Yogi Adityanath Profile: "मैं योगी आदित्यनाथ शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा...''. एक बार फिर बीजेपी के कद्दावर नेता योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे.
2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इतिहास रच दिया है. बीजेपी 272 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है और समाजवादी पार्टी 126 पर आगे है. जबकि कांग्रेस दो, बसपा 1 और निर्दलीय 2 सीटों पर आगे चल रहे हैं. इस शानदार जीत के साथ पार्टी में योगी आदित्यनाथ का कद और बढ़ गया है. योगी ने यह भी मिथक भी तोड़ दिया कि जो मुख्यमंत्री नोएडा जाता है उसकी कुर्सी चली जाती है और कई बार नोएडा जाने के बावजूद वह उत्तर प्रदेश में लगातार पिछले पांच वर्ष से मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
कैसे सत्ता के शिखर तक पहुंचे योगी आदित्यनाथ
साल 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे जब आए तो बीजेपी ने 300 प्लस सीटों के साथ जीत हासिल की. हालांकि शुरुआत में मनोज सिन्हा का सामने सीएम की रेस में आया था लेकिन बीजेपी ने अप्रत्याशित फैसला लेते हुए योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया. उस वक्त योगी आदित्यनाथ की छवि हिंदुत्व के 'पोस्टर बॉय', भगवा वस्त्र पहनने वाले और तेज-तर्रार नेता के तौर पर थी. उनका ये स्टाइल आज भी कायम है.
योगी आदित्यनाथ के आलोचक मानते हैं कि देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य को संभालने के दौरान उनकी फायर ब्रांड छवि में थोड़ा संतुलन भले आया हो लेकिन उनमें बहुत ज्यादा बदलाव आया हो, ऐसा नहीं है.
पौड़ी में जन्म, सात भाई-बहन और फिर बने संन्यासी
तारीख थी 5 जून 1972 और जगह थी उत्तराखंड का पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर तहसील का पंचुर गांव. आनंद सिंह बिष्ट के घर एक लड़के का जन्म हुआ. नाम रखा गया अजय सिंह बिष्ट. माता-पिता के सात बच्चों में सबसे तेज-तर्रार. जानकारों का कहना है कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए योगी आदित्यनाथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी से जुड़ गए और 1992 में उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी से बीएससी की.
राम मंदिर आंदोलन के दौर में उनका रुझान आंदोलन की ओर हुआ और इसी बीच वह गुरु गोरखनाथ पर रिसर्च करने के लिए साल 1993 में गोरखपुर आए. गोरखपुर में वह महंत और राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुवा महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए और 1994 में योगी पूर्ण रूप से संन्यासी हो गए.
महंत अवैद्यनाथ के बने उत्तराधिकारी
योगी को महंत अवैद्यनाथ ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और दीक्षा लेने के बाद अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ हो गए. 12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद योगी गोरक्षपीठ के महंत घोषित किए गए. उस वक्त वह बीजेपी से टकराव के भी गुरेज नहीं रखते थे और उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी नामक स्वयंसेवकों के अपने एक संगठन की स्थापना भी की थी.
राजनीति में योगी गोरक्षपीठ की तीसरी पीढ़ी
योगी का राजनीतिक सफर उपलब्धियों से भरा है. राजनीति में योगी गोरक्षपीठ की तीसरी पीढ़ी हैं. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ भी गोरखपुर से विधायक और सांसद रहे. इसके बाद महंत अवैद्यनाथ ने भी विधानसभा और लोकसभा दोनों में प्रतिनिधित्व किया.
योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 1998 में महज 26 वर्ष की उम्र में पहली बार गोरखपुर से बीजेपी के सांसद बने और लगातार पांच बार उनकी जीत का सिलसिला बना रहा. योगी आदित्यनाथ ने इस बार भी करीब ढाई दशक के अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार गोरखपुर से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा.
जब चुने गए थे विधायक दल के नेता
मार्च 2017 में लखनऊ में बीजेपी विधायक दल की बैठक में योगी को विधायक दल का नेता चुना गया था. इसके बाद योगी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और विधान परिषद के सदस्य बने और 19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
ये फैसले रहे चर्चित
- अपने कार्यकाल की शुरुआत में उन्होंने अवैध बूचड़खानों पर बैन लगा दिया.
- पुलिस ने गोहत्या पर नकेल कस दी.
- उनकी सरकार बाद में जबरन या धोखे से धर्मांतरण के खिलाफ पहले अध्यादेश और फिर विधेयक लेकर आई.
37 साल बाद बना कीर्तिमान
यूपी में करीब 37 वर्ष बाद बीजेपी लगातार दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर कीर्तिमान बनाती नजर आ रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे योगी आदित्यनाथ का कद और बढ़ा है. इसके पहले साल 1985 में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत से कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई थी.
माना जाता है कि योगी ने मौजूदा विधानसभा चुनाव में 80 बनाम 20 प्रतिशत का नारा देकर वोटों के ध्रुवीकरण की पहल की. विश्लेषकों ने 20 प्रतिशत को मुस्लिम आबादी और 80 प्रतिशत को हिंदू आबादी के रूप में देखा. इसके योगी ने माफिया और अपराधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को भी पूरे चुनाव में मुद्दा बनाया.
बीजेपी के शीर्ष नेताओं के चुनाव प्रचार में 'योगी का बुलडोजर' छाया रहा. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी अक्सर अपनी सभाओं में बुलडोजर और बुल (सांड) का नाम लेकर योगी पर तंज कसते थे. यादव ने चुनाव में छुट्टा पशुओं पर नियंत्रण न लगा पाने को मुद्दा बनाया था.
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