Lok Sabha Election 2019: महाराष्ट्र की राजनीति को ठाकरे परिवार बिना चुनाव लड़े ही करीब 4 दशक से प्रभावित करता आ रहा है. दक्षिण भारतीय के खिलाफ लड़ाई छेड़कर अपनी पहचान बनाने वाले बाल ठाकरे ना कभी विधायक बने ना कभी सांसद, लेकिन एक लंबे समय तक वो राज्य का सबसे बड़ा चेहरा रहे. बाल ठाकरे के निधन के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे और पोते आदित्य ठाकरे पार्टी की कमान संभाल रहे हैं. लोकसभा चुनाव के लिए एबीपी न्यूज की खास सियासी घराना सीरीज में आज हम आपको ठाकरे परिवार की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं.
शादी के बाद शुरू हुआ नेता बनने का सफर
बाल ठाकरे का जन्म 26 जनवरी 1926 को केशव सीता राम ठाकरे के घर में हुआ था. बाल ठाकरे के पिता केशव ठाकरे सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक और रंगमंच के कलाकार थे. लेकिन पारिवारिक दिक्कतों की वजह के चलते बाला साहब ठाकरे छठी क्लास के आगे पढ़ाई नहीं कर पाये. पिता बेटे को संगीतकार बनाना चाहते थे. लेकिन बाल ठाकरे ने पिता की तरह पेंटिंग करने का इरादा बना लिया.
इसके बाद बाल ठाकरे कार्टूनिस्ट बने. 22 साल की उम्र में ही बाल ठाकरे की शादी मीना ठाकरे से हो गई. सही मायने में बाल ठाकरे की कार्टूनिस्ट से नेता बनने के सफर की शुरुआत शादी के बाद ही हुई. 1950 में बाल ठाकरे ने बतौर कार्टूनिस्ट फ्री प्रेस में नौकरी की. महज 25-26 साल की उम्र में ही बाल ठाकरे मराठी और गैर मराठी के फर्क को समझने लगे. मुंबई मराठी लोगों की है और इस पर मराठियों का ही राज होना चाहिए. इस विचारधारा के साथ बाल ठाकरे ने कार्टून बनाने शुरू कर दिए. अब तक उन्हें व्यंग चित्र की ताकत का अहसास हो चुका था.
50 के इस दशक में महाराष्ट्र नाम का कोई राज्य नहीं था. उस समय बॉम्बे प्रेजीडेंसी हुआ करती थी. आंदोलन के बाद, 1 मई 1960 को बॉम्बे प्रेजीडेंसी से टूटकर दो राज्य बनें. महाराष्ट्र और गुजरात इसी समय बाल ठाकरे ने अखबार की नौकरी छोड़ कार्टून की एक पत्रिका शुरू कर दी, जिसका नाम मार्मिक था.
गैर मराठियों को बनाया निशाना
महाराष्ट्र में गैर मराठियों का वर्चस्व था. ज्यादातर सरकारी नौकरियों में ऊंचे ओहदे दक्षिण भारतीयों के पास थे. उनके इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए बाल ठाकरे ने नारा दिया ‘लुंगी हटाओ पूंगी बजाओ’. मराठी मानुष हमलावर हो गया. सरकारी दफतरों, गैर मराठी लोगों पर हमले शुरू कर दिए. बाल ठाकरे ने 19 जून 1966 को अपनी पार्टी बना ली. नाम रखा शिवसेना. पार्टी की पहली रैली के लिए दादर के शिवाजी पार्क में दशहरे का दिन चुना गया.
शिवसेना की पहली सियासी परीक्षा थाने म्युनिसिपल चुनाव में हुई. शिवसेना ने 40 में से 15 सीटों पर कब्जा कर लिया. गिरगांव और दादर की जनता ने बाल ठाकरे में भरोसा जताया. बाल ठाकरे मराठियों के घोषित नेता बन चुके थे. इसी दौरान बाल ठाकरे समझ गये कि मराठी राजनीति करने से वे राष्ट्रीय नेता नहीं हो सकते. साल 1970 में बाल ठाकरे खुद को एक हिंदू नेता के तौर पर जमाने में लग गए.
साल 1975 ये वो साल था जब देश में इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगा दी. विपक्षी नेताओं को जेल भेजा जाने लगा. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने ठाकरे के सामने दो विकल्प रखे या तो दूसरे विपक्षी नेताओं की तरह गिरफ्तार हो जाएं या फिर मुंबई स्टूडियों मे जाकर इमरजेंसी के समर्थन का ऐलान कर दें. बाला साहेब ने जेल जाना मुनासिब नहीं समझा. वो राजनीति और अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जीना चाहते थे.
