कादर खान हिंदी फिल्मों के वो नायाब हीरे थे, जिन्होंने अपनी अदाकारी से कई दशकों तक दर्शकों को एंटरटेन किया, ऐसा कोई किरदार नहीं है जिसे उन्होंने ना निभाया हो, नेगेटिव से लेकर पॉजिटिव और पॉजिटिव से लेकर कॉमेडी तक उन्होंने हर किरदार को बखूबी निभाया.


कादर खान ने बॉलीवुड में अपने फन का परचम तो लहराया ही साथ ही उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों की कहानी भी लिखी, लेकिन बॉलीवुड में इतनी कामयाबी हासिल करने वाले कादर खान ने कभी एक एक्टर बनने के बारे में सोचा भी नहीं था.



कादर खान अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉलेज में पढ़ाने लगे, वहां एक प्ले हुआ जिसका नाम था ‘लोकल ट्रेन’. उस प्ले को ऑल इंडिया बेस्ट प्ले का अवॉर्ड मिला जिसके लिए कादर खान को 1500 रूपये का इनाम मिला, वो पहली बार था जब उन्होंने इतने सारे रुपये एक साथ देखे थे. इरोज मूवी के प्रड्यूसर ने उस प्ले को प्रड्यूस किया था और साथ ही राजेंद्र सिंह बेदी साहब भी थे, उन्होंने कादर खान से कहा कि क्या तुम्हें फिल्मों में काम नहीं करना? इसके जवाब में कादर खान ने कहा कि-‘नहीं, कभी सोचा नहीं इस बारे में’.


बेदी साहब ने कादर से कहा कि मैं एक फिल्म बना रहा हूं ‘जवानी दीवानी’ और चाहता हूं कि तुम इस फिल्म के डायलॉग लिखों’, ये सुनकर कादर खान ने कहा कि ‘सर मुझे डायलॉग लिखने तो आते नहीं.’ ये सुनकर बेदी साहब ने कहा कि तुमने जो प्ले लिखा है उसमें जो जुमले लिखें है वही डायलॉग हैं. इस तरह से कादर खान की पहली फिल्म का आगाज़ हुआ. उसी फिल्म से फिल्म इंडस्ट्री में ये हवा फैल गई कि एक नया राइटर आया है कादर खान, जिसके बाद उन्हें कामयाबी मिलती गई, इस फिल्म को लिखने के लिए उन्हें 1500 रुपये मिले थे.



कादर खान ने अपने इंटरव्यू में बताया कि- ‘थोड़े दिन गुजरे थे कि उन्हें एक और फिल्म लिखने का मौका मिला, जिसके लिए मुझे 10 हजार रुपये साइनिंग अमाउंट मिला. फिर मेरी मुलाकात मनमोहन देसाई से हुई, उस वक्त वो फिल्म बना रहे थे ‘रोटी’, लेकिन वो फिल्म के डायलॉग्स से खुश नहीं थे, काफी परेशान थे.


हबीब नाडियाडवाला ने मुझे मनमोहन देसाई से मिलावाया और कहा कि ये नया राइटर है इसे ट्राई कर लीजिए. उन्होंने कहा ‘हटाओ यार बहुत मिया भाई को ट्राई कर लिया है और तुम एक और लेकर आ गए’. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मुझे तुम्हारा डायलॉग अच्छा लगेगा तो मैं इसे फिल्म में लूंगा नहीं तो तुम्हारे सामने ही फाड़ कर फेक दूंगा, मैं बोला कि नहीं अच्छा लगा तो बता दिया कि क्या करोगे, मगर अच्छा लगा तो, तब क्या करोगे?, तो उन्होंने कहा कि अच्छा लगा तो मैं तुम्हें सिर पर बिठाकर नाचुंगा.’



ऐसे मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्म रोटी का क्लाइमेक्स सीन मुझे लिखने के लिए दिया. जिसके बाद मैं उनके साथ काम करने लगा, उस वक्त प्रकाश मेहरा साहब भी फिल्में बनाते थे और वो दो गुट हुआ करते थे. जो लोग प्रकाश मेहरा के साथ काम करते थे वो मनमोहन देसाई के साथ काम नहीं कर सकते थे और जो मनमोहन जी के साथ काम करते थे वो प्रकाश जी के साथ काम नहीं कर सकते थे, लेकिन मैं एक अकेला आदमी था जो दोनों के साथ काम करता था और मेरे साथ-साथ अमिताभ बच्चन भी वहां काम कर लिया करते थे. उन दिनों मुझे एक रिपोर्टर ने पूछा कि सर आप मनमोहन देसाई के कैंप में हैं या प्रकाश मेहरा के कैंप में तो इसपर मैंने कहा कि- मैं किसी के कैंप में नहीं हूं ये दोनों मेरे कैंप में हैं.’