संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है और मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश का बजट पेश करेंगी. चूंकि इस बार बजट चुनावी सीजन में पेश किया जा रहा है, ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि 5 राज्यों के लिए 'स्पेशल' घोषणाएं हो सकती हैं. चुनावी राज्यों की जनता भी यह आस लगाए रहती है कि बजट में उनके लिए कुछ न कुछ खास जरूर होगा. वहीं सत्ताधारी पार्टियों के लिए भी यह एक मौका होता है ताकि वह चुनावी राज्यों में पार्टी और नेताओं की छवि को लुभावनी योजनाओं से बेहतर कर सकें. 


लेकिन मुद्दा ये है कि चुनावी राज्यों के लिए लोकलुभावन घोषणाओं से सत्ताधारी पार्टी को आखिरकार फायदा मिलता भी है या नहीं और अगर मिलता है तो कितना, जानें इस रिपोर्ट में.


इस रिपोर्ट में 14 राज्यों के 42 विधानसभा चुनाव का आकलन किया गया है, जो पिछले डेढ़ दशक में हुए हैं. ये राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, प.बंगाल, उत्तराखंड, पुडुचेरी, असम, केरल, तमिलनाडु, मणिपुर, ओडिशा, गोवा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और पंजाब.


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आंकड़ों से समझें बजट से चुनावी फायदा मिला या नुकसान


ऊपर जो राज्य बताए गए हैं, वहां चुनाव अकसर बजट के कुछ पहले या बाद ही होते हैं. अगर इतिहास के आंकड़ों को खंगाल कर देखें तो पलड़ा नुकसान की ओर झुका नजर आता है. बजट के बाद 42 चुनाव हुए, जिसमें से 18 में उस पार्टी की सरकार नहीं बनी जो पहले से सत्ता में थी. 13 चुनावों में सत्तासीन पार्टी की बल्ले-बल्ले हुई और 11 चुनाव ऐसे रहे, जहां बजट का चुनाव के परिणामों पर कोई असर दिखाई नहीं दिया. जिन 18 चुनावों में सत्ताधारी पार्टी को नुकसान हुआ, उसमें 15 बार कांग्रेस और तीन बार बीजेपी को जनता का गुस्सा सहना पड़ा.


जबकि तीन 13 राज्यों में फायदा मिला, उसमें 9 बार बीजेपी और 4 बार कांग्रेस शामिल थी. 11 मौके ऐसे थे, जब बजट का चुनाव पर कोई असर नहीं दिखा. इसमें 4 बार कांग्रेस और 7 बार बीजेपी सत्ता में थी.


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फायदा पहुंचा या नुकसान...इसका गणित क्या है


आम बजट के बाद जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, वहां सत्ताधारी पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कितनी कम या  ज्यादा सीटें मिलीं, यही फायदे और नुकसान का आधार था. उदाहरण के तौर पर:



  • बजट के बाद साल 2006 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हुए. केंद्र में मनमोहन सरकार थी. कांग्रेस ने 34 सीटों पर जीत हासिल की जबकि साल 2001 में उसे सिर्फ 7 सीटें ही नसीब हुई थीं. यानी बजट के बाद कांग्रेस को फायदा मिला.

  • 1 फरवरी को हर साल बजट पेश किया जाता है. साल 2017 में पंजाब में 11 फरवरी को चुनाव हुए. केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार को महज 3 सीटें मिलीं. जबकि 2012 में उसने 12 सीट जीती थीं. बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा. 

  • साल 2021 के अप्रैल में असम में चुनाव थे. फरवरी में बजट पेश किया गया. बीजेपी की एनडीए सरकार ने 60 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि 2017 में भी बीजेपी को इतनी ही सीट मिली थीं. बजट का कोई असर चुनाव परिणामों पर नहीं पड़ा. 


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