Telangana Assembly Election Result 2023: पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजों में से 4 राज्यों के रुझानों में साफ हो चुका है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ेगा और सिर्फ तेलंगाना एक ऐसा राज्य है जहां पर कांग्रेस पार्टी अपना जलवा बिखेरती हुई नजर आ रही है. तेलंगाना में कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाती हुई दिख रही है. राज्य पार्टी की इस जीत के पीछे कई अहम चेहरे हैं लेकिन कुछ चेहरे खास हैं.


मई के महीने में कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बंपर जीत हासिल की थी. इसके पीछे पार्टी के रणनीतिकार सुनील कनुगोलू का अहम रोल सामने आया था. इसके बाद चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का सलाहकार बना दिया गया और कैबिनेट रैंक भी मिली. कहा जाता है कि कनुगोलू ने कर्नाटक चुनावों के लिए कांग्रेस को जीत की रणनीति तैयार करने में मदद की थी.


इस तरह सुनील कानुगोलू बने कांग्रेस के चुनाव रणनीतिकार


सुनील कानुगोलू को तेलंगाना चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने बीआरएस का रणनीतिकार बनने के लिए अपने फार्म हाउस पर बुलाया था. कई दौर की बैठकों के बाद उन्होंने केसाआर के लिए काम करने से मना कर दिया और सभी को चौंकाते हुए कानुगोलू कांग्रेस की चुनाव रणनीति समिति में शामिल हो गए और केसीआर के सामने खड़े हो गए. इससे पहल कांग्रेस प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से कई दौर की बैठक की थी लेकिन उनसे कांग्रेस की बात नहीं बनी.


तेलंगाना में सुनील कानुगोलू ने क्या किया?


सुनील कानुगोली तेलंगाना में कांग्रेस के लिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद ही काम पर लग गए थे. उन्होंने पार्टी की ताकत और कमजोरियों पर जमकर काम किया. तेलंगाना में रणनीति के तहत बैकवर्ड नेताओं को तरजीह देने की सलाह हो या एससी/एसटी का ध्यान या फिर महिलाओं की बात इन सभी चीजों पर उन्होंने जमकर काम किया. साथ ही बीजेपी और बीआरएस की सांठगांठ का मुद्दा राज्य के चुनाव में हावी रहा. इसको लेकर भी सुनील कानुगोलू ने रणनीति बनाई थी.


क्या है तीन बंदर की कहानी?


दरअसल, तीन बंदर चुनावी सलाहकार कंपनी है. इसके सदस्य प्रीतम पाटिल ने बताया कि उनकी कंपनी कैसे काम करती है और किस तरह से चुनाव की रणनीति पार्टी के लिए तैयार करती है. उनका कहना है कि वो ऑपरेशनल मैनेजमेंट, रणनीतिक आउटरीच (ऑनलाइन, मीडिया, ऑन ग्राउंड), निष्पक्ष राजनीतिक खुफिया जानकारी और कैंपेन नैरेटिव बनाकर इनपुट देते हैं.


इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पाटिल ने कहा, “पार्टी लाइन्स में ज्यादातर उम्मीदवारों के पास प्रोफेशनल कंसल्टेंट टीम के बजाय आमतौर पर बहुत कम लोग होते हैं जो या तो निजी सहायक होते हैं या फिर सोशल मीडिया मैनेजर होते हैं. ज्यादातर चीजों के लिए ये लोग कैडर पर निर्भर रहते हैं, इनके इनपुट ज्यादातर पक्षपात वाले होते हैं. जबकि हम लोग नए विचारों और दृष्टिकोण के साथ साथ नई तकनीक से परिचित कराते हैं.”


कंसल्टेंसी की मदद क्यों लेती हैं राजनीतिक पार्टियां?


कांग्रेस और उसके नेताओं के साथ सलाहकार के रूप में काम कर चुकी मेघना का कहना है, “पॉलिकल कंसल्टेंसी का प्रमुख काम ये है कि वो उम्मीदवार या पार्टी का स्पष्ट संदेश जमीन, डिजिटल माध्यम से वोटर्स को पहुंचा सके. एक पार्टी या उम्मीदवार की एक तयशुदा कहानी होती है लेकिन हमारा काम पार्टी की विचारधारा की सदस्यता लेते हुए उनका स्पष्ट पक्ष सामने लाना है. इससे उन्हें अपने मतदाताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है, जिससे चुनाव में उनकी संभावनाएं उज्ज्वल हो जाती हैं.”


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