Tripura Assembly Polls 2023: त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2013 के लिए 16 फरवरी को मतदान हुआ था. त्रिपुरा में लेफ्ट एक बार फिर अपना पुराना गढ़ वापस लेने की उम्मीद लगाए हुए है तो कांग्रेस के लिए करो या मरो जैसी स्थिति है. राज्य में 2 मार्च को चुनाव के नतीजे घोषित होंगे लेकिन इससे पहले आए एग्जिट पोल ने लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को झटका दे दिया. लेफ्ट गठबंधन के हाथ से सत्ता इस बार और दूर होती दिख रही है. इसके पीछे त्रिपुरा राजघराने के प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा हैं, जिनकी पार्टी टिपरा मोथा के शानदार प्रदर्शन के संकेत मिल रहे हैं.
त्रिपुरा में 25 सालों तक दो फ्रंट कांग्रेस और लेफ्ट के बीच मुकाबला होता रहा था लेकिन सत्ता लेफ्ट के पास ही जाती रही. 2018 में इस स्थिति को बीजेपी ने बदल दिया. बीजेपी और आईपीएफटी गठबंधन ने लेफ्ट के किले को ढहा दिया और बिप्लव देब के नेतृत्व में बनी. 5 साल बाद अब फिर से त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव हुए. बीजेपी को हराने के लिए लेफ्ट और कांग्रेस एक साथ आए लेकिन इस बार भी उन्हें झटका लगता दिख रहा है. सभी एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है.
टिपरा मोथा बन सकती है नंबर-2
इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक, लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को 6-11 सीट मिलती दिखाई दे रही है. खास बात ये है कि इस चुनाव में पहली बार मैदान में उतरी टिपरा मोथा को इससे ज्यादा 9-16 सीट मिलती दिख रही है.
एग्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक, 60 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी और आईपीएफटी गठबंधन को 36-45 सीट सकती हैं. गठबंधन को 45 प्रतिशत वोट मिल सकता है, जो कि 2018 के 51 प्रतिशत से 6 कम है. एग्जिट पोल में जिस पार्टी ने सबका ध्यान खींचा है, वो है टिपरा मोथा, जो पहली बार में ही प्रमुख विपक्षी दल बनती नजर आ रही थी.
आदिवासी वोटों पर फोकस
त्रिपुरा के पूर्व राजा के वारिस प्रद्योत देबबर्मा ने चुनाव में टिपरा मोथा को मैदान में उतारा था. पार्टी की प्रमुख मांग आदिवासियों के लिए अलग टिपरालैंड प्रदेश की थी. चुनाव में टिपरा मोथा का फोकस आदिवासी वोटों पर रहा, जो एग्जिट पोल के नतीजों में नजर भी आया. टिपरा मोथा को राज्य में 9-16 सीटें मिलती दिख रही हैं. ये तब है जब केवल त्रिपुरा की आदिवासी आबादी वाली 20 सीटों पर ही त्रिपुरा मोथा लड़ाई में थी.
त्रिपुरा में लेफ्ट-कांग्रेस का बिगाड़ा खेल
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 36 सीटें जीती थीं, जबकि उसकी सहयोगी आईपीएफटी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की. 2018 तक सत्ता में रही सीपीएम को सिर्फ 16 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस का पत्ता ही साफ हो गया.
5 साल के बाद हुए चुनाव में लेफ्ट-कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर का भी सहारा था लेकिन वह भी सीट में बदलता नहीं दिख रहा. दरअसल बीजेपी का वोट शेयर घटा तो है लेकिन इसका फायदा लेफ्ट गठबंधन नहीं, टिपरा मोथा को होता दिख रहा है. एग्जिट पोल टिपरा मोथा को 20 प्रतिशत वोट मिलता दिखा रहा है. आदिवासी समुदाय का 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट अकेले टिपरा मोथा को मिल रहा है. इस समुदाय का 30 प्रतिशत वोट बीजेपी के खाते में जा सकता है.
एग्जिट पोल के नतीजे देखें तो बीजेपी को नुकसान तो साफ दिख रहा है लेकिन ये लेफ्ट-कांग्रेस में ट्रांसफर होने की जगह टिपरा मोथा की झोली में गिरा है. प्रद्योत देबबर्मा भले ही किंगमेकर बनने से रह गए हों, लेफ्ट को एक बार फिर किंग बनने से रोकते तो दिख ही रहे हैं. फिलहाल, तो ये एग्जिट पोल हैं और त्रिपुरा की सत्ता के असल किंग का पता 2 मार्च को ही चलेगा.
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