Azamgarh Lok Sabha Chunav Result 2024: भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ आजमगढ़ सीट से लोकसभा सीट 2024 का चुनाव हार गए हैं. बीजेपी ने इस सीट पर काफी मेहनत की लेकिन फिर भी ये सीट अपने नाम नहीं कर सकी.इस सीट पर समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने जीत हासिल की है जिन्हें 1,61,035 वोट हासिल हुए हैं. दिनेश लाल यादव अब पूर्व सांसद बन चुके हैं. 


बता दें कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने करहल से चुनाव जीता था और ये सीट खाली हो गई थी. इसके बाद इस सीट पर हुए लोकसभा के उपचुनाव में दिनेश लाल यादव चुनाव ने जीत हासिल की थी और यहां से सांसद बने थे. लेकिन वे इस बार का चुनाव हार गए हैं और ऐसे में सभी उनकी हार की वजह जानना चाहते हैं. 


क्यों हारे दिनेश लाल यादव?
दिनेश लाल यादव की हार का कारण जानने के लिए एबीपी न्यूज ने आजमगढ़ की राजनीति और आजमगढ़ की रोजाना की गतिविधियों पर मजबूत पकड़ रखने वाले लोगों से बातचीत की. लोगों ने निरहुआ की हार के कई पहलू बताए. आजमगढ़ के घोरठ कॉलोनी निवासी प्रतीक राय कहते हैं कि 2022 के उपचुनाव में जमीनी स्तर पर जितनी मेहनत दिनेश लाल यादव ने की थी इस बार उतनी मेहनत नहीं दिखी.


माइक्रो लेवल पर नहीं दिखी मेहनत
प्रतीक का कहना है कि उपचुनाव में दिनेश लाल यादव की पर्ची चुनावी कैंपेन में ज्यादातर इलाकों में पहुंची थी लेकिन इस बार एक बार भी चुनावी कैंपेन की पर्ची कई क्षेत्रों में नहीं पहुंची. उन्होंने ये भी कहा कि गाजीपुर के मूल निवासी होने के कारण पिछले चुनाव में स्टार ने गाजीपुर की जिन लड़कियों की शादी आजमगढ़ में हुई है उनके घरों तक पहुंच कर कैंपेन किया था. ऐसे में उन्हें उन लड़कियों के परिवार का भी काफी सपोर्ट और वोट मिला था. लेकिन इस बार दिनेश लाल यादव की कैंपेनिंग में इतने माइक्रो लेवल की मेहनत नहीं दिखी.


जातिगत समीकरण ने बिगाड़ा खेल
आजमगढ़ के पुरानी कोतवाली, आसीफगंज के रहने वाले पुष्कर लखमानी कहते हैं कि इस हार का सिर्फ एक कारण है और वो है जातिगत समीकरण. आजमगढ़ में यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा है जो की एक मुश्त समाजवादी पार्टी को गई. पिछली बार बहुजन समाज पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशी ने कुछ मुस्लिम वोट काटे थे पर इस बार बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी की कोई खास अहमियत नहीं दिखी. इस वजह से यादव और मुसलमानों का एक तरफा वोट धर्मेंद्र यादव की तरफ गया और निरहुआ हार गए.


स्थानीय नेताओं में नहीं दिखी एकजुटता
आजमगढ़ लोकसभा सीट के मातबरगंज, चौक निवासी अंकित जायसवाल बताते हैं कि जातिगत समीकरण तो अपनी जगह रहा पर इस बार बीजेपी के स्थानीय नेताओं में एकजुटता बिल्कुल भी नहीं थी और सब अलग-थलग चुनाव में दिखे. स्थानीय नेताओं का एक साथ ना आना चुनावी कैंपेन में नुकसानदायक रहा जिस वजह ये हार हुई. उन्होंने कहा कि निरहुआ ने अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में आजमगढ़ में बहुत काम किया पर नतीजे उनके मुफीद नहीं रहे.


बेरोजगारी और पेपर लीक रहा मुद्दा
आजमगढ़ के आरटीओ ऑफिस निवासी डॉक्टर सुभाष कहते हैं कि चुनाव में विपक्ष ने संविधान बदलने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अगर बीजेपी जीतेगी तो संविधान बदल दिया जाएगा. ये मुद्दा एक वर्ग में बहुत चला और उसके बदले में उस तबके ने पुरजोर तरीके से गठबंधन को सपोर्ट दिया. इसके साथ ही कई ऐसे युवा और शिक्षित वर्ग के लोग रहे जो बेरोजगारी और पेपर लीक की वजह से मौजूदा सरकार से परेशान थे और उन्होंने भी गठबंधन को वोट किया जिस वजह से दिनेश लाल यादव हार गए.


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