लखनऊ: यूपी में राज्यसभा की दसवीं सीट पर कौन जीतेगा? बीजेपी ने अनिल अग्रवाल को उतार कर पेंच फंसा दिया है. अगर बीएसपी का उम्मीदवार हारा तो फिर अखिलेश यादव और मायावती की दोस्ती खटाई में पड़ सकती है. दोनों ही नेताओं की नींद उड़ी हुई है. मायावती और अखिलेश यादव को अपने विधायकों के क्रॉस वोटिंग का डर सताने लगा है. इसीलिए तो बीएसपी और एसपी के एमएलए पर अब ख़ुफ़िया नज़र रखी जा रही है.


चुनाव तो राज्यसभा का है लेकिन असर अगले लोकसभा चुनाव पर हो सकता है. यूपी कोटे से दस सीटों पर 23 मार्च को वोट डाले जाएंगे. राज्य में विधायकों की संख्या 403 है. राज्यसभा का सांसद चुने जाने के लिए 37 एमएलए के वोट चाहिए. बीजेपी ने 11 उम्मीदवार खड़े किए हैं लेकिन इनमें से दो अपना नामांकन वापस ले लेंगे. पार्टी के 325 विधायक थे लेकिन पिछले महीने एक एमएलए की मौत हो गई थी. राज्यसभा का चुनाव जीतने के लिए एक उम्मीदवार को 37 वोट चाहिए.


इस हिसाब से आठ सांसद चुने जाने के बाद पार्टी के पास 28 वोट बच जायेंगे. अब जुगाड़ 9 वोट का करना होगा. बाहुबली नेता राजा भैया उर्फ़ रघुराज प्रताप और उनके सहयोगी विनोद सरोज बीजेपी के साथ जा सकते हैं. पिछले ही हफ़्ते राजा भैया ने कहा था, “ अखिलेश यादव जी को पता चल जायेगा कि मायावती से समझौता कितना ख़तरनाक हो सकता है.” जेल में बंद बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमरमणि भी निर्दलीय विधायक हैं. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद से ही वे उनके क़रीबी बनने में जुटे हैं.


राष्ट्रीय निषाद पार्टी के एमएलए विजय मिश्र भी इन दिनों बीजेपी नेताओं के आगे पीछे घूमते हैं. बागपत से आरएलडी के इकलौते विधायक ने भी बीजेपी का साथ देने का मन बनाया है. इस तरह बीजेपी के समर्थक एमएलए की संख्या 33 हो जाती है. ख़बर है कि पार्टी के रणनीतिकार बीएसपी के तीन और समाजवादी पार्टी के पांच विधायकों के संपर्क में हैं. लखनऊ से सटे जिले से मायावती की पार्टी के एक एमएलए को हाल में बीजेपी ऑफ़िस में देखा गया था. कांग्रेस के भी एक विधायक पाला बदल सकते हैं. ऐसा हुआ तो बीजेपी के नौंवे उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को जीतने से कोई रोक नहीं सकता है.


अब बात समाजवादी पार्टी और बीएसपी के उम्मीदवारों की. अखिलेश यादव के 47 विधायक हैं. जया बच्चन के सांसद चुने जाने के बाद 10 वोट बच जायेंगे. मायावती के पास 19 एमएलए हैं. सात विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी ने बीएसपी के समर्थन का एलान किया है. ऐसे हालात में 36 वोट होते हैं लेकिन हिसाब इतना सीधा नहीं है. ख़बर है कि समाजवादी पार्टी में शिवपाल यादव और उनके समर्थक विधायक अपने वोट ही न डालें. जोड़-तोड़ की राजनीति के माहिर नरेश अग्रवाल अब बीजेपी में हैं. बीएसपी और समाजवादी पार्टी के कमज़ोर कड़ियों को वे बख़ूबी जानते हैं. दोनों ही पार्टियों से वे राज्यसभा सांसद रह चुके हैं.


नरेश अग्रवाल के विधायक बेटे नितिन अग्रवाल का वोट भी बीजेपी को ही मिलेगा. इसके अलावा भी वे कुछ और वोटों का जुगाड़ कर सकते हैं. अब अगर बीएसपी के भीमराव अंबेडकर हारे तो समझिए बुआ और भतीजे के रिश्तों की तो हवा निकल जायेगी. मायावती और अखिलेश यादव के बीच हुए समझौते में गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव के साथ राज्य सभा का भी चुनाव था. लेकिन नतीजों में हार से रिश्तों की हार तय है. 23 सालों बाद बीएसपी और समाजवादी पार्टी में हुई दोस्ती भी संकट में पड़ जायेगी. जानकार मानते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ख़िलाफ़ दोनों का साथ होना फिर नामुमकिन हो सकता है.