Kaifi Azmi Birth Anniversary: मशहूर शायर कैफ़ी आजमी, शायरी की दुनिया में वो नाम हैं जिन्हें कोई भी न मुल्क जमझकर जला सकता है, न दीवार समझकर गिरा सकता है, न सरहद की तरह बना सकता है और यादों की तरह भुला सकता है. बल्कि वह तो दीवानों के दिल के अरमान हैं, वह तो कुचले हुए इंसानों का ख्वाब हैं. वह गांवों में हैं, वह शहरों में हैं, वह हर बस्ती और हर जंगल में हैं. जब भी लूट और जुल्म हद से गुजरती हैं तो कैफ़ी आजमी की शायरी अचानक किसी कोने में नजर आती है और मोहब्बत का पैगाम देते हुए पूछती है


झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं


दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं


14 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ के मिजवां गांव में जन्मे कैफ़ी का असली नाम अख़्तर हुसैन रिज़वी था. बचपन से ही कविताएं और शायरी लिखने के शौक़ीन कैफ़ी किशोरावस्था में ही मुशायरों में हिस्सा लेने लगे थे. वह 11 साल के थे जब उन्होंने अपनी पहली गज़ल लिखी थी. कैफी आजमी शिया घराने में एक जमींदार के घर में पैदा हुए थे.


मोहब्बत लिखने वाले कैफी साहब की खुद की मोहब्बत की कहानी भी उनके शेर की तरह दिल को छू लेने वाली है. दरअसल, वाकया उनकी सबसे मशहूर नज़्मों में एक 'औरत' से जुड़ा है. वह हैदराबाद के एक मुशायरे में हिस्सा लेने गए. मंच पर जाते ही अपनी मशहूर नज़्म 'औरत' सुनाने लगे.


"उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे,


क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं,


तुझमें शोले भी हैं बस अश्क़ फिशानी ही नहीं,


तू हक़ीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं,


तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं,


अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे,


उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे,"


उनकी यह नज़्म सुनकर श्रोताओं में बैठी एक लड़की नाराज हो गई. उसने कहा, "कैसा बदतमीज़ शायर है, वह 'उठ' कह रहा है. 'उठिए' नहीं कह सकता क्या? इसे तो अदब के बारे में कुछ नहीं आता. कौन इसके साथ उठकर जाने को तैयार होगा? "लेकिन जब कैफ़ी साहाब ने अपनी पूरी नज्म सुनाई तो महफिल में बस वाहवाही और तालियों की आवाज सुनाई दे रही थी. इस नज़्म का असर यह हुआ कि बाद में वही लड़की जिसे कैफी साहाब के 'उठ मेरी जान' कहने से आपत्ति थी वह उनकी पत्नी शौक़त आज़मी बनी.


दरअसल उस मुशायरे में अपने भाई के साथ पहली पंक्ति में बैठीं शौकत नज़्म खत्म होते-होते कैफी पर अपना दिल हार बैठीं. इसके बाद अपनी मोहब्बत में उन्होंने हर इम्तेहान पास किया और शौकत से शौकत आजमी बन गईं. शादी के बाद उनका एक बेटा हुआ जिसकी कुछ दिनों बात ही मृत्यु हो गई. इसके बाद वह लखनऊ आ गए. कुछ दिनों बाद उनकी पत्नी शौकत फिर गर्भवती हुईं लेकिन कम्यूनिस्ट पार्टी ने फरमान सुना दिया कि गर्भपात कराओ, कैफ़ी उस वक्त अंडरग्राउंड थे, उनके पास इतने भी रुपये भी नहीं थे कि वह शौकत की डिलीवरी करा पाते. वह अपनी मां के पास हैदराबाद चली गईं और वहीं पर उनकी बेटी शबाना आज़मी का जन्म हुआ. उस वक्त कैफी आजमी की हालत इतनी खराब थी कि उनकी मदद के लिए महान लेखिका इस्मत चुगताई और उनके पति शाहिद लतीफ़ ने एक हज़ार रुपये आज़मी जी के पास भिजवाए ताकि वो बच्ची का खर्च उठा सकें.


कई फिल्मों के लिए लिखे गीत


कैफ़ी आज़मी ने 1951 में पहला गीत 'बुजदिल फ़िल्म' के लिए लिखा- 'रोते-रोते बदल गई रात'. उन्होंने अनेक फ़िल्मों में गीत लिखें जिनमें कुछ प्रमुख हैं- 'काग़ज़ के फूल' 'हक़ीक़त', हिन्दुस्तान की क़सम', हंसते जख़्म 'आख़री ख़त' और हीर रांझा' जैसे कई मशहूर गीत लिखे. 'हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे वो जवानी जो खूं में नहाती नहीं ' कैफी आजमी की यह पंक्ति उनके जीवन की सबसे बड़ी पंक्ति है और इसी लाइन के आस-पास उन्होंने पूरा जीवन जिया है.


मिले कई अवॉर्ड


1975 कैफ़ी आज़मी को आवारा सिज्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किये गये. 1970 सात हिन्दुस्तानी फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला. इसके बाद 1975 गरम हवा फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ वार्ता फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला. 10 मई 2002 को दिल का दौरा के कारण मुम्बई में उनका हुआ.


यह भी पढ़ें-

CAA: नागरिकता कानून पर बोले माइक्रोसॉफ्ट CEO सत्य नडेला- भारत में जो हो रहा है, वो दुखद


आतंकियों के साथ गिरफ्तार किए गए DSP देविंदर सिंह को जम्मू-कश्मीर सरकार ने सस्पेंड किया


इस साल गणतंत्र दिवस की बीटिंग रिट्रीट‌ समारोह का समापन वंदे मातरम से होगा


Explained: क्या होता है पुलिस कमिश्नर सिस्टम ? इससे कैसे कम होगी IAS की ताकत, जानिए सबकुछ