Pradhanmantri Series, Rajiv Gandhi: जवाहर लाल नेहरू के नाती और इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी की राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी. उनकी पत्नी सोनिया गांधी भी यही चाहती थीं कि वो राजनीति से खुद को दूर रखें. इतने बड़े सियासी खानदान से होते हुए भी राजीव गांधी पायलट की नौकरी करते थे. भाई संजय गांधी की मौत के बाद हालात ऐसे बन गए कि मां की मदद के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में कई दिग्गज और वरिष्ठ नेता तो थे, लेकिन राजीव गांधी को इंदिरा का उत्तराधिकारी घोषित किया गया और उन्हें उसी दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. प्रधानमंत्री सीरिज में आज जानते हैं राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने की कहानी.
31 अक्टूबर को दिल्ली में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. इसके बाद से यही सवाल उठा कि अब अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? दो दिन पहले ही राजीव गांधी 29 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल के दौरे पर पहुंचे थे. राजीव गांधी के साथ उस वक्त कैबिनेट मिनिस्टर प्रणब मुखर्जी और गनी खान चौधरी भी थे. 31 अक्टूबर को करीब 9.30 बजे सबसे पहले प्रणब मुखर्जी को पुलिस वायरलेस से खबर मिली कि इंदिरा गांधी पर हमला हुआ और वो तुरंत राजीव के साथ दिल्ली लौटें.
कोलकाता पहुंचते-पहुंचते करीब एक बज चुके थे. रास्ते में राजीव गांधी लगातार रेडियो सुनते रहे जिसमें बताया गया कि इंदिरा गांधी को 16 गोलियां मारी गई हैं. ये सुनकर राजीव ने ये भी पूछा था कि क्या वो ये गोलियां डिजर्ब करती थीं? ये सवाल सुनकर कोई कुछ बोल नहीं पाया. राजीव के लिए कोलकाता में इंडियन एयरलाइंस के स्पेशल प्लेन की व्यवस्था दिल्ली जाने के लिए की गई. उस प्लेन में राजीव गांधी के साथ केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी, पश्चिम बंगाल के गवर्नर उमा शंकर दीक्षित, उनकी बहू शीला दीक्षित, लोकसभा स्पीकर बलराम जाखर राज्यसभा के उपाध्यक्ष सैनी लाल यादव थे.
प्लेन टेक ऑफ होन के कुछ देर बाद राजीव गांधी कॉकपिट में गए और कुछ देर बाद आकर कहा कि ‘उनका निधन हो गया है’.
कोलकाता से दिल्ली आते समय फ्लाइट में क्या-क्या हुआ इस बात को लेकर में बाद में काफी सुर्खियां बनीं. वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई बताते हैं, ''फ्लाइट में ही राजीव गांधी ने प्रणब मुखर्जी से पूछा कि जब जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ था तो क्या स्थिति हुई थी? तो उन्होंने बताया कि जो केयर टेकर या सीनियर लीडर होता है, उसे अंतरिम पीएम की शपथ दिलाई जाती है. प्रणब मुखर्जी ने ये भी बताया कि नेहरू और शास्त्री की मौत के बाद गुलजारी लाल नंदा, जो सबसे वरिष्ठतम मंत्री थे उन्हें पीएम बनाया गया.''
इंदिरा की कैबिनेट में प्रणब मुखर्जी की हैसियत नंबर दो की थी. प्रणब मुखर्जी की इस बात को बाद में राजीव गांधी के सामने कुछ नेताओं ने ऐसे पेश किया जैसे गुलजारी लाल नंदा की बात के जरिए प्रणब अपने पीएम बनने का रास्ता बना रहे थे. उधर दिल्ली में भी प्रणब मुखर्जी के पीएम बनने की चर्चा हो चली थी.
प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण The Turbulent Years: 1980 - 1996 में इस वाकये का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि फ्लाइट में राजीव गांधी ने जब नेहरू और शास्त्री की मौत के बाद की स्थिति के बारे में पूछा तो प्रणब मुखर्जी ने गुलजारी लाल नंदा के कार्यवाहक पीएम बनने की बात बताई. फ्लाइट में मौजूद सभी नेताओं से बातचीत के बाद ये तय किया गया कि राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए. खुद प्रणब मुखर्जी ने जब राजीव से पीएम बनने को कहा तो उन्होंने पूछा, "क्या आपको लगता है कि मैं ये मैनेज कर पाउंगा?’’ इस पर प्रणब मुखर्जी ने कहा, "हां, हम सब आपके साथ हैं."
