नई दिल्ली: 2019 के आम चुनाव से पहले विपक्षी दलों की एकजुटता की असली परीक्षा यूपी में होगी. दरअसल यूपी में आगामी अप्रैल में राज्यसभा की दस सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं. इस दौरान यूपी की सत्ता में काबिज बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों एसपी, बीएसपी और कांग्रेस की एकजुटता संभावित है. राज्यसभा में उत्तर प्रदेश से चुने जाने वाले 31 सदस्यों में से नौ सदस्यों का कार्यकाल दो अप्रैल को खत्म हो रहा है, जबकि पिछले साल जुलाई में बीएसपी प्रमुख मायावती के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर भी अप्रैल में चुनाव संभावित है.


जिनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है, उनमें एसपी के राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल, जया बच्चन, किरणमय नंदा, दर्शन सिंह यादव, मुनव्वर सलीम और आलोक तिवारी हैं. इसके अलावा बीएसपी के एम. अली, बीजेपी के विनय कटियार और कांग्रेस के प्रमोद तिवारी शामिल हैं.


यूपी विधानसभा में संख्या बल के मुताबिक 312 विधायकों वाली सत्तारूढ़ बीजेपी को राज्यसभा की दस में से आठ सीटें मिलना तय है. जबकि 47 विधायकों वाली एसपी की झोली में एक सीट जाएगी. बांकी बची एक सीट अपने पाले में रखने के लिये विपक्षी दलों एसपी, बीएसपी और कांग्रेस में सरगर्मियां तेज हो गई हैं. विपक्ष में अगर संयुक्त उम्मीदवार को लेकर सहमति बनती है तो यह सीट उन्हें मिल सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के एक सदस्य के चुनाव के लिये 36 विधायकों के मत की जरूरत होगी. स्पष्ट है कि दो सीट के लिए 72 मतों की जरुरत को देखते हुए एसपी के 47, कांग्रेस के सात और बीएसपी के 19 विधायकों के कुल 73 मत पर्याप्त साबित होंगे.


एसपी, कांग्रेस और बीएसपी के बीच इस मसले पर शुरुआती बातचीत की पुष्टि करते हुए कांग्रेस के एक नेता ने कहा, "इस पहल का मकसद आने वाले चुनावों में बीजेपी की चुनौती से निपटने के लिये विपक्षी एकजुटता की कवायद को कारगर बनाना है. तीनों दलों के बीच सहमति बनती है तो बीएसपी प्रमुख मायावती इस सीट के लिए उम्मीदवार हो सकती हैं." उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि राज्यसभा के चुनावों में तीनों दलों के बीच सहमति बनती है तो इसका असर लोकसभा की खाली हुई सीटों के उपचुनाव पर भी पडे़गा.


बता दें कि राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लोकसभा से इस्तीफा देने से खाली हुई गोरखपुर और फूलपुर सीट के साथ हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई कैराना सीट पर उपचुनाव होने हैं.


हालांकि, एसपी के नेता मान रहे हैं कि मायावती अगर खुद विपक्षी एकजुटता की पहल में दिलचस्पी नहीं लेंगी तो सहमति बनना मुश्किल होगी. हाल ही में सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई विपक्ष के नेताओं की बैठक में भी बीएसपी शामिल नहीं हुई थी. एसपी और कांग्रेस के नेता बीएसपी के इस रुख से आशंकित भी हैं.