UP Election: राजनीति समीकरण और जातियों के फॉर्मूले का खेल है. जो इस दांव-पेच को वक्त के अनुसार समझ लेता है, वही सियासी शतरंज का बादशाह कहलाता है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान हो चुका है. चुनावी बिसात बिछ चुकी है. पार्टियों ने अपने-अपने चुनावी लड़ाकों को भी उतार दिया है. वार-पलटवार का दौर बदस्तूर जारी है. वोट हासिल करने के लिए जो भी तिकड़म अपनाई जा सकती हैं, पार्टियां वो सब कर रही हैं. 


यूपी चुनाव में इस बार कुछ ऐसा ही हो रहा है. कभी मुलायम सिंह यादव की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाने वाले ठाकुर समुदाय के नेता आज समाजवादी पार्टी में हाशिए पर नजर आ रहे हैं.  दिलचस्प बात है कि अखिलेश यादव की सरकार में 11 ठाकुर मंत्री थे. लेकिन इनमें से इस बार किसी को टिकट नहीं मिला है. न तो किसी रैली, प्रेस कॉन्फ्रेंस और न ही कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में ठाकुर नेता नजर आ रहे हैं. इसके अलावा अखिलेश यादव के साथ भी ठाकुर फेस नदारद है. 


आज अखिलेश यादव और उनकी पार्टी जिस मुकाम पर खड़ी है, उसे वहां तक पहुंचाने में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के अलावा दिवंगत नेता अमर सिंह का बड़ा हाथ है. यूपी में साल 2003 में बीजेपी और बीएसपी की सरकार थी. मायावती मुख्यमंत्री थीं. लेकिन बीजेपी के कुछ फैसलों से नाराज होकर मायावती ने इस्तीफा दे दिया और सरकार गिर गई. इसके बाद बीएसपी के 13 विधायकों ने मुलायम सिंह यादव को समर्थन दे दिया और सपा की सरकार बन गई.


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इन 13 विधायकों की अगुआई राजपूत विधायक राजेश सिंह राणा और योगेश प्रताप सिंह ने की थी. इस दौरान सपा और मुलायम सिंह को कुंडा के राजा रघुराज प्रताप सिंह का भी समर्थन मिला. ये वो वक्त था, जब सपा में ठाकुर मंत्रियों की तूती बोलती थी. 


साल 2012 में बनी अखिलेश यादव सरकार में 11 ठाकुर मंत्री थे, जिनमें से 5 ही अब पार्टी में बचे हैं. और जो बचे हैं, वो भी पार्टी में हाशिए पर हैं. कभी अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले अरविंद सिंह गोप, योगेश प्रताप सिंह और ओम प्रकाश सिंह फ्रंटफुट पर नजर नहीं आ रहे हैं. लेकिन अचानक ऐसा क्या हो गया कि सपा में ठाकुर नेता एकदम नदारद हो गए हैं. 


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वरिष्ठ पत्रकार अभय कुमार दुबे का मानना है, 'मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जो सरकार है वो ठाकुर बिरादरी को खासी प्राथमिकता देती है. 5 साल योगी आदित्यनाथ ने जो सरकार चलाई है, उसमें सबसे ज्यादा प्राथमिकता राजपूतों को दी है. एक तरह से देखा जाए तो राजपूत बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के प्रतिबद्ध वोटर हैं. इसलिए अन्य पार्टियां मानती हैं कि वह राजपूतों को टिकट देंगी तो उससे कोई फायदा नहीं होगा. इसलिए अन्य पार्टियां राजपूतों को कम टिकट देंगे और इस समुदाय को बीजेपी की ओर से ज्यादा टिकट दिए जाएंगे. 


क्या वोट काटने का काम भी दूसरी पार्टी के ठाकुर नेता नहीं कर पाएंगे इस पर अभय कुमार दुबे ने कहा कि पहली बार ठाकुर बिरादरी बहुत निष्ठा के साथ बीजेपी के साथ है. इससे पहले ऊंची बिरादरी खास कर राजपूतों और वैश्यों की समाजवादी पार्टी के साथ हुआ करती थी. इस बार पहले से घोषित है कि ठाकुर समुदाय बीजेपी को वोट देने वाला है. इसलिए सपा समेत अन्य पार्टियां ठाकुर नेताओं को टिकट देने से कतरा रही हैं'.   



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ठाकुर नेताओं को टिकट न देने का सपा का दांव कितना फिट बैठता है, ये तो 10 मार्च को पता चल ही जाएगा. लेकिन अंदरखाने ठाकुर नेताओं को अन्य पार्टियों में अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता जरूर होने लगी है.