Western UP Politics: राजनीतिक पार्टियों के बीच लड़ाई तो उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के लिए लड़ी जा रही है लेकिन हर युद्ध में कुछ हिस्से ऐसे होते हैं जिन्हें हासिल कर लिया तो समझो बेड़ा पार हो गया. कुछ वैसी ही कहानी उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से की है. पश्चिमी यूपी में धाक रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया जयंत चौधरी का कहना है कि पश्चिमी यूपी की जीत से बीजेपी को सत्ता मिली, अब यहीं से बीजेपी सत्ता से बाहर होगी.


विरोधी पार्टियों का एक दूसरे के खिलाफ बयान देना तो बहुत स्वाभाविक है लेकिन असल मुद्दा ये है कि पश्चिमी यूपी में इस बार हवा का रुख किस तरफ है? इस सवाल का जवाब ढूंढा ही जा रहा था कि अचानक 16 जनवरी को भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने एसपी और आरएलडी गठबंधन को समर्थन देने का एलान कर दिया और बयान के 24 घंटे के भीतर यूटर्न भी ले लिया. 


दरअसल राकेश टिकैत की भारतीय किसान यूनियन खुलकर किसी पार्टी के पक्ष में खड़े होने से भले ही इंकार कर रही हो लेकिन इशारों इशारों में राकेश टिकैत कई बार ये साफ कर चुके हैं कि वो किसके साथ हैं और किसके खिलाफ . राकेश टिकैत का समर्थन को लेकर कहना है कि हमने इशारे में किसानों को अपनी बात कह दी है किसान समझदार है और वह इशारों को समझते हैं.




ये कोई पहली बार नहीं है राकेश टिकैत यूपी चुनाव में जिताने और हराने की बातें पहले भी करते रहे हैं. दरअसल, पिछले साल 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 119वीं जयंती पर राकेश टिकैत और जयंत चौधरी एक साथ दिखाई दिए. इसके साथ ही चर्चा शुरू हो गई कि जो जाट वोट जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल से बीजेपी के पास चला गया था क्या राकेश टिकैत के जरिए वो वापस आरएलडी के पास आ जाएगा?




दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोट बड़ा फैक्टर माना जाता है. जयंत चौधरी मंझे हुए नेता की तरह बयान दे रहे हैं लेकिन उनकी रणनीति जाट वोट को अपने कब्जे में करने की है. हालांकि केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता संजीव बालियान 2017 वाली जीत दोहराने का दावा कर रहे हैं और उन्हें भरोसा है कि इस बार भी जाट बीजेपी का साथ देंगे.


बीजेपी का दावा


संजीव बालियान ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि पश्चिमी यूपी में हम 2017 दोहराएंगे. जाट हमेशा से बीजेपी के साथ रहा है. अखिलेश यादव की घोषणाएं अब कोई असर नहीं करेंगी क्योंकि जब वो मुख्यमंत्री थे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए कुछ नहीं किया.


संजीव बालियान भी जानते हैं कि बिना जाट वोटों के पश्चिमी यूपी में कमल खिलाना चुनौती है. 2017 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव, पश्चिमी यूपी के वोटर ने बीजेपी को जीत के रथ पर चढ़ाने का काम किया.


2017 में क्या हुआ था?


साल 2017 में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 80 फीसदी यानि 109 सीटें जीती थीं. समाजवादी पार्टी के हिस्से 21 सीटें आई थीं.  कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली थीं. बीएसपी को 3 सीटें मिली थीं. जबकि आरएलडी को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा था. दो साल बाद 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो इस बार भी पश्चिमी यूपी ने बीजेपी को निराश नहीं किया. 27 लोकसभा सीटों में से 19 सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी थीं.


दरअसल बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी का समीकरण काम कर रहा था. लेकिन किसान आंदोलन से शुरू हुई नाराजगी से ये समीकरण बिगड़ता दिख रहा है और बदले हुए हालात का फायदा उठाने के लिए अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने हाथ मिला लिया है.