इसके बाद बाल ठाकरे के परिवार ने भी राजनीति में एंट्री लेनी शुरू कर दी. बाल ठाकरे के सबसे बड़े बेटे का नाम बिंदू माधव ठाकरे, दूसरे बेटे का नाम जयदेव ठाकरे और सबसे छोटे बेटे का नाम उद्धव ठाकरे. वहीं बाल ठाकरे के छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे का एक बेटा राज ठाकरे भी था. इन्हीं राज ठाकरे को सालों तक बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता रहा.
राज ठाकरे की राजनीति में एंट्री
बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जे जे स्कूल ऑफ आर्टस से फाइन आर्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजनीति में रूचि लेना शुरू कर दिया. राज ठाकरे भी बाला साहेब की तरह शुरू में कार्टून बनाने लगे. साल 1990 में पहली बार राज की सियासत में एंट्री हुई. राज ठाकरे को शुरू में विद्धार्थी सेना का अध्यक्ष बनाया गया. राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे के हर अंदाज को बारीकी से देखकर उसकी कॉपी करने लगे थे जिसकी वजह से शिवसेना में जूनियर बाल ठाकरे के रूप में उनका कद तेजी से बढ़ने लगा.
1989 में पहली बार शिवसेना का एक उम्मीदवार सांसद पहुंचा. 1995 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना बीजेपी गठबंधन की जीत हुई. महाराष्ट्र में बाला साहब इतना बड़ा चेहरा होने के बाद मुख्यमंत्री नहीं बने लेकिन सत्ता की चाबी उन्हीं के पास रही.
इस दौरान राज ठाकरे, बाला साहेब की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए खुद को तैयार कर रहे थे. सभी ये मानकर बैठे थे कि राज ठाकरे ही उनके राजनीतिक वारिस होंगे. पर 1996 में बाल ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे की एंट्री हुई. ये एंट्री ऐसे वक्त पर हुई जब बाल ठाकरे खुद में बहुत टूट गए थे. उनकी पत्नी मीना ठाकरे का भी इसी साल निधन हो गया वहीं सबसे बड़े बेटे बिंदुमाधव सड़क दुर्घटना में मारे गए.
1996 में ही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच की लड़ाई सामने आने लगी. दोनों की लड़ाई का नतीजा 1999 में विधानसभा में देखने को मिला. इन चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की करारी हार हुई.
परिवार में टूट
2002 में राज ठाकरे ने पहली बार खुली बगावत कर दी. राज ठाकरे ने खुलकर कहा कि बीएमसी चुनाव में मेरे किसी भी कैंडिडेट को टिकट नहीं दिया जा रहा है. हालांकि राज ठाकरे की बगावत के बावजूद 2002 के चुनावों में उद्धव की जीत हुई. 2003 में हुए पार्टी सम्मेलन में ठाकरे वंश का बंटवारा हमेशा के लिए हो गया, क्योंकि उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया.
2005 में ठाकरे परिवार टूट गया और राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ने की घोषणा कर दी. 2006 में राज ठाकरे ने अपनी नई पार्टी बनाई जिसका नाम रखा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना रखा. 2007 के बीएमसी चुनावों में तो राज ठाकरे, शिवसेना को नुकसान नहीं पहुंचा पाए लेकिन 2009 के विधानसभा के चुनावों में शिवसेना के वोट बैंक में सेंध लगा दी. शिवसेना चौथे पायदान पर आ गिरी जबकि राज ठाकरे की पार्टी ने 13 सीटों पर कब्जा कर लिया.
फिर से बीजेपी के साथ
नवंबर 2012 बाल ठाकरे का निधन हो गया. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर पर सवार होकर शिवसेना ने भी महाराष्ट्र में अपनी जबरदस्त वापसी की. पार्टी ने 18 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही. कुछ महीने बाद ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए. इन चुनावों में बीजेपी और शिवसेना का 25 साल पुराना गठबंधन टूट गया. इसके बावजूद बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. आखिरकार दोबारा गठबंधन की सरकार बनी. मख्यमंत्री बीजेपी के देवेंद्र फड़नवीस बने. राज्य में शिवसेना के साथ बीजेपी के साथ गठबंधन तो हुआ लेकिन पहले जैसी बात ना रही. 2014 के चुनाव में राज ठाकरे को लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में कोई कामयाबी नहीं मिली.
2019 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने तमाम विरोध के बावजूद बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया है, तो वहीं राज ठाकरे मोदी को हराने के लिए एनसीपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों का समर्थन कर रहे हैं. 2019 तक आते आते उद्धव ठाकरे ने आदित्य ठाकरे को पार्टी का दूसरा बड़ा चेहरा बना दिया. हालांकि ठाकरे परिवार की असल परीक्षा लोकसभा चुनाव के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगी.