मो.अली जिन्ना की किस बात से शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती रखते हैं इत्तेफाक? बोले- मैं पाकिस्तान के संस्थापक से सहमत
समान नागरिक संहिता यानी कि यूसीसी बीजेपी का मुख्य एजेंडा रहा है. पार्टी के साल 2024 के घोषणा-पत्र में कहा गया था, "भारत में जब तक समान नागरिक संहिता नहीं अपनाई जाती तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती."
Swami Avimukteshwaranand Saraswati on UCC: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जिस समान नागरिक संहिता यानी कि यूसीसी को साल 2024 में बड़ा चुनावी एजेंडा बनाया था, उसे लेकर उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने दो टूक कहा कि वह यूसीसी के खिलाफ हैं और यह नहीं लाया जाना चाहिए. एक जगह पर एक तरह के ही लोग रहने चाहिए.
यूट्यूब न्यूज चैनल 'न्यूज तक' से बातचीत के दौरान अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बोले, "यह जो समानता की बात सुनने में बहुत अच्छी (पहली दृष्टि से) लगती है. यह सही नहीं है, यह हमारा विचार है. हम नहीं जानते कि कोई इससे सहमत हो या असहमत हो. हमारा कहना है कि हम जब सबको समान करना चाहेंगे तब किसी को काटकर छोटा करना पड़ेगा या फिर किसी को जैक लगाकर ऊंचा करना पड़ेगा तभी सब समान हो सकते हैं. ऐसे समानता संभव नहीं है."
हिंदुओं को भी पर्सनल लॉ की जरूरतः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
समानता के चक्कर में हमें धर्मशास्त्रों के नियमों को मानने से मना कर दिया जाए या फिर रोका जाए तब यह हम स्कीकार नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में हम पर्सनल लॉ के तहत जीवन जीने की छूट चाहते हैं...यह हमारा मानना है. जैसे मुस्लिम पर्सनल लॉ से चलते हैं, वैसे ही हमारा भी होना चाहिए. हमारे धर्म में भी बहुत सारा हस्तक्षेप हुआ है, जिसे हटाया जाना चाहिए. यूसीसी सही नहीं है. हम बिल्कुल सही नहीं है. सभी को यूसीसी के तहत अपने धर्म में कटौती करनी पड़ेगी."
मोहम्मद अली जिन्ना का नाम लेकर क्या बोले शंकराचार्य?
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, "सभी धर्म के लोग अगर सहमत हो गए होते तब भारत और पाकिस्तान अलग-अलग नहीं होते. उस समय कितने प्रयास हुए थे पर लोग सहमत नहीं हुए. ऐसे में एक जगह पर एक जैसे लोग रहें. मिलकर रहना और आपस में लड़ना किसी के लिए ठीक नहीं है. हिंदुस्तान में मुसलमान नहीं रहना चाहिए और पाकिस्तान में हिंदू नहीं रहना चाहिए. यह हमारा मानना है. रहीम ने यह बहुत पहले भांप लिया था. हम इस मामले में मोहम्मद अली जिन्ना (टू नेशन थ्योरी के समर्थन के संदर्भ में) से सहमत हैं कि दोनों धर्मों के लोगों को अपनी-अपनी कॉलोनी में रहना चाहिए."
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