Rajasthan Assembly Election Results: पिछले महीने संपन्न हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कांग्रेस को एक बार फिर पटखनी देते हुए किला फतेह किया है. इसके बाद से कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल तो उठ ही रहे हैं साथ ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के तीन प्रमुख चेहरे कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं.


यहां बात राजस्थान में कांग्रेस के बड़े नेता और तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके 72 साल के अशोक गहलोत की करेंगे. राजनीति में जादूगर के नाम विख्यात अशोक गहलोत राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री जरूर रह चुके हैं लेकिन उन्होंने उस तरह का मैजिक नहीं दिखा पाया जिस तरह से मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने दिखाया. हालांकि सचिन पायलट के साथ उनकी खींचतान और कांग्रेस पार्टी में आंतरिक कलह के बावजूद अशोक गहलोत ने वापसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.


अपनी योजनाओं को बनाया हथियार


राजस्थान के इस पूरे चुनाव में अशोक गहलोत का नाम गूंजता रहा. उन्होंने अपनी कल्याणकारी सरकारी योजनाओं के इर्द-गिर्द चुनाव प्रचार किया और बीजेपी से सबक लेते हुए इसे अपना सबसे बड़ा हथियार भी बनाया. उन्होंने राज्य के कोने-कोने में इसे पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी लेकिन फिर भी वो उस परंपरा को नहीं तोड़ पाए जो पिछले तीन दशकों से चली आ रही है.


मारवाड़ के जादूगर


अशोक गहलोत के बारे में एक चर्चा आम है कि वो जादूगर के बेटे हैं और वो अपने जादू से कुछ भी कर सकते हैं. साल 1980 में वो पहली बार जोधपुर से सांसद बने और 4 बार इस सीट से जीते. राजस्थान में राजनीति के दिग्गज आज भी इस बात का उदागरण देते हैं कि किस तरह से साल 1998 में अशोक गहलोत ने अपना जादू दिखाते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता परसराम मदेरणा को पछाड़ा और पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने.


इस साल कांग्रेस ने मदेरणा के चेहरे पर चुनाव जीतकर राजस्थान में बंपर जीत हासिल की थी. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस की 150 से भी अधिक सीटों से जीत का एक कारण ये भी था कि जाट समुदाय ने खुलकर वोट किया था. उन्हें ये उम्मीद थी कि उनके नेता परसराम मदेरणा को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन हुआ इसका उलटा.


अशोक गहलोत की खासियत


राजस्थान के अंदरूनी इलाकों, गावों में रहने वालों से लकेर जोधपुर के दुकान मालिकों तक जो उन्हें लंबे समय से जानते हैं वो इस बात का अचरज मानते हैं कि भले ही अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद रहे हों लेकिन वो बिना किसी अहंकार के लोगों से मिलते थे और उनके निजी जीवन के मामलों पर चर्चा भी करते थे.


पार्टी लाइन से हटकर लोगों तक पहुंचने की उनकी क्षमता ही थी, जिसने 2008 में 200 विधानसभा सीटों में से 96 सीटें जीतने के बाद सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को छह बसपा विधायकों का समर्थन हासिल करने में मदद की. बाद में सभी छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये. इसी तरह का नजारा 2018 में भी देखा गया जब कई कांग्रेस के बागी विधायकों ने कहा था कि वे इस शर्त पर पार्टी को समर्थन देंगे कि गहलोत मुख्यमंत्री बनेंगे.


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