UP Election: ये हैं उत्तर प्रदेश के पहले चरण के 5 चक्रव्यूह, जिसने किए पार, वही बना सकेगा राज्य में सरकार!
UP Assembly Election 2022: 10 फरवरी को उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण का मतदान होना है. दांव पर पश्चिमी यूपी है, जिसे हासिल करने के लिए राजनीतिक पार्टियां हर समीकरण को दुरुस्त करने में जुटी हैं.
Uttar Pradesh Assembly Election 2022: पश्चिमी यूपी की गलियां आज वादों के बाजार से गुलजार रहीं, होती भी क्यों न दो दिन बाद यूपी में पहले चरण का मतदान जो है. 10 फरवरी को उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण का मतदान होना है. दांव पर पश्चिमी यूपी है, जिसे हासिल करने के लिए राजनीतिक पार्टियां विवादित बयानों से लेकर जातियों को साधने तक, हर समीकरण को दुरुस्त करने में जुटी हैं. पश्चिमी यूपी जरूरी है, क्योंकि 136 विधानसभा सीटों वाला यूपी का ये हिस्सा राज्य की सत्ता तक पहुंचाने के लिए जाना जाता है. आज भारत की बात में हम आपको पश्चिमी यूपी के पहले चरण में वो पांच चक्रव्यूह दिखाने जा रहे हैं, जिन्हे पार करने की कोशिश में हर दल जुटा है. जो इस चक्रव्यूह को पार कर लेगा वो पश्चिमी यूपी का मैदान भी मार लेगा
ये चुनावी चक्रव्यूह की वो बिसात है, जिसे भेदकर हर कोई मैदान मारना चाहता है. ताकत से तकनीक तक, जाति से लेकर वादे तक हर मोहरा बड़ी सावधानी से बिठाया जा रहा है. शह और मात का खेल खेला जा रहा है, लेकिन किसके हिस्से जीत होगी और किसके हिस्से हार... इस फैसले का पहला राउंड 10 फरवरी को शुरू होने जा रहा है.
सियासी संग्राम में सजे पांच चक्रव्यूह
10 फरवरी को पश्चिमी यूपी के 11 जिलों की 58 सीटों के लिए मतदान होना है. माना जाता है कि पहले राउंड से ये पता चलने लगता है कि चुनावी हवा किस पार्टी की तरफ बह रही है, शायद इसीलिए पहले चरण में बाजी मारने के लिए राजनीतिक पार्टियों ने पांच चक्रव्यूह तैयार किए हैं. पहला चक्रव्यूह विवादित बयानों का बाउंसर है. सीएम योगी ने कहा था कि ये जो गर्मी है न, मैं मई जून में भी शिमला बना देता हूं. योगी के इस बयान पर जयंत ने गुगली डालते हुए कहा कि हम तो पहले से ही गर्म मिजाज थे. बाबा आप कंबल ओढ़कर सो जाओ.
पहला चक्रव्यूह
ये पहले चरण के चुनाव का पहला चक्रव्यूह विवादित बयानों के ऊपर बुना गया. बयानों के ऐसे बाउंसर फेंके गए कि चुनावी प्रचार पर विवादित बयानों का शोर हावी हो गया. मुद्दे गायब हो गए और हर तरफ सिर्फ गर्मी और चर्बी वाले बयान की चर्चा होने लगी. 30 जनवरी को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी यूपी के हापुड़ में गर्मी मिटाने वाला बयान दिया तो फौरन आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी ने चर्बी से उसका जवाब दे दिया. योगी के गर्मी वाले बयान पर सिर्फ जयंत चौधरी ने ही पलटवार नहीं किया, जवाब देने असदुद्दीन ओवैसी भी आए. उन्होंने कहा कि इनकी गर्मी तब निकली थी, जब किसान आंदोलन हुआ था.
