बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर इरफान खान की फिल्म 'पान सिंह तोमर' (Paan Singh Tomar) साल 2010 में रिलीज़ हुई थी, जिसे दर्शकों ने खूब प्यार दिया था. इस फिल्म में इरफान खान की अदाकारी की ना सिर्फ दर्शकों ने बल्कि समीक्षकों ने भी जमकर तारीफ की थी. वहीं आज भी इस फिल्म के दमदार डायलॉग फैंस को याद हैं, इसी के चलते आज की इस स्टोरी में हम आपके लिए इरफान खान की इसी एवरग्रीन फिल्म के सबसे मशहूर डायलॉग्स लेकर आए हैं.\
‘बाप ने न मारी मेंढक की और बेटा तीरंदाज! हैं? तुम्हारे बाप तो जंग पे ना गए कभी. अगर तुम्हें जंग को सौक चढ़ रो है न तो सुनो. हमाओ इतनेक बड़ो परिवार है कि अगर सब खड़े होक मूत दें न तो बह जाओगे.’
‘अरे तू पूरो पत्रकार बन गओ है कि ट्रेनिंग पे है? जे इलाके का होक भी पतो नहीं है? बीहड़ में बाग़ी होते हैं. डकैत होते हैं पाल्लयामेंट में.’
‘डाकू ना साब. बाग़ी. हमारे मामा, वो मार्क 3 वाले. बे भी बाग़ी हैं साब. आज तक पुलिस न पकड़ पाई उनको.’
‘ना साब सरकार तो चोर है. जेही बात से तो हम सरकारी नौकरी ना कर फ़ौज में आये. जे देश में आर्मी छोड़ सब का सब चोर.’
‘समझ गया…समझ गया… बात जब गुरु की बेटी की है, अब तो आप अंगार पे दौड़ने को कहोगे दौड़ जायेंगे कोच सर जी.’
‘अरे साब जे बात अभी हम कैसे बताएं? हमारे मोड़ो को जान पर बनी है साब. जे इत्ते मेडल मिले हैं. हमने देश को नाम ऊंचो किया है. नेशनल चैम्पियन रहे हैं. जे आपई के तरह तो फ़ौज में रहे. अभी हमाई न सरपंच सुन रओ है. न पटवारी सुन रओ है. जे हम जाएं तो कहां?’
‘क्यूं लाला? हमसे मक्कारी? बाप छलकावे जाम और बेटा बांधे घुंघरू? अब देखो. 75 तो बिसके. औ 75 तुम्हाए. डेढ़ लाख रुपइय्या गिन के दे देओ और अपना और मोड़ा का जान बचाय लेओ.’
‘बाबा! आप कभी रेस दौड़े हैं? बाबा रेस को एक नियम होतो है. एक बार रेस सुरु है गई, फिर आप आगे हो कि पीछे हो, रेस को पूरो करनो पड़तो है. वो दूर. वो फिनिस लाइन. बा को छूनो पड़तो है. सो हम तो हमाई रेस पूरी करेंगे. हम हारें चाहे जीतें. आपका रेस आप जानो. बाबा.’
असलियत में पान सिंह तोमर थे कौन?
मुरैना जिले के भिड़ौसा गांव में जन्मे पान सिंह तोमर आर्मी के स्पोर्ट सेक्शन में थे. वे बाधा दौड़ के धावक थे, जिन्होंने बहुत से रिकॉर्ड अपने नाम किए थे. जब वो आर्मी में सूबेदार के पद से रिटायर हुए तब गांव में डेढ़ बीघा पुश्तैनी जमीन को लेकर काफी विवाद हुआ जिसका कोर्ट कचैरी के बाद भी कोई समाधान नहीं निकला, जिसके बाद पान सिंह ने साल 1977 में बंदूक उठा ली और अपने भाई मातादीन और भतीजे बलवंत के साथ बागी हो गए. 1 अक्टूबर 1981 में भिंड जिले में पान सिंह का एनकाउंटर हुआ, जो काफी समय तक बहस का मुद्दा बना रहा था.