मुम्बई: अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर और शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित फिल्म 'गुलाबो सिताबो' को पहले सिनेमाघरों की बजाय सीधे अमेजन प्राइम पर रिलीज किये जाने को लेकर सिनेमा मालिकों और फिल्म एक्जीबिटरों में भारी नाराजगी है. लॉकडाउन के मौजूदा दौर और भविष्य में थिएटरों को लेकर अनिश्चितता के बीच गुरुवार को जैसे ही 'गुलाबो सिताबो' को अमेजॉन पर रिलीज करने का आधिकारिक ऐलान हुआ, थिएटर मालिकों और एक्जीबिटरों ने मुखर होकर इस नये चलन के खिलाफ अपनी आवाजें बुलंद करनी शुरू कर दीं.
एबीपी न्यूज़ ने चंद थिएटर मालिकों और एक्जीबिटरों से इस बारे में बात कर उनकी राय जानने की कोशिश की. लेकिन पहले हम आपको बताते हैं कि देश के सबसे बड़े मल्टीप्लेस चेन में से एक आइनॉक्स ने एक आधिकारिक बयान जारी कर किस तरह से अपना गुस्सा जाहिर किया है. आइनॉक्स ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, "सिनेमाघरों में रिलीज किये बगैर ही एक प्रोडक्शन हाउस द्बारा एक फिल्म को सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज किये जाने के ऐलान से हम बेहद हताश और निराश हैं. दुनिया भर में कंटेट को लेकर तय नियमों से हटकर प्रोडक्शन द्वारा किया गया यह फैसला बेहद चिंताजनक और घबराहट पैदा करनेवाला है."
इतना ही नहीं, इस मल्टिप्लेक्स चेन ने फिल्म और निर्माता का नाम लिए बगैर निर्माता के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को लेकर अपने तमाम विकल्पों पर विचार करने की बात भी कही है. आइनॉक्स ने आगे कहा है, "सिनेमाघरों और कंटेट का निर्माण करनेवाले हमेशा से ही परस्पर फायदे वाली साझेधारी में रहे हैं, जहां एक के काम से दूसरे को राजस्व के तौर पर अच्छा फायदा पहुंचाया है... आइनॉक्स सभी कंटेट क्रिएटर्स से अनुरोध करता है कि वे पहले सिनेमाघरों में फिल्में रिलीज नहीं करने का फैसला न लें, फिल्मों के प्रदर्शन को लेकर वे सभी एक अर्से से चली आ रही स्थापित परंपरा का पालन करें."
इस मसले पर एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए सिनेमा ओनर्स ऐंड एक्सजीबिटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष नितिन दातार ने साफ शब्दों में कहा, "हम कतई नहीं चाहते हैं कि फिल्में सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हों. तमाम निर्माताओं को कुछ वक्त के लिए धीरज रखना चाहिए. जिस तरह से फिल्म निर्माताओं का फिल्मों में पैसा लगा हुआ है, एक्जीबिटरों ने भी सिनेमाघरों में काफी निवेश किया हुआ है. लॉकडाउन के बावजूद उन्हें थिएटर में काम करने वाले लोगों की सैलेरी चुकाने से लेकर तमाम खर्चों से जूझना पड़ रहा है."
नितिन दातार ने यह जानकारी भी दी कि एसोसिशन की तरफ से निर्माताओं की तमाम संस्थाओं को जल्द ही पत्र लिखा जाएगा और उनसे अपील की जाएगी कि वे फिल्मों को पहले डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज न करें, फिर हम इस बात का फैसला करेंगे कि हमारा अगला कदम क्या होना चाहिए. हमने पहले भी निर्माताओं से अपील की थी कि वे इस तरह की परंपरा की नींव न डालें, मगर हमारी इस अपील पर कतई ध्यान नहीं दिया गया... यही हाल रहा तो आनेवाले समय में कई सिनेमाघर बंद हो जाएंगे."
एबीपी न्यूज़ ने नागपुर बेस्ड जाने-माने एक्जीबिटर अक्षय राठी से भी इस बारे में बात की. उन्होंने 'गुलाबो सिताबो' की रिलीज को इस तरह से रिलीज किये जाने को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर करते हुए कहा, "निर्माताओं के ऐसे फैसलों से पूरे वैल्यू चेन (एक्जीबिशन सेक्टर) पर इसका विपरीत असर पड़ेगा. अच्छा होता अगर इस तरह का फैसला लेने से पहले निर्माता तमाम एक्जीबिटरों से इस बारे में चर्चा करते."
