उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ी जीत मिली है. बीजेपी गठबंधन ने 403 सीटों वाले विधानसभा में 273 सीटों पर कब्ज़ा किया है. सूबे में 20 मार्च के बाद नई सरकार का शपथ ग्रहण हो सकता है. इसके साथ ही योगी अदित्यनाथ एक बार फिर यूपी के मुख्यमंत्री बन जाएंगे.
ये तो तय है कि योगी आदित्यनाथ ही यूपी के फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन उनके मंत्रिमंडल में क्या फिर से डिप्टी सीएम भी होंगे? अगर होंगे तो फिर कितने? दो तीन या फिर ये संख्या चार तक जा सकती है. योगी की पिछली सरकार में केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा दो डिप्टी सीएम थे. मौर्य पिछड़ी जाति के कोटे से तो शर्मा ब्राह्मण कोटे से डिप्टी सीएम बनाए गए थे. ये लगभग तय है कि दिनेश शर्मा इस बार योगी के मंत्रिमंडल से बाहर हो जायेंगे. कहा जा रहा है कि संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दी जा सकती है. बीजेपी ने इस बार उन्हें चुनाव भी नहीं लड़वाया था. दूसरे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार चुके हैं. लेकिन पार्टी फिर भी उन्हें ज़िम्मेदारी देने के मूड में है.
स्वतंत्र देव सिंह बन सकते हैं डिप्टी सीएम!
बीजेपी की नज़र 2024 के लोकसभा चुनाव पर है. उसी हिसाब से जातीय समीकरण बिठा कर यूपी में मंत्री बनाए जाने का फ़ार्मूला निकलेगा. पार्टी के कुछ लोग चाहते हैं कि यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को डिप्टी सीएम बना दिया जाए. स्वतंत्र देव कुर्मी बिरादरी से हैं. उनके बदले केशव प्रसाद मौर्य को संगठन की ज़िम्मेदारी देकर यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया जाए. इस पर फ़ैसला दिल्ली में होना है. कल सवेरे योगी आदित्यनाथ दिल्ली पहुंच रहे हैं. जहां उनकी मुलाक़ात बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और पीएम नरेन्द्र मोदी से होगी. पार्टी के संगठन महामंत्री बी एस संतोष के साथ भी उनकी बैठक होगी. यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और संगठन मंत्री सुनील बंसल को भी दिल्ली बुलाया गया है. कल की मैराथन बैठक में शपथ ग्रहण की तारीख़ से लेकर मंत्रिमंडल पर फ़ैसला हो जाने की उम्मीद है.
बेबी रानी मौर्य का नाम भी रेस में आगे
इस बात की भी बड़ी चर्चा है कि बेबी रानी मौर्य को भी डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है. उत्तराखंड की राज्यपाल रह चुकीं बेबी रानी बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. वे जाटव बिरादरी से हैं. वे पहली बार दलितों के गढ़ आगरा से विधायक चुनी गई हैं. उत्तराखंड के राज्यपाल से लाकर यूपी में विधायक बनाने के पीछे बीजेपी की सोची समझी रणनीति है. उन्हें सत्ता में बड़ी ज़िम्मेदारी देकर बीजेपी मायावती के जाटव वोट बैंक को अपना बनाना चाहती है. बीएसपी धीरे धीरे कमजोर हो रही है और यही मौक़ा है जब बीजेपी मायावती से ये वोट छीन लें. CSDS का सर्वे बताता है कि इस बार 21 प्रतिशत जाटव लोगों ने बीजेपी के वोट किया है. अगले लोकसभा चुनाव में ये समाज बीजेपी की जीत का रास्ता आसान कर सकती है. इसी बिरादरी से असीम अरूण भी आते हैं जो कन्नौज से पहली बार विधायक चुने गए हैं. राजनीति में आने से पहले वे कानपुर के पुलिस कमिश्नर थे. योगी मंत्रिमंडल में उन्हें भी जगह मिल सकती है. आईपीएस अफ़सर रहे असीम अरूण के पास अभी 9 साल की सर्विस बची थी.
दिनेश शर्मा के बदले पाठक को मिल सकती है जिम्मेदारी
अगर तीन या चार डिप्टी सीएम बनाए गए तो फिर एक नाम ब्रजेश पाठक का भी हो सकता है. इस बार उन्हें दिनेश शर्मा के बदले ये ज़िम्मेदारी दिए जाने की चर्चा है. ब्राह्मणों और उनकी मांगों को लेकर वे हमेशा से मुखर रहे हैं. अमित शाह, जेपी नड्डा से लेकर राजनाथ सिंह का आशीर्वाद भी उन पर रहा है. इस बार वे लखनऊ कैंट से विधायक चुने गए है. कई बार तो वे राज्य सरकार के खिलाफ भी खुल कर बोल चुके हैं.
बलिया से विधायक चुने गए दया शंकर सिंह भी मंत्री बनाए जा सकते हैं. वे पार्टी के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं. उनकी पत्नी स्वाति सिंह अभी योगी सरकार में मंत्री थीं. इस बार बलिया से दोनों मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ल और उपेन्द्र तिवारी चुनाव हार चुके हैं. ऐसे में दयाशंकर की दावेदारी और बढ़ जाती है. अमित शाह, योगी आदित्यनाथ से लेकर धर्मेन्द्र प्रधान तक के वे करीबी माने जाते हैं.
पंकज सिंह को मिल सकता है मंत्री प्रभार
ये भी खबर है कि इस बार पंकज सिंह को भी यूपी में मंत्री बनाया जा सकता है. वे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे हैं. वे नोएडा से दूसरी बार विधायक चुने गए हैं. पिछड़े और एससी समाज से कुछ चौंकाने वाले चेहरे भी मंत्री बनाए जा सकते हैं. ख़ास तौर से उन इलाक़ों से जहां पार्टी का प्रदर्शन या तो बहुत ख़राब रहा या फिर बहुत अच्छा. महेन्द्र सिंह, सिद्धार्थ नाथ सिंह और श्रीकांत शर्मा जैसे मंत्रियों को फिर से ज़िम्मेदारी दिए जाने की बात है.
ये भी संभव है कि इस बार किसी को भी डिप्टी सीएम न बनाया जाए. बड़े चेहरों को बड़े विभाग देकर भी राजनैतिक मैसेज दिया जा सकता है. पार्टी के एक बड़े नेता की ऐसी सोच है.