हिंदी सिनेमा का ऐसा हीरा जिसकी कलम ने ऐसा जादू चलाया कि हर कोई हैरान रह गया. गुलज़ार किसी भी इंसान को कितनी आसानी से असली जिंदगी से सपनों की दुनिया में भेज देते हैं. एक ऐसा गीतकार जो अपनी कलम से 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी, हैरान हूं मैं' लिखता है, तो वहीं उसी कलम से 'नमक इस्क का' लिखकर भी दर्शकों को खूब एंटरटेन करता है.
हिंदुस्तान के विभाजन के बाद गुलज़ार का परिवार अमृतसर में आकर बस गया. पढ़ने-लिखने के शौकीन गुलज़ार पैसों की किल्लत की वजह से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्हें पेट्रोल पंप पर नौकरी करना पड़ी. पेट्रोल पंप पर काम करते हुए शायरी के शौकीन गुलज़ार ने अपनी कविताओं को काग़ज पर उतारना शुरु कर दिया. इसके बाद वो मुंबई चले आए. इस मायावी नगरी में गुलज़ार ने न जाने कितनी रातें अंधेरे में गुज़ारी. गुज़ारा करने के लिए मुंबई के वर्ली में एक गैराज में मैकेनिक का काम करना शुरू किया. इसी वक़्त वो 'प्रोग्रेसिव राइटर एसोसिएशन' से भी जुड़े जहां उनकी मुलाक़ात कई शायरों, और साहित्यकारों से हुई. इसी तरह उनकी मुलाकात गीतकार शैलेन्द्र और संगीतकार एसडी बर्मन से हुई.
खबरों की मानें तो शेलेन्द्र ने ही एसडी बर्मन से गुलज़ार को मिलवाया था. ये वो वक्त था जब एसडी बर्मन फिल्म 'बंदिनी' के संगीत को लेकर काफी बिजी चल रहे थे, मगर शैलेन्द्र के कहने पर उन्होंने गुलज़ार को एक गीत लिखने का मौका दिया. गुलज़ार ये मौका किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे इसीलिए 5 दिन में उन्होंने गाना तैयार कर लिया. फिल्म 'बंदिनी' के निर्देशक बिमल रॉय को भी गाना पसंद आया. इस तरह से गुलज़ार का पहला गाना तैयार हुआ. उस गाने के बाले थे- 'मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे'. गुलज़ार के पहले गाने को लता मंगेशकर ने आवाज़ दी थी.