नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां मैदान में उतर चुकी हैं, आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है. एक दूसरे पर जमकर बयान बाण भी चलाए जा रहे है, एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची हुई है. लोकसभा चुनाव के इस सियासी समर के बीच केंद्रीय मंत्री जंयत सिन्हा के बयान से बीजेपी बैकफुट पर जाती दिख रही है. एक निजी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में जयंत सिन्हा ने कहा कि चुनाव के बाद स्थिर सरकार मिलने की संभावना कम है.


जयंत सिन्हा ने क्या कहा?
जयंत सिन्हा ने कहा, ''यदि हम ऐसी स्थिति में पहुंचते हैं जहां हमें मजबूत और स्थिर सरकार नहीं मिलती है और जिसकी मुझे काफी संभावना लगती है. ऐसे में मेरा मानना है कि ये आगे चलकर भारत के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी. हमारे लिये लक्ष्य ये होना चाहिए कि हम लोगों को अवगत कराएं, ये सुनिश्चित करें कि लोग समझ सकें कि हमने क्या किया है और बाद में आशंका को देखते हुये क्या कुछ जोखिम में आ सकता है.'' सिन्हा का यह बयान तब आया है जबकि पिछले महीने ही बीजेपी को तीन बड़े हिंदी राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में सत्ता गंवानी पड़ी थी.


विवाद के बाद बयान पर दी सफाई
बयान पर विवाद शुरू हुआ तो जयंत सिन्हा ने ट्टीट कर सफाई दी. जयंत सिन्हा ने ट्वीट किया, ''मीडिया मेरे बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहा है. मेरा अपना आंकलन है कि 2019 का चुनाव हमारे माननीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पहले ही जीत लिया गया है.''


और किसने क्या कहा?
इसी कार्यक्रम में बिजनेसमैन सज्जन जिंदल ने कहा कि 2019 का लोकसभा चुनाव देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़े आसन्न जोखिमों में से है. नई सरकार के उम्मीदों के बारे में जिंदल ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का प्रभुत्व कम होगा. उनकी राय से सहमति जताते हुए बैंकर उदय कोटक ने कहा कि हमें वित्तीय क्षेत्र के बारे में नए सिरे से सोचना होगा. अगली सरकार को गंभीरता से इस बात पर विचार करना होगा कि इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में सरकारी स्वामित्व की स्थिति को कैसे बेहतर तरीके से रखा जाए.


हालांकि, उन्होंने तुरंत अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि वह सार्वजनिक स्वामित्व निजी क्षेत्र को देने की वकालत नहीं कर रहे हैं. बल्कि चाहते हैं कि स्वामित्व को इस तरह से व्यापक किया जाए जिससे कंपनियों में आम जनता की हिस्सेदारी बढ़ सके. कोटक ने कहा कि भारतीय रिजर्व को रेपो दर में आधा प्रतिशत की कटौती करनी चाहिए. साथ ही नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी कटौती होनी चाहिए.