Uttar Pradesh Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश के सियासी दंगल में वादों और दावों का दौर चल रहा है. इस बीच abp न्यूज के कार्यक्रम 'घोषणापत्र' में बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल शामिल हुईं. अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं और कुर्मियों का एक बड़ा चेहरा हैं. यूपी में कई दिग्गजों के पार्टी छोड़ देने के बाद अपना दल एस की अहमियत और बढ़ गई है. ऐसे में पार्टी ने बीजेपी से यूपी की 18 सीटें हासिल कीं और उन पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.


अपना-दल एस यूपी में बीजेपी की सहयोगी पार्टी है. अनुप्रिया पटेल की राजनीति जिस कुर्मी वोटबैंक के जरिए चलती है वो यूपी में करीब 5 फीसदी है. वो दो बार सांसद और एक बार विधायक बनीं. वो पूर्वांचल के बड़े नेता सोनेलाल पटेल की बेटी हैं. वहीं उनकी मां कृष्णा पटेल समाजवादी पार्टी के गठबंधन के साथ हैं. घोषणापत्र कार्यक्रम में अनुप्रिया पटेल ने कहा कि जिंदगी में हर पल एक नई चुनौती खड़ी है, जीत जाते हैं वो जिनकी सोच बड़ी है. ऐसी ही सोच के साथ सोनेलाल पटेल ने अपना दल बनाया. उन्होंने कहा कि अपना दल ने अपने वोटर्स की आकांक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश की है. अनुप्रिया पटेल ने दावा किया कि 10 मार्च को हम अपनी सफलता को एक बार फिर दोहराएंगे और एनडीए गठबंधन की सरकार बनेगी. 


क्या जीते तो सरकार में आपका डिप्टी सीएम होगा?


इस सवाल के जवाब में अनुप्रिया पटेल ने कहा कि हमारा फोकस ज्यादा से ज्यादा जनता तक पहुंचना है. एक बार सरकार बन जाएगी तो बाकी बातें बाद में तय कर ली जाएंगी. अभी सरकार बनाने पर हमारा पूरा जोर है. मुसलमान उम्मीदवार से क्या संदेश देना चाहती हैं? इस सवाल के जवाब में अनुप्रिया पटेल ने कहा कि इतिहास देख लीजिए हमने मुस्लिम उम्मीदवारों को लड़ाया है. हमारा पहला विधायक भी मुस्लिम समुदाय से बना. एक अच्छे कैंडिडेट को मौका मिलना चाहिए. हमारी पार्टी का हर फैसला हम खुद करते हैं.


हिंदुत्व या सामाजिक न्याय क्या सर्वोपरि?


इस सवाल के जवाब में अनुप्रिया पटेल ने कहा कि हमारी पार्टी सामाजिक न्याय को लेकर आगे बढ़ी है और यही हमारा इतिहास है. बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला तो क्या सहयोगी की प्रासंकिता कम होगी? इस सवाल पर अनुप्रिया पटेल ने कहा कि बीजेपी को बड़ा बहुमत इसलिए मिला, क्योंकि उसके पीछे छोटे दल हैं. उन्होंने कहा कि हम भारतीय जनता पार्टी में हम कभी अप्रासंगिक नहीं रहे. हमारी संख्या और हमारा दायरा बढ़ेगा. बहुत सारे मामले अभी हल नहीं हुए हैं, बढ़ी हुई ताकत के साथ हस्तक्षेप भी बढ़ेगा.


क्या मां से पैचअप की गुंजाइश?


अनुप्रिया पटेल ने कहा कि मेरी पार्टी की विचारधारा के साथ मैं खड़ी हूं. मैं अपने पिता की विचारधारा के साथ खड़ी हूं. मां के खिलाफ हमारी पार्टी चुनाव नहीं लड़ेगी ये हमारा फैसला है. जीत के लिए ध्रुवीकरण करना क्या सही है? अनुप्रिया पटेल ने इस सवाल को लेकर कहा कि मतदाता बहुत जागरुक है. मतदाता मंथन भी करता है और जांचता-परखता भी है. बातों के गोल गप्पे लोगों को अच्छे नहीं लगते. दूसरी पार्टियां किन शब्दों को प्रयोग करती हैं, इसको मैं तय नहीं कर सकती. अपना दल विशुद्ध रूप से सामाजिक न्याय की ही बात करेगा. 


हम हमेशा वंचित वर्ग की बात करते हैं


सामाजिक न्याय और पिछड़ों को लेकर दलों के बीच टकराव है? इस सवाल पर अनुप्रिया पटेल ने कहा कि छोटी पार्टियों को अक्सर आप इस चश्में से देखना चाहते हैं कि हम सिर्फ जाति की बात करते हैं. हमने समग्र वंचित वर्ग की बात की है. मैंने पूरे ओबीसी वर्ग की बात उठाई है. हम कमजोर वर्गों के हितों की बात करते हैं.


हिंदुत्व आपका मुद्दा नहीं तो क्या ये बीजेपी को मैसेज है?


इस सवाल के जवाब में अनुप्रिया पटेल ने कहा कि हम बीजेपी के साथ 8 साल से जुड़े हैं. मैसेज देने वाली कोई बात नहीं है. वो शुरुआत से हमें जानते हैं, बीजेपी को हमारे स्टैंड पर कोई संदेह नहीं है. 40 फीसदी महिलाओं के टिकट पर अनुप्रिया पटेल ने कहा कि कांग्रेस बेहद कमजोर स्थिति में है. उनका वोटबैंक खिसक गया है. संगठन को फिर से खड़ा करने के लिए ये प्रयोग किया जा रहा है. इसके सफल होने की संभावना नहीं है. क्या सीएम चेहरा न बनाकर केशव प्रसाद की अनदेखी हुई? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बीजेपी बड़ी पार्टी थी तो सीएम को लेकर उनका ही निर्णय हो सकता है.


हिजाब विवाद पर अनुप्रिया पटेल ने दिया जवाब


हिजाब विवाद को लेकर अनुप्रिया पटेल ने कहा कि स्कूल में हर बच्चा स्कूल ड्रेस पहनता है. अलग-अलग विचार, अलग-अलग समुदाय या अलग कम्यूनिटी से आने वाले बच्चों को एक समानता का भाव मिले, इसलिए स्कूल ड्रेस का कॉन्सेप्ट आया. इस पर स्कूल प्रशासन को ही फैसला करना चाहिए. अनुप्रिया पटेल ने कहा कि बीजेपी सरकार में गरीबों को घर मिले. एनडीए सरकार में हर गरीब को फायदा हुआ. यूपी में इन्फ्रास्ट्रक्चर का खूब विकास हुआ. इससे भी लोगों के जीवन में बहुत बदलाव देखने को मिलेगा. 


क्या क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद है?


ये एन नजरिया बनाया जाता है छोटे दलों को लेकर. हमारा देश अलग-अलग वर्गों में बंटा हुआ है. ऐसे में बहुत सारे विषय राष्ट्रीय राजनीति में नहीं आ पाते हैं. क्षेत्रीय दल ही जमीनी के मुद्दों को उठाते हैं. इसलिए इसका अलग नजरिया बनाने की कोशिश की जाती है छोटी पार्टियों में पूरी व्यवस्था होती है. परिवारवाद है ही नहीं. बड़ी पार्टियों में भी कई पीढ़ियों के नेता चुनाव लड़ते हैं. 


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