सियासी घराना: 'आया राम गया राम' की राजनीति के जनक भजनलाल के परिवार की कहानी
Lok Sabha Election 2019: करीब 5 दशक के बाद अब भजनलाल की तीसरी पीढ़ी पहली बार चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही है.
Lok Sabha Election 2019: हरियाणा की राजनीति का जिक्र भजनलाल, देवीलाल और बंसीलाल के जिक्र के बिना आज भी अधूरा है. करीब 4 दशक तक इन तीनों नेताओं का राज्य की सियासत पर कब्जा रहा है. तीनों के निधन के बाद अब अब इनके परिवार की राज्य के अलग अलग इलाकों में पकड़ कायम है और इनकी तीसरी या चौथी पीढ़ी 2019 के लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा रही है. चुनाव के लिए एबीपी न्यूज की खास सीरीज सियासी घराना में हम आपको भजनलाल के परिवार की कहानी बता रहे हैं.
आया राम गया राम की राजनीति के जनक देश की 'आया राम गया राम' की राजनीति के जनक माने जाने वाले भजनलाल का जन्म 1930 में कोटवाली गांव में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है. भजनलाल अपने शुरुआती दिनों में ओढणी बेचने का काम करते थे. इसके बाद भजनलाल ने घी बचने का काम भी किया. व्यापार में बढोतरी होने के बाद भजनलाल ने हिसार की अनाज मंडी में अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी.
राजनीति में भजनलाल ने अपने करियर की शुरुआत ब्लॉक लेवल पर चुनाव लड़कर की थी. इसके बाद भजनलाल ने राजनीति में कभी वापस मुड़कर नहीं देखा और 1968 में वो पहली बार हरियाणा की आदमपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए. यहीं से भजनलाल का कद राजनीति में बढ़ना शुरू हो गया.
लेकिन भजनलाल ने राजनीति का असली दांव साल 1979 में चला. भजनलाल उस समय देवीलाल के बाद हरियाणा के सीएम बने थे. पर सीएम बनने के कुछ वक्त बाद ही भजनलाल जनता पार्टी के अधिकतर विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस ने 1982 के विधानसभा चुनाव में भजनलाल को चेहरा बनाया और जीत हासिल की.
1991 में फिर से बने सीएम बंसीलाल और भजनलाल के बीच की लड़ाई को देखते हुए 1985 में भजनलाल को राजीव गांधी ने केंद्र में बुला लिया. राजीव गांधी की सरकार में भजनलाल को कृषि मंत्री का पद मिला. केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी भजनलाल राज्य की सियासत में बराबर एक्टिव रहे और 1991 में दोबारा से मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए. इस चुनाव में भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन की राजनीति में एंट्री हुई और वो कालका सीट से विधायक चुने गए.
1996 में भजनलाल को तगड़ा झटका लगा और उनके नेतृत्व में पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा. इस समय एक बार फिर राज्य की सियासत बंसीलाल और चौटाला परिवार के हाथ में आ गई. हालांकि 2005 में भजनलाल की अगुवाई में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो गई.
2005 में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए भजनलाल की बजाए, भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया. भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन को हुड्डा सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
पार्टी का यह फैसला भजनलाल परिवार को हजम नहीं हो रहा था. 2004 में कांग्रेस के टिकट पर भिवानी से सांसद बने छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई ने गांधी परिवार के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए. 2007 में भजनलाल ने कांग्रेस के साथ अपने 30 साल लंबे सफर को खत्म करने का फैसला किया और हरियाणा जनहित कांग्रेस की नींव रखी.
चंद्रमोहन बने चांद मोहम्मद इसी बीच बड़े बेटे चंद्रमोहन ने फिजा के साथ शादी दूसरी शादी करने के लिए मुस्लिम धर्म अपना लिया. चंद्रमोहन के इस फैसले से भजनलाल की राज्य में काफी किरकिरी हुई. चंद्रमोहन के चांद मोहम्मद बनने के बाद हुड्डा ने भी उन्हें अपने कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया. कुछ वक्त के बाद चंद्रमोहन ने परिवार में दोबारा वापसी कर ली और फिजा के साथ सारा रिश्ता खत्म कर लिया.
2009 में भजनलाल ने हिसार सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब हुए. इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भजनलाल की पार्टी के 6 विधायक चुने गए. पर कुछ दिन बाद ही उनमें से 5 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए. कुलदीप बिश्नोई पार्टी में अकेले विधायक बचे.
कांग्रेस में हुई वापसी लंबे समय से बीमार होने की वजह से 2011 में भजनलाल का निधन हो गया. इसके बाद कुलदीप बिश्नोई हिसार से सांसद चुने गए. 2014 के चुनाव के लिए कुलदीप बिश्नोई की पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया, पर वह खुद भी चुनाव हार गए. इसके बाद बीजेपी ने कुलदीप से अपना गठबंधन तोड़ लिया.
2014 के विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी रेणुका ही हजका के टिकट पर चुनाव जीत पाए. 2016 में कुलदीप बिश्नोई ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव भजनलाल परिवार की तीसरी पीढ़ी चुनावी मैदान में है. कांग्रेस ने कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को हिसार से टिकट दिया है.