Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान को भजनलाल शर्मा के रूप में नया मुख्यमंत्री मिल चुका है. वह राजस्थान के दूसरे ब्राह्मण सीएम हैं. इनसे पहले 1990 में कांग्रेस के हरदेव जोशी ब्राह्मण मुख्यमंत्री थे. 33 साल बाद भजनलाल शर्मा के रूप में राजस्थान को दूसरा ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिला है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भजनलाल शर्मा को कई दिग्गज नेताओं को दरकिनार करते हुए सीएम बनाया है.


खुद भजनलाल को भी इसका अंदाजा नहीं था कि वह सीएम बन सकते हैं, लेकिन इसे बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है. हालांकि कई लोग अब भी इस गणित को नहीं समझ पा रहे हैं कि जिस राज्य में राजपूत, जाट, गुर्जर और मीणा सबसे ज्यादा प्रभाव रखते हैं और यही जातियां किसी पार्टी की जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, ऐसे में इन जातियों से बाहर ब्राह्मण को सीएम बनाना बीजेपी को कैसे फायदा पहुंचा सकता है. आइए विस्तार से जानते हैं इस सियासी समीकरण को.


ब्राह्मण सीएम से सबको साथ रखने की कोशिश


राजनीतिक एक्सपर्ट बताते हैं कि राजस्थान में क्योंकि राजपूत, जाट, गुर्जर और मीणा सबसे ज्यादा प्रभावी हैं, इसलिए ये सभी अपने-अपने समाज का सीएम चाहते हैं. अगर बीजेपी इनमें से किसी एक समाज से आने वाले नेता को सीएम बनाती तो बाकी की जाति के वोटर नाराज हो जाते. अगले साल लोकसभा चुनाव होना है और भारतीय जनता पार्टी उसमें किसी तरह का नुकसान उठाना नहीं चाहती. माना जा रहा है कि इसी वजह से पार्टी ने ब्राह्मण समाज से सीएम चुना ताकि प्रतिस्पर्धा की वजह से इनमें से किसी भी जाति का वोट बैंक न खिसके. वहीं, राजस्थान में ब्राह्मण समाज की किसी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. इनकी संख्या बहुत कम है, ऐसे में दूसरी जाति भी इनसे राजनीतिक प्रतिस्पर्धा नहीं रखती हैं.


इसलिए बीजेपी ने यहां छोड़ा ओबीसी फॉर्मूला


कई लोगों के मन में ये सवाल भी है कि ओबीसी राजस्थान में सबसे ज्यादा है, लेकिन इसके बाद भी सबसे कम वोट बैंक वाले ब्राह्मण समाज से सीएम कैसे बन गया. क्या ओबीसी समाज यहां हार गया? अगर आप राजनीतिक दृष्टि से इस सवाल के जवाब को तलाशेंगे तो पता चलेगा कि यहां कोई जाति किसी से न जीती है और न किसी से हारी है. यह बीजेपी की रणनीति की जीत है.


दरअसल, राज्य में ओबीसी वोटरों की संख्या करीब 35%, लेकिन यहां जाट और गुर्जर एक साथ नहीं दिखते. अब जाट और गुर्जरों को इसमें से निकाल दें तो इनकी संख्या करीब 14% होती है. ऐसी स्थिति में ओबीसी की संख्या करीब 21% रह जाती है. इससे अलग राजस्थान में राजपूत, ब्राह्मण, सिख, बनिया, कायस्थ आदि भी हैं. इन सबकी संख्या करीब 23% है.


राजघराने से जुड़े नेताओं को छोड़ दिया जाए तो इन जातियों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने वाला कोई बड़ा चेहरा नहीं बचता है. ऐसे में इनमें से किसी भी जाति से अगर कोई बड़ा नेता निकलता है तो ये सभी सवर्ण जातियां उसे अपना नेता मान लेती हैं. इस तरह पिछड़ा वर्ग से लेकर अगड़ा वर्ग तक सभी बीजेपी के साथ बंधे नजर आते हैं. इसे देखते हुए ही बीजेपी ने भजनलाल शर्मा को सीएम बनाया.


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