‘भीष्माचार्य’ को ‘जबरन सेवानिवृत्ति’ दी गई, आडवाणी का टिकट काटे जाने पर शिवसेना
शिवसेना ने कहा है कि आडवाणी बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर पार्टी का रथ आगे बढ़ाया. लेकिन आज मोदी और शाह ने उनका स्थान ले लिया है.
मुंबई: गुजरात में गांधीनगर लोकसभा सीट पर अमित शाह को उम्मीदवार बनाए जाने और लाल कृष्ण आडवाणी का टिकट काटे जाने पर शिवसेना ने बीजेपी पर निशाना साधा है. शिवसेना ने कहा कि चुनाव में खड़े न होने के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के ‘सबसे बड़े’ नेता रहेंगे. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कहा कि आडवाणी की जगह शाह के चुनाव लड़ने को राजनीतिक रूप से ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय राजनीति के ‘भीष्माचार्य’ को ‘‘जबरन सेवानिवृत्ति’’ दे दी गई है.
बीजेपी का आडवाणी युग खत्म हो गया है- शिवसेना
संपादकीय में कहा गया है, ‘‘लालकृष्ण आडवाणी को भारतीय राजनीति का ‘भीष्माचार्य’ माना जाता है लेकिन लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम नहीं है जो हैरानी भरा नहीं है.’’ शिवसेना ने कहा कि घटनाक्रम यह दर्शाता है कि बीजेपी का आडवाणी युग खत्म हो गया है. आडवाणी (91) गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री रहे. वह गांधीनगर सीट से छह बार जीते. अब शाह इस सीट से पहली बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं. संपादकीय में कहा गया, ‘‘आडवाणी गुजरात के गांधीनगर से छह बार निर्वाचित हुए हैं. अब उस सीट से अमित शाह चुनाव लड़ेंगे. इसका सीधा सा मतलब है कि आडवाणी को सेवानिवृत्ति के लिए विवश किया गया है.’’
मोदी और शाह ने आडवाणी का स्थान ले लिया- शिवसेना
शिवसेना ने कहा, ‘‘आडवाणी बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर पार्टी का रथ आगे बढ़ाया. लेकिन आज मोदी और शाह ने उनका स्थान ले लिया है. पहले से ही ऐसा माहौल बनाया गया कि इस बार बुजुर्ग नेताओं को कोई जिम्मेदारी न मिले.’’ पार्टी ने कहा कि आडवाणी ने राजनीति में ‘‘लंबी पारी’’ खेली है और वह बीजेपी के ‘‘सबसे बड़े’’ नेता रहेंगे. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी ने कांग्रेस पर भी निशाना साधा जिसने कहा है कि गांधीनगर सीट आडवाणी से छीनी गई.
बुजुर्गों के मान-सम्मान की बात कांग्रेस के मुंह से शोभा नहीं देती- शिवसेना
शिवसेना ने कहा, ‘‘कांग्रेस को बुजुर्गों के अपमान की बात नहीं करनी चाहिए. मुश्किल समय में कांग्रेस सरकार चलाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव को पार्टी ने उनकी मौत के बाद भी अपमानित किया.’’ उसने 2013 की उस घटना का भी जिक्र किया जब राहुल गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में एक अध्यादेश फाड़ दिया था. शिवसेना ने कहा, ‘‘सीताराम केसरी के साथ क्या हुआ? ऐसे में बुजुर्गों के मान-सम्मान की बात कांग्रेस के मुंह से शोभा नहीं देती.’’
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