मुखर्जी ने आगे लिखा है, ''इसके बाद मैंने राजीव से कहा कि वो दिल्ली एक मैसेज भेजें कि इंदिरा गांधी के निधन की खबर की घोषणा नहीं की जाए. हमने ये निर्णय लिया कि इंदिरा के निधन की खबर के साथ ही राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने की खबर भी दी जाएगी."
इधर, इंदिरा गांधी को गोली लगने के बाद एम्स में ले जाया गया. वहीं पर सभी दिग्गज नेता जुटे और अगले प्रधानमंत्री की चर्चा शुरु हुई. उस वक्त पीएम बनने की रेस में तो कई दिग्गज नेता थे लेकिन किसी को दावेदारी पेश करने का मौका नहीं मिला. वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई बताते हैं, ''उस समय नरसिम्हा राव, आर. वेंकटरमन, नारायण दत्त तिवारी सहित वरिष्ठ मंत्री लिस्ट में शामिल थे. कमला पति त्रिपाठी सहित कई बड़े नेता भी थे. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो हालात थे, उसमें कुछ सवाल जवाब नहीं हुआ. किसी को इतना मौका ही नहीं मिला कि प्रधानमंत्री पद के लिए खुद का नाम पेश कर सके."
नेहरू और शास्त्री की मौते के बाद सीनियर लीडर को कार्यवाहक पीएम बनाया गया. उसे ही ध्यान में रखते हुए इस बार प्रणब मुखर्जी का नाम भी चर्चा में था लेकिन उन्होंने खुद इस बारे में कभी नहीं कहा. इंदिरा गांधी के मुख्य सचिव के तौर पर काम कर चुके पी. सी. अलेक्जेंडर ने अपने संस्मरण 'Through the corridors of power: an insider's story' में लिखा है कि एम्स में जब उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शिव शंकर और बी. शंकरानंद से अगले प्रधानमंत्री को लेकर बात की तो दोनों ने प्रणब मुखर्जी को कार्यवाहक पीएम बनाने से सीधे इंकार कर दिया. उन नेताओं का कहना था कि प्रणब मुखर्जी वरिष्ठता में सबसे ऊपर हैं, लेकिन इंदिरा गांधी ने औपरचारिक रुप से कभी उन्हें नंबर दो नहीं बताया था. उन्होंने ये भी लिखा है कि उस वक्त यूपी के मुख्यमंत्री एनडी तिवारी सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों से उन्होंने पीएम पद को लेकर सलाह मशविरा किया. सबने राजीव गांधी के नाम पर सहमति जताई लेकिन कोई भी प्रणब मुखर्जी को कार्यवाहक पीएम नहीं बनाना चाहता था.
राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी करीब 3.15 बजे एम्स पहुंचे. प्रणब मुखर्जी से तुरंत ही पी. सी. अलेक्जेंडर ने कहा कि हर किसी की राय ये है कि राजीव गांधी को तत्काल प्रधानमंत्री बना दिया जाए, ताकि अंतरिम सरकार की जररूत ना पड़े. ये सुनकर प्रणब मुखर्जी ने उन्हें बताया कि फ्लाइट में भी सबकी यही राय थी.
वहां पर कैबिनेट सेक्रेटरी कृष्णा स्वामी राव ने कहा था कि गुलजारी लाल नंदा की तरह प्रणब मुखर्जी भी अंतरिम सरकार बनाएं. लेकिन प्रणब मुखर्जी ने खुद उनसे कहा कि राजीव ही पीएम बनेंगे.
सोनिया ने राजीव को पीएम बनने से रोका
राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में सोनिया गांधी नहीं थीं. रशीद किदवई बताते हैं, ''राजीव गांधी जब एम्स पहुंचे तब सोनिया गांधी ने उन्हें रोकर आग्रह किया कि वो प्रधानमंत्री ना बनें. सोनिया ने उन्हें खतरे की तरफ आगाह किया. उसके जवाब में राजीव गांधी ने कहा कि ‘मैं इंदिरा गांधी का बेटा हूं. जो लोग मुझे नहीं पसंद करते हैं वो मुझे वैसे भी नहीं छोड़ेंगे.’ ये सुनकर सोनिया निरूत्तर हो गईं.''
रशीद किदवई बताते हैं, ''राजीव गांधी के पास अनुभव नहीं था लेकिन तब कांग्रेस का जो कल्चर था उसमें इंदिरा के बेटे का विरोध करने की हिम्मत कौन करता. ना कांग्रेस संसदीय दल की मीटिंग हुई, ना वर्किंग कमेटी की मीटिंग हुई. सब आपाधापी में हुई. आज भी कांग्रेस में कोई विद्रोह नहीं कर सकता.’’
