नई दिल्ली: राजस्थान में अब 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में 199 सीटों के लिए मतदान होगा. राज्य में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं. लेकिन रामगढ़ सीट से बीएसपी के प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह की मृत्यु हो जाने से वहां चुनाव रद्द करना पड़ा है. मतदान से पहले एक सीट पर चुनाव रद्द हो जाने से राज्य में लंबे समय से दो सौ विधायकों के एक साथ सदन में नहीं बैठ पाने की चर्चाएं फिर से जोर पकड़ने लगी हैं.
बता दें कि राजस्थान विधानसभा का विशालकाय और बेहद खूबसूरत भवन है. उस भवन की स्थापत्य कला की देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मिसाल दी जाती है. लेकिन ये भवन अपने निर्माण के साथ ही शकुन और अपशकुन जैसी बातों में उलझ कर रह गया है. विधानसभा भवन को लेकर इस तरह की चर्चाओं के पीछे पिछले 18 साल का इतिहास है. साल 2000 से विधान सभा की बैठकें इस भवन में होनी शुरू हुई और इस दौरान चार सरकारों के कार्यकाल पूरे हुए. लेकिन इस बीच कभी भी पूरे 200 सदस्य सदन में एक साथ नहीं बैठ सके.
जिस समय साल 2000 में विधानसभा को नए भवन में शिफ्ट किया गया तब अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार सत्ता में थी. नए भवन में विधानसभा शुरू हुई ही थी कि कांग्रेस के दो सदस्य भीखा भाई और भीमसेन चौधरी की मौत हो गई. साल 2003 में वसुंधरा राजे की सरकार बनी और दो सदस्यों राम सिंह विश्नोई और अरुण सिंह की मृत्यु हो गई. साल 2008 से लेकर 2013 तक चार विधायकों को अलग-अलग वजह से जेल जाना पड़ा और सदन में दो सौ विधायक नहीं रह सके.
अब चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद बीएसपी के प्रत्याशी की मौत हुई है. ठीक इसी तरह साल 2013 के चुनाव से पहले भी चूरू से बीएसपी के प्रत्याशी की मौत हुई थी और 199 सीटों पर ही मतदान हुआ था. ज्योतिषी मानते है कि विधानसभा भवन का श्मशान भूमि पर बसा होना अपशकुन है.
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विधानसभा के शकुन अपशकुन का मुद्दा कई बार सदन में भी सुनाई दिया और तब विधानसभा के परिसर में तुलसी के पौधे भी लगवाए गए. यहां चुनकर आने वाले सदस्यों के मत भी शकुन अपशकुन को लेकर अलग-अलग ही रहे. विधानसभा का भवन अपशकुनी है या नहीं ये तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन अगर ये सब संयोग है तो वाकई रोचक है कि दो बार मतदान से पहले एक सीट का चुनाव बीएसपी प्रत्याशी की मौत की वजह से रद्द करना पड़ा.
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