दूसरा चक्रव्यूह
दरअसल हर विवादित बयान के पीछे वोटबैंक की जमीन है. वोट बैंक साधने के मकसद से ही ये बयान दिए जाते हैं. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने गर्मी वाला बयान कैराना को लेकर दिया था. वो कैराना, जो पहले चरण के चुनाव में दूसरे चक्रव्यूह की जमीन बन चुका है. बीजेपी ब्रिगेड पूरी ताकत से पश्चिमी यूपी को पलायन वाले मुद्दे की याद दिलाना नहीं भूल रही है. गृह मंत्री अमित शाह ने तो अपने प्रचार की शुरूआत ही कैराना से की थी. दरअसल पिछले चुनाव में कैराना से हिंदुओं का पलायन बहुत बड़ा मुद्दा बना था. इतना बड़ा मुद्दा की ध्रुवीकरण ने पूरी तस्वीर बदलकर रख दी थी और चुनाव हिंदू बनाम मुसलमान हो गया था.
ध्रुवीकरण की लहर पर सवार बीजेपी सीधे यूपी की सत्ता तक पहुंच गई थी और इस बार जब कैराना से समाजवादी पार्टी ने नाहिद हसन को टिकट दिया तो बीजेपी को कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा जिंदा करने का मौका मिल गया. बीजेपी नाहिद हसन को पलायन का मुख्य साजिशकर्ता मानती है. समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के उम्मीदवार नाहिद हसन की गिरफ्तारी के बाद पलायन का मुद्दा गर्म हो चुका है. पिछले विधानसभा चुनाव में पहले चरण की 58 सीटों में से 53 बीजेपी के खाते में आई थीं. एसपी को सिर्फ 2 सीट मिली थी. बीएसपी 2 सीटें जीत पाई थी. आरएलडी के हिस्से एक सीट आई थी, जबकि कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुला था.
बीजेपी पलायन का मुद्दा उठा रही है, लेकिन अखिलेश यादव बीजेपी से उत्तराखंड में हुए पलायन पर सवाल पूछ रहे हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड से इतने लोग पलायन कर गए उस पर क्यों नहीं बोलते. किस पार्टी का पलायन वाला पैंतरा काम करेगा ये कहना मुश्किल है, लेकिन ये जरूर लग रहा है कि एक बार फिर ध्रुवीकरण का माहौल बन चुका है. हालांकि इस बार तस्वीर पिछले विधानसभा चुनाव से बहुत अलग है और इसीलिए ध्रुवीकरण के बनते माहौल में बीजेपी कैराना के साथ -साथ किसानों को भी साधने में जुटी है.
तीसरा चक्रव्यूह
कैराना का किसान तीसरा चक्रव्यूह बन चुका है. पश्चिमी यूपी के चुनाव में मुख्य रूप से दो मुद्दे सुर्खियों में रहे- पहला कैराना और दूसरा किसान. बीजेपी ने जहां एक तरफ कैराना का मुद्दा उछालकर ध्रुवीकरण की कोशिश की वहीं समाजवादी पार्टी ने किसानों के मुद्दे उठाकर पश्चिमी यूपी का किला फतेह करने की कोशिश की. किसानों को साधने के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी की आरएलडी से गठबंधन किया. आरएलडी पश्चिमी यूपी में जाटों को सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है. पश्चिमी यूपी में 17 फीसदी जाटों की आबादी है. एक साल तक किसान आंदोलन के बाद से जाट वोटर बीजेपी से नाराज बताए जाते रहे हैं. ऐसा नहीं है कि बीजेपी किसानों को अपने पक्ष में करने के लिए कोशिश नहीं कर रही है. बैठकें हो रही हैं. ऑफर दिए जा रहे हैं, लेकिन इसके साथ-साथ जातिगत समीकरण को साधने वाले चौथे चक्रव्यूह पर भी काम किया जा रहा है.
