नई दिल्ली: 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए. नतीजे आने के बाद कांग्रेस को इस चुनाव में भी 2014 के चुनाव की तरह ही करारी हार झेलनी पड़ी. इस चुनाव में कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन पार्टी मात्र 52 सीटों पर ही सिमट गई. नतीजों वाले दिन शाम होते-होते सूत्रों के हवाले से खबर आई कि पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे सकते हैं. उसी दिन से लेकर राहुल गांधी के इस्तीफे पर असमंजस बना हुआ है. जानें इस मामले में अबतक क्या-क्या हुआ है.
हार के तुरंत बाद इस्तीफा देना चाहते थे राहुल गांधी!
नतीजों वाले दिन ही राहुल गांधी हार के तुरंत बाद इस्तीफा देना चाहते थे, लेकिन सोनिया गांधी के मना कर पर रूक गए. सूत्रों के मुताबिक, राहुल ने सोनिया गांधी को फ़ोन कर कहा, ‘’मुझे लगता है मुझे इस्तीफ़ा देना चाहिए.’’ राहुल गांधी मीडिया के सामने इस्तीफ़ा देना चाहते थे लेकिन सोनिया गांधी ने कहा मैं अभी फ़ोन करती हूं. उसके बाद सोनिया गांधी ने कुछ वरिष्ठ लोगों को फ़ोन करके उनकी राय ली. उन्होंने कहा कि मीडिया के सामने इस्तीफ़े की बात करना ग़लत होगा और अगर इस्तीफ़े की बात करनी है तो कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में पेशकश करे तो ज़्यादा अच्छा होगा.
CWC की बैठक में राहुल ने इस्तीफे की पेशकश की
25 मई को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी, लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति ने उनका इस्तीफा ठुकरा दिया. बैठक में काग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि आपने हिम्मत के साथ मोदी से लड़ाई लड़ी और सिर्फ आप ही ऐसे नेता थे, जिसन पूरे विपक्ष में पांच सालों में मोदी से टक्कर ली. पार्टी को राहुल गांधी के नेतृत्व और मार्गदर्शन की आवश्यकता है.
हार के बाद जारी रहा कांग्रेस नेताओं का इस्तीफा
राहुल के इस्तीफे की खबरों के बीच कई प्रदेश अध्यक्षों ने इस्तीफा दे दिया. अबतक यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर, अमेठी ज़िला अध्यक्ष योगेंद्र मिश्र, ओडिशा कांग्रेस समिति के अध्यक्ष निरंजन पटनायक, ओडिशा कांग्रेस कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष भक्त चरण दास, कर्नाटक कांग्रेस कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष एच के पाटिल, झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार, असम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ और प्रभारी आशा कुमारी सहति कई छोटे-बड़े नेता अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं.
बता दें कि राहुल गांधी के लिए इस्तीफे की पेशकश उनकी राजनीतिक मजबूरी भी है. पार्टी की इतनी करारी हार के बाद अगर अध्यक्ष जिम्मेदारी नहीं ली तो इसका पार्टी के अंदर संदेश गलत जाएगा. पूरा चुनाव पार्टी राहुल गांधी के चेहरे को सामने कर लड़ी, नीति से रणनीति तक पार्टी अध्यक्ष के नाते उनकी भूमिका अहम रही तो ऐसे में हार की जिम्मेदारी क्या महज जिला औऱ राज्य स्तर के नेता तक सीमित रह जाएगी. खासतौर पर तब जबकि पार्टी 18 राज्यों में अपना खाता भी नही खोल पाई हो.
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