किंगमेकर कौन
राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे किंगमेकर कौन था? इसे लेकर दो तरह की बातें होती हैं. कुछ लोग कहते हैं कि अरुण नेहरू ने किंगमेकर की भूमिका निभाई जबकि प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि कोलकाता से दिल्ली आते समय फ्लाइट में ही ये निर्णय हो गया था कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे.
वहीं, पी. सी. अलेक्जेंडर ने भी लिखा है कि राजीव के पीएम बनने में अरुण नेहरू का कोई खास रोल नहीं था. उन्होंने लिखा है, ''जब सोनिया और राजीव कमरे में बात कर रहे थे उसी दौरान अरुण नेहरू ने मुझसे बहुत ही गंभीरता से कहा कि 5 बजे राष्ट्रपति के आने से पहले ही राजीव गांधी का पीएम पद के लिए शपथ उप-राष्ट्रपति द्वारा हो जाना चाहिए. मुझे ये सुनकर हैरानी हुई. इन नेताओं को लगता था कि राष्ट्रपति ज्ञानी जै़ल सिंह कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी के औपचारिक इलेक्शन के बिना राजीव का नॉमिनेशन स्वीकार नहीं करेंगे. इनका मानना था कि जै़ल सिंह और इंदिरा गांधी में (ऑपरेशन ब्लू स्टार) जो दुराव पैदा हुए थे उसकी वजह से वो राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने में खलल डाल सकते हैं.''
अलेक्जेंडर ने लिखा है इसके बाद तुरंत उन्होंने राजीव गांधी से इस बारे में बात की और उन्हें भी उप-राष्ट्रपति द्वारा शपथ लेना गलत लगा. उनकी राय जानकर किसी ने फिर कोई सवाल नहीं किया.
रशीद किदवई भी पी. सी अलेक्जेंडर की बातों से इत्तेफाक रखते हैं. वो कहते हैं, ''राष्ट्रपति इंदिरा के विश्वासपात्र थे. उन्हें इंदिरा ने ही राष्ट्रपति बनाया था और उनके मन में भी राजीव गांधी को लेकर कोई संदेह नहीं था. यमन से आते समय उन्होंने राजीव गांधी को पीएम बनाने को लेकर मन बना लिया था.’’
कब-क्या हुआ
प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि राजीव गांधी को सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति को चिट्ठी उन्होंने ही लिखी. उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है, ''31 अक्टूबर को ही करीब 4 बजकर 10 मिनट पर मैं, अरुण नेहरू और कमलनाथ अकबर रोड स्थित प्राइम मिनिस्टर ऑफिस पहुंचे जहां पहले से ही पी.वी. नरसिम्हा राव और जी के मूपनार मौजूद थे. राष्ट्रपति दफ्तर के लिए चिट्ठी मैंने खुद ड्राफ्ट की, जिसमें लिखा कि राजीव गांधी को कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड का नेता चुन लिया गया है. साथ ही ये भी अनुरोध किया कि राष्ट्रपति राजीव गांधी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें.’’ इसके बाद सभी लोग चिट्ठी लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे.
इंदिरा गांधी की हत्या के समय राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह देश से बाहर थे. ये खबर पाते ही उन्होंने तुरंत वापसी का निर्णय लिया. दिल्ली आकर वो सबसे पहले एम्स पहुंचे और फिर वहां से राजीव गांधी के साथ वो राष्ट्रपति भवन पहुंचे. यहां पहले से ही उप-राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन, प्रणब मुखर्जी, नरसिम्हा राव सहित कई नेता चिट्ठी के साथ मौजूद थे. जै़ल सिंह ने ये बताया कि वो खुद भी राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे.
यहां पर राष्ट्रपति ने राजीव गांधी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. राजीव गांधी ने अपने मंत्रिमंडल में चार लोगों को शामिल किया जिसमें प्रणब मुखर्जी, पी. वी. नरसिम्हा राव, शिव शंकर और बुटा सिंह थे.
31 अक्टूबर को ही शाम करीब 6.45 बजे शपथ ग्रहण समारोह हुआ. इस तरह राजीव गांधी भारत के छठें प्रधानमंत्री बने.
इसके बाद दूरदर्शन के जरिए इंदिर गांधी के निधन की औपचारिक घोषणा हुई और ये भी बताया गया कि राजीव गांधी के नेतृत्व में नई सरकार शपथ ले चुकी है.