चौथा चक्रव्यूह
पहले चरण का चौथा चक्रव्यूह जातीय गणित है. 2017 के विधानसभा चुनाव में 91 फीसदी सीटें, जीतने वाली बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर है, क्योंकि बीजेपी ने उस वक्त पश्चिमी यूपी को जीता था. पिछले चुनाव में जाटों ने बीजेपी की झोली वोटों से भर दी थी. इस बार जाटों के साथ-साथ बीजेपी पश्चिमी यूपी में मौजूद उन तमाम जातियों को साधने में जुटी है, जिससे उसके वोट बैंक में इजाफा हो. बीजेपी ने दूसरी पार्टियों को मुकाबले सबसे ज्यादा 25 सवर्णों को टिकट दिया है. सबसे ज्यादा 12 जाट उम्मीदवारों को भी बीजेपी ने मैदान में उतारा है. बीजेपी ने सबसे ज्यादा 24 ओबीसी उम्मीदवारों पर दांव लगाया है. हालांकि एक भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया गया है.
दोनों ने कैसे साधा जातीय समीकरण
पश्चिमी यूपी में करीब 27 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 17 फीसदी जाट हैं, करीब 25 फीसदी आबादी दलितों की है. राजपूत 8 फीसदी हैं. गुर्जर 4 फीसदी हैं, जबकि यादव 7 फीसदी. अब देखिए एसपी और आरएलडी गठबंधन ने पश्चिमी यूपी में जो टिकट बांटे हैं उनका जातीय समीकरण क्या कहता है. एसपी आरएलडी ने 14 सवर्णों को टिकट दिया है, जिसमें सबसे ज्यादा 8 ब्राह्मण हैं. 22 ओबीसी समाज के उम्मीदवार हैं, जिसमें करीब 10 जाट समाज के हैं. दूसरी पार्टियों के मुकाबले गठबंधन ने 10 एससी उम्मीदवार उतारे हैं और 12 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है. पश्चिमी यूपी की 27 फीसदी मुस्लिम आबादी को साधने के लिहाज से गठबंधन का 12 उम्मीदवारों को टिकट देना कम लगता है, लेकिन इसके पीछे वजह ये है कि अखिलेश मुस्लिमों की पार्टी वाली छवि से बचना चाहते हैं, क्योंकि चुनावी नैया पार कराने के लिए उन्हें हिंदू वोटों की भी उतनी ही जरूरत है और टिकट बंटवारे में इस बात का खास ख्याल रखा गया है.
पांचवां चक्रव्यूह
अब बात आती है पहले चरण के पांचवें और आखिरी चक्रव्यूह वादों की. पश्चिमी यूपी को साधने के लिए पांचवें चक्रव्यूह के तौर पर वादों की बिसात तैयार की गई है. आज बीजेपी ने संकल्प पत्र के नाम से अपना घोषणापत्र जारी किया तो समाजवादी पार्टी ने वचन पत्र के नाम से. दोनों ही पार्टियों के वादों की लिस्ट में किसानों को लुभाने की कोशिश साफ दिखाई दे रही है. बीजेपी के संकल्प पत्र में किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली. 25,000 करोड़ की लागत के साथ मुख्यमंत्री कृषि सिंचाई योजना. गन्ना किसानों को 14 दिनों के अंदर भुगतान. हर परिवार को एक रोजगार का वादा. लव जिहाद रोकने के लिए 10 साल की सजा. यूपी में 6 मेगा फूड पार्क विकसित करने का भी वादा है.
वही अखिलेश यादव ने भी आज वचन पत्र में एलान किया है कि एसपी की सरकार बनने पर 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी. हर फसल के लिए एमएसपी होगी. किसानों को सिंचाई के लिए बिजली मुफ्त दी जाएगी. 15 दिन में गन्ना किसानों का भुगतान होगा. समाजवादी पेंशन योजना फिर से शुरू की जाएगी. वादे तो खैर हर चुनाव के पहले होते हैं.. कुछ पूरे होते हैं और कुछ अधूरे रह जाते हैं, लेकिन इस बार जनता किनके वादों को वजन देगी, इसका फैसला 10 फरवरी को पहले राउंड में होने वाला है.
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