(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ludo फिल्म की तरह कभी नरम तो कभी गरम रही Bhagwan Dada की किस्मत की हवा, एक चॉल में गई थी जान
अगर आपने Ludo फिल्म देखी है तो आपको पता होगा कि इसमें पंकज त्रिपाठी अक्सर भगवान दादा की फिल्म 'अलबेला' का गाना 'किस्मत की हवा कभी नरम, कभी गरम' को सुनते नज़र आते हैं.
अनुराग बसु द्वारा निर्देशित फिल्म 'लूडो' काफी सुर्खियों में है. इस फिल्म में यूं तो पंकज त्रिपाठी, आदित्य रॉय कपूर, सान्या मल्होत्रा, अभिषेक बच्चन जैसे कलाकारों ने अपनी एक्टिंग का जलवा दिखाया है लेकिन गुजरे ज़माने के कॉमेडियन भगवान दादा के एक गाने ने उनकी कई यादों को दोबारा ज़िंदा कर दिया है. दरअसल, अगर आपने फिल्म देखी है तो आपको पता होगा कि इसमें पंकज त्रिपाठी अक्सर भगवान दादा की फिल्म अलबेला का गाना किस्मत की हवा कभी नरम, कभी गरम को सुनते नज़र आते हैं. ये है वो गाना:
इस तरह से एक बार फिर भगवान दादा जैसे महान कलाकार को याद करने का मौका मिल गया है जिसके बारे में जनरेशन शायद ही कुछ जानती हो. आपको बता दें कि 1913 में जन्मे भगवान दादा का असली नाम भगवान आभाजी पलव था. वह एक टेक्सटाइल मिल वर्कर के बेटे थे. शुरुआत में उन्होंने आजीविका चलाने के लिए मजदूर का काम किया लेकिन उनके मन में हमेशा फिल्मों में काम करने का सपना था. यही सपना उन्हें साइलेंट फिल्मों की तरफ मिल गया. उन्होंने फिल्म मेकिंग भी सीखी और छोटे बजट की फ़िल्में भी बनाईं.
1942 में उनका नाम तब सुर्खियों में आया जब एक फिल्म के सीन की शूटिंग के दौरान उन्होंने अपनी को-स्टार ललिता पवार को जोर का थप्पड़ जड़ दिया. उन्होंने अनजाने में यह थप्पड़ इतनी जोर से मारा कि ललिता पवार को चेहरे का पैरालिसिस हो गया और उनकी आंख की नस फट गई. 1942 में भगवान दादा प्रोड्यूसर बन गए. राज कपूर की सलाह पर उन्होंने फिल्म अलबेला बनाई जिसका एक गाना शोला जो भड़के इतना पॉपुलर हुआ कि यही भगवान दादा की पहचान बन गई.
लेकिन एक दौर ऐसा आया जब भगवान दादा की किस्मत भी कभी नरम तो कभी गरम दौर से गुजरने लगी. लूडो के खेल की तरह ही उनकी किस्मत ने ऐसी पलटी मारी कि एक पल में वह अर्श से फर्श पर आ गए. एक के बाद एक उनकी कई फ़िल्में फ्लॉप हो गई और उन्हें प्रोडक्शन और डायरेक्शन बंद करना पड़ा. बुरे दौर में भगवान दादा को अपना 25 कमरों वाला मुंबई के पॉश इलाके में बना बंगला बेचना पड़ा.
साथ ही अपनी 7 कारें भी बेचनी पड़ी जिनके रंग हर दिन के हिसाब से अलग-अलग थे. इसके बाद जीवन यापन के लिए भगवान दादा मुंबई की चॉल में जाकर रहने लगे और फिल्मों में जो भी काम मिला, करने लगे. इस बुरे दौर में भगवान दादा के करीबियों ने उनका साथ छोड़ दिया . 4 फरवरी, 2002 को हार्ट अटैक के चलते वह इस दुनिया को मुफलिसी में अलविदा कह गए.