प्रणब मुखर्जी और राजीव की अनबन के पीछे की वजह
राजीव को प्रधानमंत्री बनाने में प्रणब मुखर्जी की अहम भूमिका रही. लेकिन राजीव गांधी के मन में कुछ ऐसी बातें डाल दी गई जिससे दोनों के बीच काफी दूरियां आ गईं. रशीद किदवई बताते हैं, ''जब राजीव गांधी दिल्ली पहुंचे तो उनके चचेरे भाई अरुण नेहरू ने उनसे आग्रह किया कि वो तुरंत शपथ ले लें. तब राजीव गांधी ने प्रणब मुखर्जी से हुई बात बताई. इसके बाद अरुण नेहरू ने पूछा कि क्या आपको पता है कि इंदिरा गांधी की कैबिनेट में सीनियर मिनिस्टर कौन था? फिर राजीव गांधी को बताया गया कि प्रणब मुखर्जी नबंर दो थे. इसके बाद राजीव गांधी के दिमाग में ये बात डाल दी गई कि प्रणब मुखर्जी पुरानी बातें बताकर अपने लिए पीएम की राह आसान करना चाह रहे थे. ये मामला बड़ा बन गया और प्रणब मुखर्जी को बाद में पार्टी छोड़नी पड़ी. उन्हें तकरीबन पांच साल का बनवास हो गया. वो राजीव गांधी की कैबिनेट में भी शामिल नहीं हो पाए.’’
काफी दिनों तक ये चर्चा रही कि प्रणब मुखर्जी पीएम बनना चाहते थे. इस बात को खुद प्रणब मुखर्जी, पी. सी. अलेक्डेंर और राष्ट्रपति जै़ल सिंह ने अपने संस्मरण में अफवाह बताया. सबने यही लिखा है कि स्थिति बिल्कुल भी वैसी नहीं थी जैसी कुछ लोगों ने दिखाने की कोशिश की.
राजीव गांधी के बारे में
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को हुआ था. वो इंदिरा गांधी के बड़े बेटे थे. शुरुआत से ही उन्हें राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी. वो एक एयरलाइन में पाइलट की नौकरी करते थे. राजीव गांधी से कैम्ब्रिज से पढ़ाई पूरी की. यहीं उनकी मुलाकात सोनिया गांधी से हुई थी. दोनों ने 1968 में शादी रचा ली.
राजीव और सोनिया के दो बच्चे हैं-राहुल गांधी और प्रियंका गांधी. राहुल गांधी अभी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं वहीं प्रियंका गांधी भी राजनीति में उतर चुकी हैं और पार्टी की महासचिव हैं.
भाई संजय गांधी के निधन के बाद राजीव राजनीति में अपनी मां के लिए आए. सोनिया गांधी भी उन्हें राजनीति में आने से रोकती रहीं लेकिन इंदिरा गांधी की अचानक मृत्यु के बाद राजीव को देश की बागडोर संभालनी पड़ी.
रशीद किदवई बताते हैं, ''राजीव गांधी के नाना प्रधानमंत्री थे. उनको भी उन्होंने देखा था. इंदिरा को भी देखा था. उन्होंने इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी में खींचतान भी देखी थी. इंदिरा अपने पिता नेहरू के साथ रहती थीं वहीं फिरोज गांधी अलग रहते थे. अगर वो दिल्ली आते तो भी अलग रहते थे. इंदिरा गांधी के सामने हमेशा यही स्थिति रही कि उन्हें अपने पिता और पति में से किसी एक को चुनना होता था. उनकी विवाहित जीवन में काफी उतार-चढाव आए. कहीं ना कहीं राजीव गांधी इस बात से भी प्रभावित थे. उन्हें राजनीति को लेकर कोई उत्साह नहीं था.''
राजीव को अपने भाई संजय की राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं थी. रशीद किदवई बताते हैं, ''1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गई तों राजीव गांधी नाराज हो गए थे. उन्होंने कहा कि संजय ने इंदिरा को डुबो दिया. राजीव गांधी को संजय गांधी की राजनीति से कोई ईष्या नहीं थी. मेनका गांधी ने संजय गांधी को लेकर अपना हक जमाया. हालात ऐसे हो गए कि इंदिरा भी द छोड़कर चली गईं. इन सबसे राजीव गांधी बहुत छुब्ध हुए और उन्होंने ना चाहते हुए भी राजनीति ज्वाइन किया.''
रशीद किदवई ये भी बताते हैं कि जवाहर लाल नेहरू के बाद जितने भी नेहरू-गांधी परिवार के लोग सक्रीय राजनीति में आए वो अपनी मर्जी के खिलाफ आए हैं. चाहें सोनिया गांधी हो, प्रियंका गांधी या फिर राहुल गांधी.
इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद वो प्रधानमंत्री बने. 1984 के लोकसभा चुनावों के बाद राजीव गांधी भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने. राजीव 31 अक्टूबर 1984 से दो दिसंबर 1989 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे. 1989 के आम चुनावों में कांग्रेस हार गई. 1991 में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में बम विस्फोट में राजीव गांधी की मौत हो गई. उनकी मौत के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथों में ले ली.
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