UP Assembly Elections 2022: तारीख थी 11 मार्च 2017. दिन था शनिवार. उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में गजब की हलचल थी. आखिर 7 चरणों में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे जो आने वाले थे. चुनाव दफ्तरों के बाहर गाड़ियों की कतारें थीं और अलग-अलग पार्टियों के हजारों कार्यकर्ता भी टकटकी लगाए खड़े थे.


लोगों के घरों में टीवी सेट ऑन थे. उस समय यूपी की गद्दी पर काबिज समाजवादी पार्टी साल 2012 में मायावती की बसपा सरकार को मात देकर सत्ता पर बैठी थी और फिर से सरकार बनाने के दावे कर रही थी. वो पल भी आया, जब ईवीएम खुलने लगीं और दिलों की धड़कनें भी तेज होने लगीं. 


घड़ी की सुई जब 11 बजे पर पहुंची तो हर किसी को चौंकाते हुए वो पार्टी रुझानों में आगे थी, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी. दोपहर होते-होते बीजेपी मुख्यालय में मिठाइयां बांटे जाने लगीं, कार्यकर्ता जश्न मनाने लगे. 15 साल बाद यूपी की सत्ता जनता ने बीजेपी को सौंप दी थी. 403 विधानसभा सीट में से 325 बीजेपी ने जीत ली थीं. जबकि सपा को 54 और बसपा को 19 सीटें मिली थीं.




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लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये थी कि बीजेपी ने उन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों या सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी. बीजेपी ने 82 में से 62 ऐसी सीटों पर जीत हासिल की थी, जहां मुस्लिम वोटरों की आबादी एक तिहाई है.


बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़े गए 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे नोटबंदी के 4 महीने बाद आए थे. ये मोदी सरकार का वो फैसला था, जिस पर विपक्ष आजतक हमला बोलता है. बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर यूपी की मुस्लिम बहुल सीटों पर भी बीजेपी का डंका कैसे बज गया, जबकि पार्टी ने चुनाव में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया था. आइए आपको बताते हैं उन सीटों के बारे में जहां मुस्लिम वोटरों का प्रभाव है और बीजेपी ने साल 2017 में वहां से जीत हासिल की थी. 


वोटों के विभाजन का मिला फायदा


आंकड़े बताते हैं कि करीब 2 दर्जन ऐसी सीटें थीं, जहां मुस्लिम वोटों के विभाजन से बीजेपी को फायदा पहुंचा. इन सीटों में मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बरेली, बिजनौर, मेरठ की सरधना, गोरखपुर की खलीलाबाद, अंबेडकर नगर की टांडा, श्रावस्ती जिले की श्रावस्ती और गैन्सारी और मुराबादाबाद शामिल हैं. 


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2013 दंगों का केंद्र रही मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर भी वोटों का तीन तरफ विभाजन साफ नजर आया था. समाजवादी पार्टी यह सीट बीजेपी से महज 193 वोटों से हार गई थी. बीजेपी प्रत्याशी अवतार सिंह भडाना  को 69,035 वोट मिले थे. जबकि सपा के लियाकत अली को 68,842. वहीं बीएसपी के नवाजीश आलम खान को 38,689 वोट.




कहां कौन सा बीजेपी प्रत्याशी जीता


मेरठ की सरधना सीट पर बीजेपी प्रत्याशी संगीत सोम ने सपा के अतुल प्रधान को मात दी थी. सोम को जहां 97,921 वोट मिले थे. वहीं प्रधान को 76,296 वोट. बीएसपी के इमरान कुरैशी 57,239 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे. 


यही स्क्रिप्ट 1.25 लाख मुस्लिम आबादी वाले देवबंद में भी नजर आई थी. मुस्लिम समुदाय सपा के माविया अली और बसपा के माजिद अली के बीच बंटा नजर आया था. नतीजतन बीजेपी के ब्रजेश पाठक 1,02,244 वोटों से जीत गए. माजिद अली दूसरे और माविया अली तीसरे पायदान पर रहे थे. 


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मुरादाबाद ग्रामीण इलाके की मुस्लिम बहुल सीट कांठ पर साल 2012 में अनीसुर्रहमान ने जीत हासिल की थी. लेकिन सपा, बसपा, एआईएमआईएम और पीस पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच मुस्लिम वोट बंट गया और अनीसुर्रहमान 2,348 वोटों के मामूली अंतर से हार गए. बीजेपी के राजेश सिंह को 76,307 वोट मिले थे. जबकि अनीसुर्रहमान को 73,959. बसपा के मोहम्मद नासिर 43,820 वोट के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे.  


टांडा में सपा के अज़ीमुल हक पहलवान बीजेपी की संजू देवी से हार गए थे. मुरादाबाद नगर में बीजेपी के आरके गुप्ता ने सपा के मोहम्मद यूसुफ अंसारी को 3,193 वोटों से मात दी थी. 




फैजाबाद की रुदौली सीट से बीजेपी के रामचंद्र यादव ने सपा के अब्बास अली जैदी को तीस हजार वोटों से मात दी थी. शामली की थाना भवन सीट से बीजेपी के सुरेश कुमार ने 90,995 वोट हासिल कर बसपा के अब्दुल वारिस खान को शिकस्त दी थी. उतरौली सीट से बीजेपी के राम प्रताप ने 85,240 वोट हासिल कर सपा के आरिफ अनवर हाशमी को मात दी थी. 


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इनके अलावा जिन सीटों पर बीजेपी को मुस्लिम वोटों के विभाजन से फायदा हुआ था, उनमें लखनऊ (पूर्व), लखनऊ (सेंट्रल), अलीगढ़, सिवलखास, नानपुरा, शाहाबाद, बहेरी, फिरोजाबाद, चांदपुर और कुंडिरकी शामिल हैं.