वे कहते हैं, "अगर फिल्म निर्माताओं को आर्थिक दिक्कतें हो रहीं हैं, तो एक्जीबिटर भी तंगी से जूझ रहे हैं. इस वक्त अकेले पीवीआर मल्टिप्लेक्स चेन पर 1200 करोड़ रुपये का कर्ज है. बिना किसी कमाई के सिनेमाघरों को मेंटनेंस/प्रॉपर्टी टैक्स के साथ-साथ इस सेक्टर में काम करनेवाले तकरीबन दो लाख लोगों को वेतन भी देना पड़ रहा है. एक ही इंडस्ट्री से जुड़े होने के नाते हमें मुश्किल की इस घड़ी में एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, न कि इस तरह से किसी पक्ष को नुकसान पहुंचाना चाहिए."
बिहार के पूर्णिया जिले में रूपबानी व अन्य थिएटर चलानेवाले विशेक चौहान कहते हैं, "मौजूदा हालात और भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए 'गुलाबो सिताबो' के निर्माता को अपनी फिल्म को सीधे तौर पर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने का पूरा हक है. मगर हमें एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सालों से मौजूद किसी भी ओटीटी प्लेटफॉर्म ने कभी भी किसी बड़े स्टार को नहीं बनाया. जब तक फिल्में थिएटर में नहीं चलेगी, तब तक आप सलमान खान, शाहरुख खान या रजनीकांत जैसे सितारों को क्रिएट नहीं कर सकते हैं. बॉलीवुड के बड़े-बड़े सितारों की फिल्में देखने के लिए लोग सिनेमाघरों में सुबह से लाइन लगाते हैं. सितारों का यह जादू और जलवा टीवी अथवा किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म के जरिए पैदा होना मुमकिन नहीं है."
विशेक आगे कहते हैं, "अगर आप फिल्म बिजनेस को बड़ा बनाना चाहते हैं, तो आप सिनेमाघरों के बगैर सस्टेन ही नहीं कर पाएंगे. 'गुलाबो सिताबो' को ऐसे रिलीज करने का एक मतलब आयुष्मान खुराना जैसे स्टार के साथ नाइंसाफी करना भी है. इस वक्त वे उम्दा फॉर्म में चल रहे हैं. ऐसे में उनके करियर पर भी बुरा असर पड़ेगा. यह भी सोचनेवाली बात है कि इस तरह अगर किसी भी सितारे की फिल्म को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अन्य शोज के सामने लाकर रख दिया जाएगा, तो किसी फिल्म की कामयाबी का पैमाना क्या होगा? व्यूज ?? तो व्यूज तो आजकल किसी भी गाने/शो को मिल जाते हैं... अगर आप हरेक फिल्म को सीधे लोगों के घरों में ले जा रहे हैं, तो आप लोगों में सिनेमाघरों में जाकर फिल्में देखने के जुनन को मारने की कोशिश कर रहे हैं. यह बात और है कि थिएटर का जादू कभी कम नहीं होगा."
एक फिल्म निर्माता होने के नाते 'खुदा गवाह' जैसी भव्य फिल्म बना चुके और मुम्बई में जी 7 मल्टिप्लेक्स के मालिक मनोज देसाई ने एबीपी न्यूज़ से कहा, "एक निर्माता के तौर पर मैं फिल्म को सीधे तौर पर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने की निर्माता की मजबूरियों को अच्छी तरह से समझता हूं. इस वक्त सारे थिएटर बंद हैं, लेकिन थिएटर से जुड़े हमारे तमाम खर्चें जारी हैं. थिएटर कब खुलेंगे और किन शर्तों के साथ खुलेंगे, यह भी नहीं पता है. मगर बड़ा पर्दा तो बड़ा पर्दा ही होता है, किसी से इसकी तुलना नहीं की जा सकती है... हर एक्जीबिटर यही चाहता है कि फिल्म निर्माताओं को इस वक्त थोड़ा इंतजार करना चाहिए."
उन्होंने अंत में कहा, "अब यह देखना दिलचस्प होगा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कौन-सी फिल्म कितना चलती है. अगर एक-दो फिल्म नहीं चलीं, तो फिर अपने आप सभी निर्माता चुप बैठ जाएंगे और डिजिटल पर फिल्में रिलीज करने से कतराएंगे."