Lok Sabha Election 2019: हरियाणा की राजनीति करीब चार दशक तक बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के इर्द गिर्द ही धूमती रही है. 4 दशक में लगभग 30 इन तीनों ने ही हरियाणा की सीएम की कुर्सी पर राज किया है. एक समय ये तीनों नेता ना सिर्फ राज्य की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय परिपेक्ष में भी बड़े चेहरे बनकर सामने आए. चुनाव के लिए हमारी खास सीरीज सियासी घराना में हम आपको बंसीलाल के परिवार की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं.


वकालत से राजनीति का सफर
बंसीलाल का जन्म 1927 में हरियाणा के भिवानी जिले में हुआ था. 16 साल की उम्र में ही बंसीलाल पर्जा मंडल के सचिव बने. इसके बाद बंसीलाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री हासिल की. 1957 में बंसीलाल को भिवानी बार काउंसिल का अध्यक्ष चुना गया. बार काउंसिल का अध्यक्ष बनने के बाद बंसीलाल ने हरियाणा की राजनीति में कदम रखने का फैसला किया.



1959 में बंसीलाल को पहली बार जिला कांग्रेस कमेटी हिसार का अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी का जिला अध्यक्ष बनने के बाद बंसीलाल की कामयाबी का सिलसिला शुरू हो गया. इसके बाद बंसीलाल कांग्रेस वर्किंग कमेटी और कांग्रेस संसदीय बोर्ड के मेंबर बने.


हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद बंसीलाल की किस्मत को चार चांद लग गए. 1967 में बंसीलाल पहली बार विधायक चुने गए. विधायक चुने जाने के कुछ दिन बाद ही बंसीलाल हरियाणा के सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए. 1972 में बंसीलाल चुनाव जीतकर दोबारा से सत्ता में वापसी हुई और वह 1975 तक दूसरी बार सीएम रहे.


इंदिरा गांधी के करीबी थे बंसीलाल
बंसीलाल को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी का करीबी माना जाता था. सीएम की कुर्सी जाने के बाद बंसीलाल इमरजेंसी के दौरान रक्षा मंत्री के पद पर रहे. इसी दौरान बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र की दोस्ती संजय गांधी से हो गई.


लेकिन बंसीलाल की सियासत को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब भजनलाल जनता पार्टी तोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. भजनलाल के आने के बाद बंसीलाल के किले में सेंध लगना शुरू हो गई. हालांकि 1985 में बंसीलाल दोबारा से राज्य के सीएम बनने में कामयाब हुए, पर 1987 में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा.


1991 में जब कांग्रेस दोबारा सत्ता में वापस आई तो बंसीलाल की जगह भजनलाल को राज्य का सीएम बनाया गया. 1996 के चुनाव में बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाने का फैसला किया और बीजेपी के सहयोग के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुए.


फिर से थामा कांग्रेस का हाथ
2000 में बंसीलाल की सियासत को तगड़ा झटका लगा. बंसीलाल की पार्टी राज्य में सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई और बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र भी चुनाव हार गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में भी बंसीलाल की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. इसके बाद सुरेंद्र ने पिता से अलग लाइन लेते हुए हरियाणा विकास पार्टी का कांग्रेस में विलय का फैसला कर लिया. इसी दौरान बंसीलाल के दूसरे बेटे रणबीर सिंह महेंद्रा बीसीआई के अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए.



2005 में बंसीलाल ने कांग्रेस की तरफ से चुनाव नहीं लड़ने निर्णय लिया. 2005 में बंसीलाल के दोनों बेटे सुरेंद्र और रणबीर चुनाव जीतने में कामयाब हुए. भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में सुरेंद्र को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया.


मंत्री बनने के कुछ वक्त बाद ही एक विमान हादसे में बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र का निधन हो गया. सुरेंद्र के निधन के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी ने हरियाणा की सियासत में कदम रखा और तोशाम से विधायक बनने में कामयाब हुए. 2006 में बंसीलाल का भी निधन हो गया.


तीसरी पीढ़ी की राजनीति में एंट्री
2009 के चुनाव में बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी की राजनीति में एंट्री हुई. किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को भिवानी-महेंद्रगढ लोकसभा सीट से कांग्रेस का टिकट मिला और वह चुनाव जीतने में कामयाब रही. 2014 में श्रुति चौधरी को हार का सामना करना पड़ा.



हार के बावजूद भिवानी इलाके में बंसीलाल परिवार का रुतबा आज भी कायम है. किरण चौधरी तोशाम सीट से तीन बार विधायक बन चुकी हैं और 2014 में वह विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल की नेता भी बनी. इसी बीच बंसीलाल के परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद खुलकर सबके सामने आ गया. इस वजह से परिवार की थोड़ी किरकिरी भी हुई. 2019 में बंसीलाल परिवार की साख एक बार फिर दांव पर लगी है. भिवानी-महेंद्रगढ सीट से कांग्रेस ने श्रुति चौधरी पर ही भरोसा दिखाया है.