नई दिल्ली: अखिलेश यादव से दोस्ती करके मायावती ने 2019 के चुनाव की चाल बदल दी है. यूपी में समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ आने की कल्पना तक कोई नहीं कर रहा था लेकिन मायावती के एक मास्टर स्ट्रोक ने राजनीति का चाल, चरित्र और चेहरा बदल दिया है. बीएसपी के एक सांसद ने बताया कि 23 फ़रवरी को पहली बार बातचीत का माहौल बना. समाजवादी पार्टी के एक सीनियर नेता ने पहल की. बात आगे बढ़ी. मायावती चाहती थीं कि अखिलेश यादव सीधे बात करें. ऐसा ही हुआ एसपी अध्यक्ष ने बीएसपी की मुखिया से लंबी बातचीत की. मायावती ने यूपी लोकसभा उपचुनाव में समर्थन के बदले राज्य सभा के चुनाव में समर्थन मांगा और दुश्मनी दोस्ती में बदल गई.
मायावती ने पहली बार समाजवादी पार्टी से ही गठबंधन किया था लेकिन मुलायम सिंह यादव की बनाई हुई इसी समाजवादी पार्टी से साल 1995 में मायावती का ऐसा झगड़ा हुआ कि दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गये. 2 जून 1995 को लखनऊ के गेस्ट हाउस में मायावती पर मुलायम सिंह यादव के समर्थकों ने जानलेवा हमला किया था. इस हमले में मायावती तो बच गई लेकिन यूपी की राजनीति बदल गई. इस घटना के 23 साल बाद जब मुलायम सिंह यादव यूपी की राजनीति में अतीत हो चुके हैं तो अखिलेश यादव के साथ मायावती ने अपनी-अपनी राजनीति को जिंदा रखने के लिए दुश्मनी को भुला दिया है.
अखिलेश यादव और मायावती की दोस्ती देश की राजनीति के लिए बड़ी घटना इसलिए भी है क्योंकि यूपी देश का सबसे बड़ा प्रदेश है. यहां से लोकसभा की 80 सीट आती हैं. अभी 80 में से 73 सीट एनडीए के पास है. बकि समाजवादी पार्टी के खाते में पांच और कांग्रेस के पास दो सीटे हैं. देश में तीसरी सबसे बड़ी ताकत होने के बाद भी लोकसभा में मायावती का एक भी सांसद नहीं है. अब मायावती और अखिलेश यादव का गठबंधन 2019 के चुनाव में भी जारी रहा तो नरेंद्र मोदी के लिए सत्ता में लौटना मुश्किल हो सकता है.
2014 के चुनाव में एनडीए को यूपी में 43.64 फीसदी वोट मिले थे. तब समाजवादी पार्टी को 22.35 फीसदी वोट मिले थे. जबकि मायावती की पार्टी को 19.77 फीसदी वोट मिले थे. एसपी-बीएसपी के वोट जोड़ने पर ये आंकड़ा 42.12 फीसदी होता है. यानी एनडीए और मायावती-अखिलेश गठबंधन के वोट में मामूली का फर्क रह जाता है.