Maharashtra Elections: महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक एनजीओ फेडरेशन के समन्वयक डॉ. अजीमुद्दीन ने बताया है कि विपक्षी गठबंधन में कम प्रतिनिधित्व होने के बावजूद भी महाराष्ट्र में मुसलमान महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को क्यों समर्थन करता है. उन्होंने कहा कि एमवीए में सीमित राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर समुदाय में बेचैनी की भावना है, लेकिन इसके खिलाफ कोई स्पष्ट गुस्सा नहीं है. हालांकि, एक बार उद्धव ठाकरे ने खुले तौर पर समुदाय के मताधिकार को छीनने का आह्वान किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल हुए लोकसभा चुनावों में मुस्लिम और अंबेडकरवादी दलित वोटों के एकीकरण ने एमवीए को 48 में से 30 सीटें जीताने में खास रोल प्ले किया. वहीं जब महायुति 14 लोकसभा सीटें हारी तो भाजपा ने इसे वोट जिहाद करार दिया. एमवीए को सपोर्ट करने के बाद भी समुदाय खुद को गठबंधन में राजनीतिक प्रतिनिधित्व और प्रमुख निर्णय लेने वाली भूमिकाओं से दूर पाता है.
महाराष्ट्र में मुसलमानों की संख्या
महाराष्ट्र के 1.3 करोड़ मुसलमान है, जो राज्य की कुल आबादी का 11.56 फीसदी हिस्सा है. राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 38 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुसलमान कम से कम 20 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करता हैं, जिनमें नौ निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां वे 40 फीसदी से अधिक हैं. हालांकि, एमवीए ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए केवल आठ मुस्लिम उम्मीदवारों को नामित किया है.
मुस्लिम मतदाताओं के लिए मुख्य मुद्दे
अजीमुद्दीन का कहना है कि महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव के इतिहास को देखते हुए मुस्लिम समुदायों के लिए शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना ही खास विषय बना है. बीते कुछ सालों में हिंदू समूहों की ओर से कई रैलियां निकाली गई, जिसमें भड़काऊ भाषणों में वृद्धि देखी गई है. पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बेटे और कंकावली विधायक नितेश राणे के साथ साथ कई भाजपा से जुड़े कई धार्मिक हस्तियों को मुस्लिम समुदाय भड़काऊ और आक्रामक मानता है.
कैसी सरकार चाहता है मुसलमान मतदाता
उन्होंने बताया कि राज्य में मुसलमान मतदाता एक ऐसी सरकार चाहता है, जो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे और समाज से भेदभाव को दूर करे. मुसलमानों का लक्ष्य भाजपा की विचारधारा का मुकाबला करना है.
मुस्लिम शब्द बोलने से बचते हैं नेता
इस मुद्दे को लेकर नासिक के एक राजनीतिक कार्यकर्ता तल्हा शेख ने बताया कि भले ही एमवीए मुसलमानों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सीमित कर दे, लेकिन भाजपा का विरोध करने के उद्देश्य से समुदाय का एमवीए को ही समर्थन करेगा. उनके मन ने एक स्पष्ठ निराशा है कि फुल सपोर्ट करने के बाद भी पार्टी के लोग मुस्लिम शब्द बोलने से बचते हैं.
क्या है मुस्लिम-केंद्रित पार्टियों की भूमिका
हिस्ट्री देखी जाए तो महाराष्ट्र में मुसलमानों को कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के लिए समर्थन देते देखा गया है, लेकिन एक दशक पहले से समुदाय में खुद को कांग्रेस से दूर करने की भावना बढ़ी है. इसी भावना ने युवाओं को विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित किया, जिससे जिससे असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन आघाड़ी (वीबीए) और समाजवादी पार्टी (एसपी) जैसी पार्टियों का राजनीतिक विकल्प के रूप में उदय हुआ.
अपने नेताओं के फायदे में पार्टियां
हालांकि, इन पार्टियों ने शुरुआत में मुस्लिम समुदाय से समर्थन हासिल किया, लेकिन अब उनके साथ भी एक मोहभंग जैसी भावना हो गई है, क्योंकि अब वे लोग समुदाय के लीडर के बजाय अपने नेताओं के फायदे में लगे हैं. एआईएमआईएम और एसपी सहित इन पार्टियों के भीतर की अंदरूनी लड़ाई ने उनकी विश्वसनीयता को और कम कर दिया है, जिससे कई लोग उनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठा रहे हैं.
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