किसकी कितनी आबादी


पश्चिमी यूपी में करीब 27 फीसदी मुस्लिम हैं. 17 फीसदी जाट हैं. दलितों की संख्या 25 फीसदी है. गुर्जर करीब 4 फीसदी हैं और राजपूत 8 फीसदी हैं.


पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं जहां विधानसभा की 136 सीटें हैं. पहले चरण में 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 और दूसरे चरण में 14 फरवरी को 9 जिलों में 55 सीटों पर वोटिंग होनी है. बाकी के जो 6 जिले हैं उनमें तीसरे चरण में चुनाव है.




समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल की नजर मुस्लिम और जाट वोटों पर है जो कुल वोटों का करीब 44 फीसदी है. पश्चिमी यूपी में 25 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटर हैं जिन पर मायावती की पार्टी बीएसपी की नजर है. 


कैंडिडेट लिस्ट पर विवाद


बीजेपी को घेरने के लिए इन्हीं जातियों के गणित के हिसाब से समाजवादी पार्टी गठबंधन और मायावती की पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं. समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवारों की जो पहली लिस्ट जारी की उसमें से कुछ नामों को लेकर माहौल गर्म है और बीजेपी उन्हीं नामों के सहारे समाजवादी पार्टी को हिंदू विरोधी बताने की कोशिश कर रही है. 







एबीपी न्यूज के लिए सी वोटर ने भी  सवाल पूछा कि क्या विवादित नेताओं को टिकट देकर अखिलेश ने बीजेपी को हमले का मौका दिया है? तो जवाब में हां कहने वाले 54 फीसदी लोग थे. जबकि 26 फीसदी लोगों ने ना कहा. पता नहीं कहने वाले 20 फीसदी लोग थे.


अखिलेश यादव को शायद पहले से मालूम था कि उनके टिकट बंटवारे पर सवाल उठेंगे और हो सकता है इसीलिए इस विवाद से अलग समाजवादी पार्टी और आरएलडी के गठबंधन ने एक अलग समीकरण बनाने की कोशिश भी की है.  मुजफ्फरनगर जिले में आने वाली 6 सीटों में से 5 पर किसी भी मुस्लिम को गठबंधन से उम्मीदवार नहीं बनाया गया है.


मुजफ्फरनगर जिले में करीब 40 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ध्रुवीकरण हुआ और माना जाता है कि जो जाट कभी एसपी और राष्ट्रीय लोक दल को वोट करते थे उन्होंने दंगे के बाद बीजेपी को वोट दिया.




2012 के नतीजे


2012 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था. लेकिन दंगों के बाद तस्वीर ऐसी बदली कि 2017 में बीजेपी ने सारी पार्टियों का पत्ता साफ कर दिया था. बीजेपी ने भी 2017 का प्रदर्शन दोहराने के लिये प्रयोग किये हैं. पहले और दूसरे फेज के अब तक घोषित 107 उम्मीदवारों में से 18 के टिकट काटे गये हैं.


कुछ जगहों पर टिकट काटे जाने को लेकर विरोध की आवाजें भी आ रही हैं लेकिन बीजेपी को शायद लगता है कि इस रणनीति के तहत वो पुराना प्रदर्शन दोहरा लेगी. बागियों को मनाने के साथ ही बीजेपी स्थानीय प्रभावशाली नेताओं को भी शामिल कराकर जमीन मजबूत करने में जुटी है. पिछले दिनों बीएसपी के बड़े नेता रहे रामवीर उपाध्याय का बीजेपी में आना उसी रणनीति का हिस्सा रहा . 




बीजेपी को पश्चिमी यूपी में मायावती की रणनीति का भी फायदा हो सकता है. मायावती जिस तरीके से उम्मीदवारों को उतार रही है अगर वो उम्मीदवार मजबूती से टिके रहे तो समाजवादी पार्टी- आरएलडी के पक्ष में मजबूती से खड़े वोट बैंक में सेंध लगेगी और इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है.


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