Uttarakhand Election 2022: 'यमराज कहे कि BJP से बात कर लो..तो कहूंगा मौत दे दो', कहते हुए रो पड़े हरक सिंह रावत
Uttarakhand Assembly Election Latest News: हरक के इन आंसूओं से फिलहाल तो कांग्रेस, बीजेपी या किसी और का दल का दिल तो अभी नहीं पिघला है, लेकिन वो आंसू क्यों बहा रहे हैं, ये समझना भी जरूरी है.
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Uttarakhand Assembly Election 2022: कोरोना का यमराज अगर कहे कि बीजेपी से बात कर लो..तो कहूंगा मौत दे दो. बस यही है हरक सिंह रावत की सियासत की एक छोटी सी लव स्टोरी. पांच साल पहले कांग्रेस की सरकार गिराकर कमल का दामन थामने वाले हरक सिंह रावत आज चुनाव से पहले आंसू बहा रहे हैं. हरक के इन आंसुओं से कांग्रेस, बीजेपी या किसी और का दल का दिल तो अभी नहीं पिघला है, लेकिन वो आंसू क्यों बहा रहे हैं, ये समझना भी जरूरी है.
उत्तराखंड मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए जाने के बाद हरक सिंह रावत कैमरे पर फफक-फफक कर रो पड़े. हरक को बीजेपी ने पार्टी से निकाल कर 6 साल के लिए बर्खास्त कर दिया है. दरअसल हरक सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. साथ ही बीजेपी ने भी उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है, पार्टी ने उन्हें 6 साल के निष्कासित किया है. वो अपने परिवार और अन्य लोगों के लिए पार्टी पर दवाब बना रहे थे.
आरोपों से हरक का इनकार
हरक सिंह रावत हालांकि बीजेपी के इन आरोपों से इनकार कर रहे हैं, शायद उन्हें पता भी है कि अब रास्ते बंद हो चुके हैं, इसलिए उन्होंने नई मंजिल की तलाश शुरू कर दी है. उसी के मुताबिक अपने मोहरे भी चलने लगे हैं. अब वो कांग्रेस में अपनी जगह तलाश रहे हैं. उन्होंने कहा है कि "कांग्रेस जीत रही है"..."बीजेपी काम नहीं करने देती". बीजेपी की बुराई कर कांग्रेस के पक्ष में उन्हें कुछ हिस्सा घर वापसी की आस का नजर आ रहा है.
हाथ की कर रहे तलाश
कमल से बेदखल किए जाने के बाद हरक सिंह अब हाथ के साथ की तलाश कर रहे हैं, लेकिन हरक के लिए दरवाजे खोलना कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं है. हरक ने मार्च 2016 को 9 कांग्रेस विधायकों के साथ हरीश रावत की सरकार से बगावत की थी. जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा, हरीश रावत ने सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई से फिर कुर्सी तो पाई, लेकिन सरकार ज्यादा दिन नही चली, और हरीश रावत शायद वो सबकुछ अभी भूले नहीं है.
माफी से कम कुछ भी नहीं
हरीश रावत ने कहा कि हरक सिंह रावत ने लोकतंत्र के खिलाफ काम किया है, उसके लिए प्रायश्चित करें. हरीश रावत सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी है, इसलिए वो हरक के नाम पर हामी भी नहीं भर रहे हैं और इनकार भी नहीं कर रहे हैं. एंट्री के फैसले की जिम्मेदारी वो पार्टी पर डालते हैं, लेकिन माफी से कम में वो भी राजी नहीं हैं. हरक सिंह रावत आज दो राहे पर खड़े जरूर हैं, लेकिन पार्टियों से रिश्ते बनाने बिगाड़ने का उनका इतिहास पुराना रहा है. बीजेपी से ही अपने करियर की शुरूआत करने वाले हरक सिंह रावत ने न सिर्फ कई पार्टियां बदली हैं, बल्कि अपनी पार्टी बनाने का भी एक्सपेरिमेंट कर चुके हैं. चुनाव सिर पर होने से उनके पास विकल्पों की कमी है.
हरक सिंह रावत का सियासी सफर
हरक सिंह रावत का दल बदल का इतिहास पुराना रहा है और वो कई पार्टियां बदलने के साथ ही अपनी पार्टी बनाने की भी कोशिश कर चुके हैं. हरक सिंह के सियासी सफर पर नजर डालें तो उन्होंने पहला चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ा. 1996 में हरक सिंह रावत ने बीएसपी का दामन थामा. मायावती के बेहद करीबी रहे हरक सिंह ने 1998 में कांग्रेस का दामन थाम लिया और उत्तराखंड राज्य बनने पर कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे. साल 2007 में कांग्रेस की ओर से नेता विपक्ष रहे. 2016 में कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में गए. 1991 से अब तक पहले यूपी फिर उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य रहे हैं. तीन कांग्रेस और तीन बीजेपी सीएम के मंत्रिमंडल में वो शामिल हो चुके हैं.
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