राजनीति में हर दांव बहुत सोच-समझकर चला जाता है. कई बार ये मास्टरस्ट्रोक साबित होते हैं तो कई बार तीर खाली चला जाता है. 5 राज्यों में 'चुनावी जंग' का एलान हो चुका है. टिकट बंट चुके हैं, उम्मीदवार उतारे जा चुके हैं. उत्तराखंड की हांड कंपा देने वाली सर्दी के बावजूद सूबे की गलियों में चुनावी अलाव जला हुआ है. 70 सीटों वाली उत्तराखंड विधानसभा के लिए चुनाव 14 फरवरी को होना है. हर पार्टी अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही है. लेकिन राज्य की कुछ सीट ऐसी हैं, जिन्हें यहां की राजनीति का बड़ा मिथक माना जाता है. ये मिथक दशकों से चले आ रहे हैं और हर पार्टी इन्हें बहुत ज्यादा गंभीरता से लेती है. आइए आपको रूबरू कराते हैं उत्तराखंड की राजनीति के उन चार बड़े मिथकों से, जिन्होंने बरसों से यहां की सियासत में खूंटा गाड़ा हुआ है.
- 1952 से बरकरार है गंगोत्री का मिथक
ये मिथक साल 1952 से राज्य की राजनीति में बना हुआ है. तब निर्दलीय प्रत्याशी जयेंद्र जीते. जब वे कांग्रेस में शामिल हुए तो सरकार कांग्रेस की बनी. इमरजेंसी के दौर में जनता पार्टी जीती और सरकार बना ली. 9 नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड बना, तब भी यह मिथक नहीं टूटा. इस बार आम आदमी पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है.
- जो शिक्षा मंत्री बना, उसे अगले चुनाव में मिली मात
सूबे की राजनीति में यह मिथक भी खासा मशहूर है कि शिक्षा मंत्री चुनाव हार जाता है. 2000 में अंतरिम सरकार में पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत शिक्षा मंत्री बने और 2002 में चुनाव हार गए. 2002 में नरेंद्र भंडारी शिक्षा मंत्री बने और 2007 के चुनाव में मात मिली. 2007 में एक के बाद दो शिक्षा मंत्री बने. लेकिन 2012 में ये दोनों हार गए. 2017 में अरविंद पांडे शिक्षा मंत्री बने. सवाल है कि क्या इस बार मिथक टूटेगा या बरकरार रहेगा.
- जो हारता है अल्मोड़ा सीट, उसी की बनती है सरकार
अल्मोड़ा ऐसी सीट है, जिसका तिलिस्म भी अजीब है. जो प्रत्याशी अल्मोड़ा सीट हार जाता है, सूबे में उसी की सरकार बन जाती है. साल 2002 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी ने जीत हासिल की. 2007 में बीजेपी ने सरकार बनाई लेकिन अल्मोड़ा से कांग्रेस के करण माहरा जीते. 2012 में बीजेपी उम्मीदवार अजय भट्ट के सिर जीत का सेहरा बंधा लेकिन सूबे में कांग्रेस की सरकार बनी. 2017 में अजय भट्ट चुनाव हार गए और बीजेपी ने सरकार बना ली.
- जो सीएम बना, वो अगला चुनाव हार गया
पहले मनोनीत मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी ने चुनाव नहीं लड़ा. इसके बाद एनडी तिवारी भी चुनावी मैदान में नहीं उतरे. 2007 में बीसी खंडूरी सीएम बने. लेकिन अगला चुनाव हार गए. 2012 में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने. 2017 में दो सीटों से लड़े और दोनों जगह से हार गए. सिर्फ भगत सिंह कोश्यारी एकमात्र अपवाद रहे. इस बार सीएम पुष्कर धामी की खटीमा सीट पर सबकी नजर बनी हुई है.