Rajasthan Congress New Team: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन में नए नेताओं के चयन के साथ ही राजस्थान कांग्रेस में नेतृत्व के मुद्दे पर भी अटकलें तेज हो गई हैं. हालांकि कांग्रेस के लिए राजस्थान में स्थिति मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसी नहीं थी. यहां इन दो राज्यों की तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा था.
199 सीट में से कांग्रेस के खाते में 69 सीटें आईं, जबकि 2018 में उसके पास 115 सीट थी. 2018 की तुलना में बीजेपी का वोट शेयर 2.3 फीसदी बढ़ा है, जबकि कांग्रेस ने न केवल अपना वोट शेयर बरकरार रखा है, बल्कि इसमें 0.2 फीसदी की बढ़ोतरी भी दर्ज की. उसका वोट बैंक स्थिर बना हुआ है. ये अलग बात है की सीटों के मामले में वह पीछे रह गई. यही वजह है कि यहां नेतृत्व परिवर्तन करते वक्त पार्टी आलाकमान को बहुत सी बातों को ध्यान में रखना होगा. यहां उसे सत्ता-विरोधी कारक को भी ध्यान में रखना होगा.
सत्ता विरोधी लहर वालों से दूरी रख सकती है पार्टी
हार के बाद हुई समीक्षा बैठक में राहुल गांधी इस बात से सहमत थे कि अशोक गहलोत सरकार की कल्याणकारी योजनाएं बहुत अच्छी थीं, लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि कर्नाटक की तुलना में कांग्रेस इन योजनाओं का राजस्थान में ठीक से संवाद करने में विफल रही. वह इस बात से भी नाराज थे कि सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे कई वरिष्ठ मंत्रियों और विधायकों को फिर से टिकट दे दिया गया, खासकर गहलोत के इस आग्रह पर कि उन्होंने 2020 में पायलट के विद्रोह के दौरान उनकी मदद की थी.
अध्यक्ष और सीएलपी नेता चुनना है सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि, पार्टी आलाकमान के सामने कमलनाथ की तरह अशोक गहलोत को बाहर करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनके पास पार्टी का कोई पद नहीं है, लेकिन सदन में पार्टी अध्यक्ष और सीएलपी का नेतृत्व कौन करेगा इस पर फैसला लेना पार्टी के लिए मुश्किल होगा. दरअसल, इन पदों के लिए पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित कम से कम पांच दावेदार हैं. पार्टी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, महेंद्रजीत सिंह मालवीय, राजेंद्र पारीक और हरीश चौधरी इस रेस में शामिल हैं. पायलट और मालवीय दोनों कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य भी हैं, जिसकी बैठक 21 दिसंबर को होनी है. हालांकि गहलोत या पायलट को विपक्ष के नेता का पद दिया जा सकता है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी अध्यक्ष पद की कमान कौन संभालेगा, इस पर अधिक असमंजस की स्थिति है.
जातीय समीकरण पर भी रखनी होगी नजर
भाजपा ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए ब्राह्मण मुख्यमंत्री और एक राजपूत व एक एससी उपमुख्यमंत्री बनाकर जातीय समीकरण साधा है, उससे कांग्रेस के सामने भी अब उसी तरह का समीकरण बैठाने की चुनौती होगी. ऐसे में संभव है कि कांग्रेस आलाकमान भी संगठन में बदलाव करते वक्त इन बातों का ध्यान रखे. 2003 से 2008 के बीच कांग्रेस ने इन पदों पर कई बार बदलाव किए. किसी ब्राह्मण को विपक्ष का नेता बनाया गया तो किसी जाट को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया. 2013 में गुर्जर समाज से आने वाले सचिन पायलट के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद यह फॉर्मूला बदल गया. अब कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बेहतर करना चाहती है तो उसे इसका ध्यान रखना होगा. राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें आती हैं.
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