UP Assembly Elections 2022: समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने सोमवार को कैमरों से सामने हाथो में अनाज लेकर अन्न संकल्प लिया, इस अन्न संकल्प किसानों से वादों के साथ वोट की अपील का भी तड़का लगा हुआ था. अन्न संकल्प पूरा होते ही अखिलेश ने किसानों के लिए अपना पिटारा खोला. वादों के पिटारे के साथ साथ अखिलेश किसानों को लखीमपुर कांड भी याद दिलाने से नहीं चूके. अखिलेश के निशाने पर पहले चरण वाले चुनावी क्षेत्र थे, जहां किसान के हाथ में जीत हार का सेहरा होता है.


अखिलेश यादव के वायदे



  • सभी फसलों के लिए MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) प्रदान की जाएगी

  • गन्ना किसानों को 15 दिन में उनका भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा.

  • ‘फार्मर्स रिवाल्विंग फंड’ बनाया जाएगा जिससे किसानों का भुगतान नहीं रुके

  • सभी किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली दी जाएगी.

  • ब्याज मुक्त कर्ज, बीमा एवं पेंशन की भी व्यवस्था किसानों के लिए की जाएगी.

  • किसानों पर दर्ज किए गए कदमों को वापस लिया जाएगा.

  • जिन किसानों की जान गई है, उन किसानों के परिवारों को 25 लाख रुपये दिया जाएगा.


लखीमपुर खीरी कांड का जिक्र


अखिलेश ने किसानों के लिए जब अपना पिटारा, तो उस समय लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) के तेजिंदर बिर्क भी बगल में बैठे थे. तेजिंदर बिर्क के मुताबिक, वो भी जीप कांड में जख्मी हुए थे, उन्हें बगल में बिठाकर अखिलेश यादव ने किसानों को लखीमपुर कांड भी याद दिलाया.


उन्‍होंने कहा, ‘‘...उन्होंने किसानों के ऊपर जीप चढ़ाई, अंग्रेजों की सरकार में भी किसानों पर ऐसा जुल्म नहीं हुआ जैसा बीजेपी की सरकार में हुआ. जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने सीने पर गोली चलाई और यहां पर शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन खत्‍म कर घर जा रहे किसानों के ऊपर पीछे से जीप चढ़ाई. इसीलिए हम अन्‍न संकल्प ले रहे हैं कि जिन्‍होंने किसानों के साथ ऐसा व्यवहार किया है उनको हटाएंगे और हराएंगे.''




अखिलेश यादव के अन्न संकल्प का कुर्सी कनेक्शन बेहद सधा हुआ है, उत्तर प्रदेश के पहले चरण में जिन सीटों पर चुनाव होने जा रहे है, वहां के लिए अखिलेश ने पूरी ताकत झोकी है. और इस इलाके में किसानों ने अगर साइकिल (सपा का चुनाव चिह्न) और हैंडपैंप (आरएलडी का चुनाव चिह्न) के साथ नहीं आया, तो अखिलेश की पूरी गणित ही बिगड़ सकती है.


पश्चिमी यूपी की क्या है अहमियत


यूपी में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होगा, इस दौरान 58 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे, जिसमें पश्चिमी यूपी के 11 जिले हैं, और ये वहीं जिले हैं, जिन्हें किसान आंदोलन का केंद्र समझा जाता है. वैसे तो उत्तर प्रदेश की आधी सीटों पर जीत हार की चाभी किसान के पास होती है, लेकिन पश्चिमी यूपी में किसानों की अहमियत और भी बढ़ जाती है


पश्चिमी यूपी में कुल 136 सीटें आती है, जिनमें 120 सीटों पर किसान निर्णायक भूमिका निभाता है. बीजेपी पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इस इलाके पर पूरी तरह से काबिज रही है. इस बार अखिलेश जयंत के साथ मिलकर बीजेपी के इस किले में सेंध लगाने की बिसात बिछा रहे हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि कुर्सी एक चाभी इस इलाके में भी छिपी है.


पिछले दो चुनाव के नतीजे


पिछले दो चुनावों के नतीजे यही बताते हैं कि जिसने पश्चिमी यूपी का किला फतह कर लिया, यूपी का ताज उसी के सिर सजता है. 2012 के चुनाव में बीजेपी को 20, एसपी को 58 और बीएसपी को 39 सीटें मिली थी और समाजवादी पार्टी ने सरकार बनाई थी. वहीं 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 109, एसपी ने 21 और बीएसपी ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही.


2017 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन की वजह जाट और किसान वोट थे. अब किसान आंदोलन की वजह से अन्नदाता बीजेपी से नाराज माना जा रहा है, इसलिए पश्चिमी यूपी में किसान वोट की लड़ाई छिड़ी है और सभी पार्टियां टिकैत परिवार को साधने में लगी हैं.


किसान आंदोलन के दौरान राकेश टिकैत बार बार खुद की राजनीतिक दलों से दूर बता रहे थे, लेकिन उनके भाई नरेश टिकैत ने जैसे ही गठबंधन के लिए वोट की अपील की, मामला ने ऐसा तूल पकड़ा कि नरेश टिकैत को य़ू टर्न लेना पड़ गया.




इससे भी बात नहीं बनी तो बड़े भाई के बचाव में छोटे भाई राकेश टिकैत को भी उतरना पड़ा. उन्होंने कहा कि एक प्रत्याशी (आरएलडी-सपा गठबंधन उम्मीदवार) आशीर्वाद मांगने आया था उसे सिर्फ आशीर्वाद दिया गया था, कोई भी आशीर्वाद मांगने आएगा तो उसे वापस नहीं भेजा जा सकता.


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