नई दिल्ली: 18 अप्रैल यानी कल 17वीं लोकसभा चुनने के लिए दूसरे चरण में 95 सीटों पर मतदान होना है. दूसरा चरण केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल है, क्योंकि 95 में से 55 सीट ऐसी हैं, जिन पर बीजेपी कभी चुनाव नहीं जीत पाई है. बीजेपी के लिए तमिलनाडु की 39 सीटें भी इस चरण में मुसीबत का सबब हैं. तमिलनाडु की 39 में 35 सीटों पर बीजेपी कभी चुनाव नहीं जीत पाई है.


महागठबंधन के लिए चुनाव अहम क्यों ?
दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर वोटिंग होगी, इन आठ सीटों के करीब एक करोड़ चालीस लाख वोटर नेताओं की किस्मत का फैसला करेंगे. 2014 में ये आठों सीट बीजेपी की झोली में आई थीं, इसलिए इन आठों सीटों पर बीजेपी के लिए 2014 का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है. इस बार उत्तर प्रदेश का सियासी माहौल 2019 से एकदम उलट है. 2019 में जहां सभी पार्टियां एक दूसरे से लड़ रही थीं तो इस बार एसपी, बीएसपी और आरएलडी का गठबंधन बीजेपी के सामने मजबूत दीवार बनकर खड़ा है. इसके साथ ही कांग्रेस भी अपना खोया जनाधार पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. अब बीजेपी के खिलाफ एकजूट होने के बाद महागठबंधन के लिए वापसी का भारी दबाव है.


मायावती-अखिलेश की दोस्ती का इम्तिहान है
अब लोकसभा चुनाव मायावती और अखिलेश यादव की दोस्ती की परीक्षा भी है. यदि इस चुनाव में आंकड़ें महागठबंधन के पक्ष में आते हैं तो अखिलेश यादव और मायावती अपनी सियासी ताकत का एहसास कराएंगे. यदि बीजेपी एक बार फिर 2014 जैसी सफलता दोहराती है तो बीजेपी जोरदार पलटवार करेगी और जोड़ी को जनता द्वारा खारिज बताएगी.


मायावती ने भतीजे आकाश की लॉन्चिंग की है
मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने आगरा में एक जनसभा को संबोधित किया. इसे आकाश की राजनीतिक शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है. आकाश मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं. वह मायावती के साथ पार्टी की बैठकों में नजर आते रहते हैं. बीएसपी की ओर से चुनाव प्रचार के लिए जारी स्टार प्रचारकों की सूची में आकाश भी शामिल हैं. यदि बीएसपी के पक्ष में आंकड़ें आते हैं तो आकाश की जोरदार एंट्री मानी जाएगी. एक तरह से यह चुनाव आकाश के राजनीतिक भविष्य को भी तय करेगा. बता दें कि 2014 में मायावती का खाता नहीं खुल पाया था.


पीएम दावेदारी के लिए बेहतर प्रदर्शन की चुनौती
यदि आकंड़ें महागठबंधन के पक्ष में आते हैं और बीएसपी की सीटों की संख्या भी अधिक होती है तो मायावती की पीएम पद पर दावेदारी मजबूत होगी. चुनाव में एक बार फिर बीजेपी के पक्ष में आंकड़ें आएंगे तो महागठबंधन के राजनीतिक भविष्य के लिए खतरे की घंटी होगी.


बिहार के लिए चुनाव अहम क्यों ?
-एनडीए के लिए इस फेज में खाता खोलने की चुनौती
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत 18 अप्रैल को बिहार की पाचं सीटों पर चुनाव होने हैं. इसमें कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, भागलपुर और बांका सीट शामिल हैं. इन सीटों पर मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है. खास बात ये है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी इन पांचों सीटों पर जीतने में कामयाब नहीं हो पाई थी. बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं थी.


सभी 5 सीटों पर एनडीए से जेडीयू उम्मीदवार हैं
इस बार ये सभी सीटें जेडीयू के खाते में गयी हैं. जिसके उम्मीदवार एनडीए प्रत्याशी के तौर पर अपना भाग्य आजमा रहे हैं. जेडीयू ने पूर्णिया से अपने निवर्तमान सांसद संतोष कुमार कुशवाहा को, भागलपुर से अजय मंडल को, बांका से गिरधारी यादव को, कटिहार से दुलाल चंद्र गोस्वामी को और किशनगंज से महमूद अशरफ को उम्मीदवार बनाया है.


मुस्लिम वोटरों के प्रभाव वाले इलाकों में वोटिंग
विपक्षी महागठबंधन में शामिल आरजेडी ने भागलपुर से अपने निवर्तमान सांसद शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल और बांका से निवर्तमान सांसद जयप्रकाश नारायण यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि किशनगंज से कांग्रेस ने मोहम्मद जावेद को अपना उम्मीदवार बनाया है. उदय सिंह इस बार यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. कटिहार से तारिक अनवर कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं. किशनगंज में इस बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने अख्तरूल इमान को अपना उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस 3 और आरजेडी 2 सीटों पर लड़ रही है. यदि इन सीटों पर एनडीए सफलता हासिल करती है तो विपक्षी महागठबंधन की एकता को असफल माना जाएगा.