मुंबईः महाराष्ट्र में सरकार बनाये जाने को लेकर जारी गतिरोध के बीच शिवसेना ने कहा है कि वो राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाएगी और सरकार के लिये जरूरी बहुमत भी जुटा लेगी. शिवसेना के इस बयान ने सियासी गलियारों में इसलिये भी हलचल बढ़ा दी है क्योंकि शिवसेना के नेता संजय राऊत ने बीती शाम एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मुलाकात की थी. शिवसेना चाहती है कि बीजेपी सीएम का पद ढाई साल के लिये उसे दे, जो बीजेपी को मंजूर नहीं है.


महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने को लेकर चल रही उठापटक और ज्यादा पेचीदा हो गई है. शिवसेना के नेता संजय राऊत ने शुक्रवार सुबह अपने घर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि राज्य में शिवसेना का मुख्यमंत्री ही होगा. शिवसेना सरकार चलाने के लिये बहुमत जुटा लेगी. इससे पहले राऊत ने एक ट्वीट के जरिये बीजेपी पर अहंकारी होने का आरोप लगाया.


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राऊत के इस बयान ने महाराष्ट्र की सियासत में सनसनी फैला दी है और इस चर्चा को हवा दी है कि क्या शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस जैसी विरोधी विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनायेगी. राऊत का ये बयान इसलिये मायने रखता है क्योंकि बीती शाम राऊत एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मुलाकात करके आये हैं, हालांकि उन्होने ये कहा कि ये मुलाकात दीपावली की शुभकामना देने के लिये थी. 24 अक्टूबर को चुनाव नतीजे आने के बाद से राऊत की पवार के साथ ये दूसरी मुलाकात थी. आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि एनसीपी और कांग्रेस की मदद से शिवसेना की सरकार मुमकिन है.



महाराष्ट्र की विधानसभा में 288 सीटें हैं. इनमें से शिवसेना के पास 56 सीटें हैं, एनसीपी के पास 54 और कांग्रेस के पास 44 सीटें हैं. ऐसे में तीनों पार्टियों के विधायकों को मिलाकर कुल आंकड़ा 154 होता है जो कि बहुमत के आंकड़े 145 से ज्यादा है.


आंकड़े तो शिवसेना का साथ दे रहे हैं, लेकिन सवाल उठता है कि विचारधारा और मुद्दों का. क्या कांग्रेस और एनसीपी अपने से विरोधी विचारधारा रखनेवाली शिवसेना को समर्थन देगी लेकिन सियासी हलकों में ये माना जाता है कि भारत की राजनीति में विचारधारा और मुद्दे सिर्फ चुनावों के पहले तक के लिये होते हैं. नतीजे आने के बाद सबकुछ आंकड़ों के गणित पर सिमट जाता है. जब जम्मू-कश्मीर में बीजीपी-पीडीपी की सरकार बन जाती है, बिहार में लालू-नीतीश की सरकार बन जाती है तो महाराष्ट्र में शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार क्यों नहीं बन सकती.


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वैसे शिवसेना को समर्थन दिये जाने को लेकर कांग्रेस में ही अंदरूनी विरोध शुरू हो गया है. वरिष्ठ नेता सुशीलकुमार शिंदे और संजय निरूपम ने कहा है कि शिवसेना को समर्थन देने का सवाल ही नहीं उठता. वैसे एनसीपी ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. एनसीपी का कहना है कि वो विपक्ष में बैठने के लिये तैयार है लेकिन अगर शिवसेना के तरफ से कोई प्रस्ताव आता है तो उसपर विचार किया जायेगा.


बीजेपी के नेताओं ने फिलहाल शिवसेना के इस आक्रमक तेवर पर चुप्पी साध रखी है. पार्टी की तरफ से आखिरी बयान बुधवार को सुधीर मुनगंटीवार का था जिन्होने कहा कि अगर शिवसेना किसी और के साथ सरकार बनाने की सोच रही है तो इसका मतलब है विनाश काले विपरीत बुद्धि. भले ही शिवसेना दूसरे विकल्प की तरफ जाने की बात कर ही हो, लेकिन सियासी हलकों में यही माना जा रहा है कि ये बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति है ताकि बीजेपी से मनचाहे मंत्रीपद हासिल किये जा सकें.


महाराष्ट्र में मौजूदा सरकार का कार्यकाल 8 नवंबर को खत्म हो रहा है. ऐसे में 9 नवंबर तक नई सरकार बन जानी चाहिये नहीं तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है. ऐसी स्थिति में बीजेपी के सामने विकल्प ये है कि वो अल्पमत में रहते हुए देवेंद्र फडणवीस को सीएम पद की शपथ दिला दे और विश्वास मत हासिल करने की तारीख तक आंकड़े जुटा ले. 2014 में भी बीजेपी ने यही किया था. अल्पमत में होने के बावजूद देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ले ली थी और विश्वास प्रस्ताव आने पर एनसीपी के विधायक सदन से बाहर चले गये, जिससे बहुमत का आंकड़ा घट गया और सरकार बच गई थी.



अजीत पवार का बड़ा बयान-विपक्ष में बैठेगी NCP और कांग्रेस


महाराष्ट्र में सरकार के गठन के मुद्दे पर बीजेपी और शिवसेना में जारी सियासी रस्साकशी के बीच राष्ट्रवादी नेता अजीत पवार ने कहा है कि उनकी पार्टी और सहयोगी दल कांग्रेस विपक्ष में बैठेंगे. पवार ने कहा कि चुनाव के परिणाम से साफ है कि उन्हें विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है और वह ऐसा ही करेंगे. उन्होंने गुरुवार की रात पार्टी अध्यक्ष शरद पवार के आवास पर NCP के बड़े नेताओं के साथ बैठक करने के बाद यह टिप्पणी की. उनकी यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब यह अटकलें चल रही हैं कि शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी राज्य में सरकार बनाएगी और कांग्रेस उन्हें बाहर से समर्थन देगी.


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