुखमरी और गरीबी कैसे मिटेगी ये सवाल है.
न्यूनतम आय गारंटी के लिए सरकार को पैसा जुगाड़ना बहुत मुश्किल
अभी तक सरकार की सबसे चर्चित और उपयोगी कल्याणकारी योजना मनरेगा है. जिसके लिए 55 हजार करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया गया है और इन 55 हजार करोड़ रुपए से भी सरकार मनरेगा मजदूरों को साल में सिर्फ 100 दिन रोजगार की ही गारंटी देती है. इसका मतलब यह है कि 27 करोड़ गरीबों को न्यूनतम आय गारंटी देने के लिए सरकार को पैसा जुगाड़ना बहुत मुश्किल होगा.
बाकी कल्याणकारी योजनाओं पर भी पड़ेगा इस योजना का असर
पैसा जुगाड़ना कितना मुश्किल होता है, ये इस बात से समझा जा सकता है कि मोदी सरकार 2018-19 के पहले छह महीने में पेट्रोल-डीजल पर लगाए टैक्स से लक्ष्य का सिर्फ 30 फीसदी जुटा सकी है. ऐसे में न्यूनतम आय गारंटी योजना लागू होने का पहला असर बाकी कल्याणकारी योजनाओं पर ही पड़ेगा.
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कुल मिलाकर राहुल गांधी ने जो एलान किया है, वह है तो लोकलुभावन लेकिन अगर चुनावों के बाद गैर बीजेपी सरकार आ भी गए तब भी इस तरीके की योजना पर नए सिरे से अमल करना कतई आसान नहीं होगा. इसके अलावा पुरानी योजनाओं को सिरे से खत्म कर इस योजना को लागू करने का भी रिस्क लेना किसी भी सरकार के लिए बिल्कुल आसान नहीं कहा जाएगा.
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