(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
मोदी को फिर पीएम बनाने के लिए यूपी में बीजेपी नेताओं के आने वाले हैं 'अच्छे दिन'
दो महीने बाद यूपी में बीजेपी सरकार के साल भर पूरे हो जाएंगे लेकिन सभी निगम और आयोग खाली पड़े हैं. पिछले कई महीनो से लिस्ट बन रही है लेकिन अब तक नाम तय नहीं हो पाए हैं.
लखनऊ: बहुत जल्द योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्रिमंडल में फेरबदल होने वाला है. बीजेपी के कई नेताओं को निगमों और आयोगों में फिट करने की तैयारी है. कुछ नेताओं को बीजेपी के संगठन में जगह मिल सकती है. अगले लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में बीजेपी अपना घर ठीक कर लेना चाहती है.
दो महीने बाद यूपी में बीजेपी सरकार के साल भर पूरा हो जाएगा लेकिन सभी निगम और आयोग खाली पड़े हैं. पिछले कई महीनों से लिस्ट बन रही है लेकिन अब तक नाम तय नहीं हो पाए हैं. पिछले विधान सभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला था. अब सभी नेता अपने लिए कुछ ना कुछ ईनाम चाहते हैं. नाम तय करने के लिए आरएसएस, बीजेपी और सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं.
जैसे जैसे समय बीत रहा है, बीजेपी के नेता अधीर होते जा रहे है. अब तो हालत ये है कि पार्टी की मीटिंग में कुछ नेता भड़ास निकालने से परहेज नहीं करते. बीजेपी के लिए ये खतरे की घंटी है. इस घंटी की आवाज दिल्ली तक पहुंचने लगी है. योगी आदित्यनाथ समेत यूपी की बीजेपी सरकार में 47 मंत्री हैं. तेरह और नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है. एक-एक सीट के लिए कई दावेदार हैं. संगठन के कुछ चेहरों को सरकार में भेजने के बारें में फैसला हो चुका है.
वहीं कुछ ऐसे भी नेता हैं जो ना तो सरकार में हैं ना ही संगठन में, लेकिन उनका साथ जरूरी है. ऐसे लोगों को बीजेपी की प्रदेश कमेटी में जगह दी जाएगी. अगड़ी जातियां तो बीजेपी के लिए वोट करती रही हैं. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को नया सहारा मिल गया. गैर यादव पिछड़ी जातियों के वोट ने कमाल ही कर दिया लेकिन सत्ता में भागीदारी को लेकर इस समाज के नेताओं का धैर्य जवाब देने लगा है.
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ठाकुर, एक डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ब्राह्मण और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे भी ब्राह्मण ही हैं. दूसरे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या पिछड़ी जाति से आते हैं. पिछड़ों को नाराज करने का ख़तरा बीजेपी मोल नहीं ले सकती है. पिछले लोक सभा चुनाव में पार्टी को 80 में से 71 सीटें मिली थीं. जबकि सहयोगी अपना दल के दो सांसद चुने गए थे. बीजेपी के लिए पिछड़ी जातियों का साथ कितना जरूरी है. इसका पता इस बात से चलता है कि कुर्मी वोट के लिए पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अपना दल से समझौता किया तो विधान सभा के चुनाव में राजभरों की पार्टी सुहेलदेव समाज पार्टी का साथ लेना पड़ा.